पैर (सक्थि) के मर्म :- | |
1. क्षिप्र | |
2. तलहृदय | |
3. कूर्च | |
4. कूर्चशिर | |
5. गुल्फ | |
6. इन्द्रबस्ति | |
7. जानु | |
8. आणि | |
9. ऊर्वी | |
10. लोहिताक्ष | |
11. विटप |
उदर और उरः में मर्म –(26)
उदर में मर्म –
- गुद
- बस्ति
- नाभि
उरः में मर्म –
- हृदय दो स्तन मूल
- दो स्तनरोहित
- दो अपलाप और
- दो अपस्तम्प
पीठ में मर्म (14)
- दो कटीकतरुण
- दो कुकुन्दर
- दो नितम्ब
- दो पार्श्वसन्धि
- दो बृहती
- दो असंफलक और
- दो अंस
बाहुमर्म में मर्म – (11)
- क्षिप्र,
- तलहृदय,
- कूर्च
- कूर्चशिर
- मणिबन्ध
- इन्द्रबस्ति
- कुर्पर
- आणि
- ऊर्वी
- लोहिताक्ष
- कक्षधर; ये बाहु के मर्म हैं । इसी प्रकार दूसरी बाहु में भी समझना चाहिये।
जत्रु (गर्दन) के ऊपर- (37)
- चार धमनियाँ (2 नीला, 2 धमनी)
- दो कृकाटिका
- दो विधुर
- दो फण
- आठ मातृका
- दो अपाङ्ग
- दो आवर्त
- दो उत्क्षेप
- दो शङ्ख
- एक स्थपनी
- पाँच सीमन्त
- चार शृङ्गाटक और
- एक अधिपति
मांसादि मर्मों के नाम-
1. मांसमर्म (11) | 4 तलहृदय, 4 इन्द्रबस्ति, 1 गुदा, और 2 स्तनरोहित |
2. सिरामर्म (41) | 4 नीलाधमनियाँ, 8 मातृका, 4 शृङ्गाटक, 2 अपाङ्ग, 1 स्थपनी, 2 फण 2 स्तनमूल, 2 अपलाप, 2 अपस्तम्भ, 1 हृदय, 1 नाभि, 2 पार्श्वसन्धि, 2 बृहती, 4 लोहिताक्ष, 4 ऊर्वी |
3. स्नायुमर्म (27) | 4 आणि, 2 विटप, 2 कक्षधर, 4 कूर्च, 4 कूर्चशिर , 1 बस्ति, 4 क्षिप्र, 2 अंस, 2 विधुर, 2 उत्क्षेप |
4. अस्थिमर्म (8) | 2 कटीकतरुण, 2 नितम्ब, 2 अंशफलक, 2 शंख |
5. सन्धिमर्म (20) | 2 जानु, 2 कूपर, 5 सीमन्त, 1 अधिपति, 2 गुल्फ, 2 मणिबन्ध, 2 कुकुन्दर , 2 आवर्त्त, 2 कृकाटिका |
कुल मर्म | 107 |
सद्य:प्राणहर मर्म- 19
- शृङ्गाटक 4
- अधिपति 1
- शंख 2
- कण्ठसिराये 8
- गुदा, 1
- हृदय, 1
- वस्ति 1
- नाभि 1 इन पर आघात होने से तत्काल मृत्यु होती है
कालान्तर-प्राणहर मर्म– 33
- वक्षोमर्म 8 (छाती के मर्म-2 स्तनमूल, 2 स्तनरोहित, 2 अपलाप, 2 अपस्तम्भ),
- सीमन्त 5
- तलहृदय 4
- क्षिप्र 4
- इन्द्रवस्ति 4
- कटीकतरुण 2
- सन्धि (पार्श्वसन्धि) 2
- बृहती 2
- नितम्ब 2 ये कालान्तर-प्राणहर मर्म होते हैं
विशल्यघ्न मर्म-3
- उत्क्षेप 2
- स्थपनी 1
- विमर्श :- जिसमें शल्य रहने तक प्राण रहते हैं, किन्तु शल्य निकालने पर मृत्यु होती है।
वैकल्यकर मर्म–44
- लोहिताक्ष 4
- आणि 4
- जानु 2
- ऊर्वी 4
- कूर्च 4
- विटप 2
- कूपर 2
- कुकुन्दर 2
- कक्षधर 2
- विधुर 2
- कृकाटिका 2
- अंस 2
- अंसफलक 2
- अपांग 2
- नीला 2
- मन्या 2
- फण 2
- आवर्त्त 2 ये वैकल्यकर मर्म हैं ॥
रुजाकर मर्म – 8
- गुल्फ 2
- मणिबन्ध 2
- कूर्चशिर 4 ये आठ मर्म रुजाकर (पीड़ा देने वाले) समझना चाहिये
- विमर्श :- वैकल्यकर और रुजाकर मर्मों में भेद निम्न प्रकार हैं –
- वैकल्यकर स्थायी विकार पैदा करते हैं किन्तु पीड़ाकर मर्म केवल पीड़ा ही पैदा करते हैं, स्थायी विकृति उत्पन्न नहीं करते हैं।