अञ्जन प्रयोग
सौवीरमञ्जनं नित्यं हितमक्ष्णोस्ततो भजेत्।
- मुखशुद्धि करने के बाद सौवीर अञ्जन का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए। यह आँखों के लिए हितकर होता है।
- अञ्जन से नेत्र सुन्दर तथा सूक्ष्म पदार्थों को देखने योग्य हो जाते हैं।
- स्वस्थ आँखों में प्रतिदिन लगाने वाले अञ्जन को प्रत्यञ्जन कहते हैं।
रसाञ्जन – प्रयोग विधि
चक्षुस्तेजोमयं तस्य विशेषात् श्लेष्मतो भयम् ॥5॥
योजयेत् सप्तरात्रेऽस्मात् स्रावणार्थं रसाञ्जनम् ।
- चक्षु अग्नितत्त्व प्रधान या आग्नेय है। अत: उसे श्लेष्मा (जलतत्त्व प्रधान या जलीय पदार्थ) से विशेष विकृत होने का भय रहता है ।
- इसलिए श्लेष्मा के स्रावणार्थ सप्ताह में एक बार रसाञ्जन का प्रयोग करना चाहिए।
- सौवीराञ्जन नेत्र को स्वच्छ रखने वाला अञ्जन है, इसका प्रयोग नित्य करना चाहिए।
- रसाञ्जन नेत्र के दूषित अश्रु को निकालने वाला है।
नस्य आदि का सेवन निर्देश
ततो नावनगण्डूषधूमताम्बूलभाग्भवेत्॥6॥
- अंजन सेवन के पश्चात् नावन (नस्य), गण्डूष (क्वाथादि को मुख में भरना), धूमपान तथा ताम्बूल का सेवन करना चाहिए।