Month: June 2020

Rasa Shastra – Pribhasha evum dravya varga prakaran – 3

अमृतीकरण : – लोहादीनां मृतानां वै शिष्टदोषापनुत्तये। क्रियते यस्तु संस्कार अमृतीकरणं मतम् । । धातुओं आदि की भस्म करने के पश्चात् भी उसमें शेष रहे हुए दोषों को दूर करने वाले संस्कार को अमृतीकरण कहते है । अमृतीकरण से गुण की वृद्धि तथा वर्ण की हानि होती है । लोहितीकरण : – अमृतीकरण से भस्म …

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गुग्गुलु ।। Commiphora Mukul

गण – एलादि कुल – गुग्गुलु   कुल (Family) – (बर्सरेसी-Burseraceae) लैटिन नाम – कौमिफोरा मुकुल (Commiphora Mukul) गुग्गुलु :- जो व्याधि से रक्षा करे देवधूप :- देवताओं के धूप में प्रयुक्त होने वाला कौशिक  :- वृक्ष के कोश में होने वाला पुर :- औषधों में श्रेष्ठ महिषाक्ष :- भैंस कीआंख के समान कृष्ण वर्ण इसका …

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श्वास रोग || Dyspnoea, Asthma

  आचार्य चरक ने हिक्का तथा श्वास रोग में दोष, दूष्य तथा स्रोतस की समानता होने के कारण दोनों व्याधियों का एक साथ वर्णन किया है। आचार्य चरक मतानुसार यह गम्भीर प्राणनाशक व्याधि हैं।      यथा श्वासश्च हिक्का च प्राणनाशुनिकृन्ततः ।। (च. चि. 17/6)   आचार्य चरक ने इस व्याधि को अरिष्ट लक्षण भी …

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पारद || पारद के अष्टविध संस्कार || Parad ke astvidh sanskaar || Rasashastra

पारद के अष्टविध संस्कार : स्वेदनं मर्दनं चैव मूर्च्छनोत्थापने तथा । पातनं बोधनं चैव नियामनमतः परम् ।। दीपनञ्चेति संस्काराः सूत्स्याष्टौ प्रकीर्तिताः ।। 1. स्वेदन 2. मर्दन 3. मूर्च्छन 4. उत्थापन 5. पातन 6. रोधन 7. नियामन 8. दीपन प्रथम पांच संस्कारों से पारद सर्वदोषमुक्त हो जाता है, शेष तीन संस्कारो द्वारा पारद में बल एवं …

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Charak Samhita || अपामार्गतण्डुलीयमध्यायं व्याख्यास्यामः || Chapter 2 || Part 1

  शिरोविरेचन द्रव्य और उनका प्रयोग – अपामार्ग, पिप्पली, मरिच, विडंग, शिग्रु, सर्षप, तुम्बरु, अजाजी, अजगन्धा, पीलु, एला, हरेणुका, पृथ्वीका (बड़ी इलायची), सुरसा, श्वेता, कुठेरक फणिज्झक (तुलसी भेद), शिरीषबीज, लहसुन, हरिद्रा, दारुहल्दी, सैन्धव नमक, काला नमक, ज्योतिष्मता एव नागर (शुण्ठी) इन सभी द्रव्यों का नस्य शिरोविरेचन के लिए प्रयोग करना चाहिए । शिर के भारीपन …

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Charak Samhita – Classification of Dravyas

  प्रभाव-भेद से द्रव्यों के भेद – किञ्चिद्दोषप्रशमनं किञ्चिद्धातुप्रदूषणम् । स्वस्थवृत्तौ मतं किञ्चित्रिविधं द्रव्यमुच्यते ॥ दोषों को शान्त करने वाले द्रव्य धातुओं को दूषित करने वाले द्रव्य स्वस्थवृत्त में हितकारक द्रव्य उत्पत्ति-भेद से द्रव्यों के प्रकार — तत् पुनस्त्रिविधं प्रोक्तं जङ्गमौद्भिदपार्थिवम् । जाङ्गम द्रव्य औद्भिद द्रव्य पार्थिव द्रव्य   1. जाङ्गम द्रव्य – जंगम प्राणियों …

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Padarth Vigyan – Darshan – Introduction

                                1. दार्शनिक पृष्ठभूमि This post contains the brief description about the first chapter of Padarth vigyan that is Darshan. Darashan are of two type :- Astika Darshan Further divided into six types :- वेदान्त दर्शन सांख्य दर्शन वैशेषिक दर्शन …

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Panchkarma || पंचकर्म

पंचकर्म का परिचय आयुर्वेद के दोनों प्रयोजनों की सिद्धि पंचकर्म द्वारा सम्भव है। चिकित्सा के सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण है- संशोधन संशमन निदान परिवर्जन पंचकर्म के द्वारा ही प्रयोजन का प्रथम उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु ऋतुचर्या के अनुसार पंचकर्म निर्दिष्ट है जिससे रोग उत्पन्न होने से पूर्व ही प्रकुपित दोषों …

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हिक्का रोग (Hiccough)

हिक्का वात कफ़ज तथा आमाशय समुत्थ व्याधि है। 1. विदाही द्रव्यों का अतिसेवन 2. गुरू, विष्टम्भी, रूक्ष तथा अभिष्यन्दी भोजन का अतिसेवन 3. अत्यधिक शीतल जलादि पेय पदार्थों का सेवन 4. अतिशीतल भोजन तथा शीतस्थान 5. रज, धूम, तेज हवा तथा अग्नि का सेवन 6. अति व्यायाम 7. साहस से अधिक कार्य करना 8. अतिभार …

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Maha Sneha – Panch lavan – Asta mutra

 चार महास्नेह (four maha sneha) :- सर्पिस्तैलं वसा मज्जा स्नेहो दिष्टश्चतुर्विधः । पानाभ्यञ्जनबस्त्यर्थ नस्यार्थं चैव योगतः॥ स्नेहना जीवना बल्या वर्णोपचयवर्धनाः । स्नेहा ते च विहिता वातपित्तकफापहाः ॥  १ . घृत, २ . तैल, ३ . वसा और ४ . मज्जा – ये चार प्रकार के स्नेह बतलाये गये है । इनका प्रयोग पीने के लिए …

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