Month: May 2021

विरेचन कर्म की कार्मुकता (Mode of action of VIRECHAN KARMA)

आयुर्वेद मतानुसार:- विरेचक औषधि (उष्ण, तीक्ष्ण,सूक्ष्म, व्यावायी,विकाशी ) स्व वीर्य से हृदय में प्रवेश धमनियों में प्रवेश (हृदय आश्रित) स्थूल तथा अणु स्रोत में प्रवेश सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त दोष संघात का विच्छिन्न करना अणुप्रवण भाव से द्रव्य का आमाशय में प्रवेश जल व पृथ्वी महाभूत की प्रधानता के कारण अध: प्रवृत्ति विरेचन का होना …

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वमन की कार्मुकता(mode of action of Vamana)

आयुर्वेद मतानुसार:- वामक औषध (उष्ण, तीक्ष्ण, सूक्ष्म, व्यवायि, विकासी गुण युक्त) स्ववीर्य से हृदय में प्रवेश धमनियों का अनुसरण स्थूल तथा अणु स्रोतों में प्रवेश सम्पूर्ण शरीर के दोष समूह पर क्रिया अणु प्रवण भाव से औषध का आमाशय में प्रवेश अग्नि और वायु की प्रधानता के कारण दोषों की उर्ध्व गति उदान वायु से …

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वमन कर्म

उत्पत्ति:- ‘वम्’ मे ल्युट प्रत्यय लगने से वमन शब्द बनता है। पर्याय:- छर्दि,प्रच्छर्दन,निःसारन परिभाषा:- तत्र दोषहरणमूर्ध्वभाग वमनसंज्ञकम्। वमन कप दोष में कराया जाता है। वमन के योग्य:- पीनस श्वास कास कुष्ठ अजीर्ण उन्माद विसर्प हृदय रोग अतिसार पांडू प्रमेह नव ज्वर ग्रंथि अपची कलरफुल स्तन्य दुष्टि वमन के अयोग्य:- बाल वृद्ध सुकुमार दुर्बल क्षुधित श्रान्त …

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