परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण – 1

परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण


परिभाषा लक्षण : –

निगूढानुक्तलेशोक्तसंदिग्धार्थ प्रदीपिका ।

सुनिश्चितार्था विबुधैः परिभाषा निगद्यते।।

  • जिन संक्षिप्त और सांकेतिक शब्दों द्वारा शास्त्र के गुप्त, अप्रकट, किंचित् प्रकट तथा संदिग्ध अर्थ का स्पष्ट और निश्चित अर्थ प्राप्त हो, उसे परिभाषा कहते है ।
  • गूढ, सांकेतिक, गंभीर शब्दों का स्पष्ट ज्ञान परिभाषा से ही होता है।


आवाप : –

द्रव्यान्तरविनिक्षेपो द्रुते वङ्गादिके तु यः ।

क्रियते स प्रतीवाप आवापश्च निगद्यते ।।

  • किसी भी पिघलने वाली वङ्गादि धातु को पिघलाकर उसमें किसी अन्य द्रव्य का प्रक्षेप डालने को आवाप या प्रतिवाप कहते है।


निर्वाप : –

धात्वादेर्वह्नितप्तस्य जलादौ यन्निषेचनम् ।

स निर्वापः स्मृतश्चापि निषेकः स्नपनञ्च तत् ।।

  • किसी भी लोहा, ताम्र, रजतादि धातु को अग्नि में तपाकर जल तक्र, क्वाथ, दुग्ध आदि में बुझाने को निर्वाप, निषेक और स्नपन कहते है ।


ढ़ालन : – 

संद्रावितस्य द्रव्यस्य द्रवे निक्षेपणन्तु यत् ।

ढालनं तत्समुद्दिष्टं रसकर्म विशारदैः । ।

  • रसकर्म विशारदों ने सोना, चाँदी आदि धातु को पिघलाकर उसको किसी भी द्रव ( यथाः – दुग्ध, तैल, घी, स्वरस, क्वाथ, फाण्ट ) में ढाल देने को ढ़ालन कहा है ।


भावना : –

यच्चूर्णितस्य धात्वादेवैः सम्पेष्य शोषणम् ।

भावनां तन्मतं विज्ञैर्भावना च निगद्यते । ।

  • धातु आदि किसी भी औषध के चूर्ण को द्रव पदार्थ ( जल, स्वरस, क्वाथ, फाण्ट, दुग्ध, तैल, घृतादि ) के साथ खल्व में मर्दन करके सुखाने की क्रिया को भावना कहते है ।


जारणा : –

द्रुतग्रासपरिणामो विडयन्त्रादि योगतः ।

जारणेत्युच्यते तस्याः प्रकाराः सन्ति कोटिशः।।

  • विड और यन्त्रादि के सहयोग से पारद में दिया गया द्रुत लोहादि एवं द्रुत सत्त्व आदि का ग्रास अच्छी प्रकार से पच जाय, उसे जारणा संस्कार कहते है । जारणा के करोड़ों प्रकार के भेद होते है ।

 

मूर्च्छना : –

  • जब पारद अपनी गुरुता एवं चञ्चलता त्यागकर कज्जली जैसा हो जाये, उसे मूर्च्छना कहते है ।
  • यह अनेक वर्ण का हो सकता है । पारद में निश्चित व्याधिनाशक शक्ति का आधान करना ही मूर्च्छना कहलाता है ।


शोधनः –

उद्दिष्टैरौषधैः सार्धं क्रियते पेषणादिकम् ।

मलविच्छित्तये यत्तु शोधनं तदिहोच्यते । ।

  • किसी भी द्रव्य के मल को दूर करने के लिए बताई गई औषधियों के साथ मिलाकर मर्दन, स्वेदन, प्रक्षालन, निर्वाप, ढालन, आवाप, भावना, भर्जन आदि क्रियाओं के करने को शोधन कहते है ।


मारण : –

शोधितान् लोहधात्वादि विमर्च स्वरसादिभिः |

अग्निसंयोगतो भस्मीकरणं मारणं स्मृतम् । ।

  • लौह धातु आदि द्रव्यों को वनस्पतियों के स्वरसादि से मर्दन करके अग्नि संयोग द्वारा भस्म करने की क्रिया को मारण कहते है ।


Charak Samhita – Jawar Nidan – Panch Nidan