दिनचर्या
अथातो दिनचर्याध्यायं व्याख्यास्यामः ।
दिनचर्या – ‘प्रतिदिनं कर्त्तव्या चर्या दिनचर्या’
- प्रतिदिन करने योग्य चर्या दिनचर्या है ।
ब्राह्ममुहूर्त में जागरण
ब्राह्मेमुहूर्त उत्तिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थमायुषः।
- स्वस्थ (निरोग) मनुष्य आयु (जीवन) की रक्षा के लिए ब्राह्ममुहूर्त में उठे।
- चार घड़ी रात्रि शेष रहने (प्रात:काल 4-6 बजे) का नाम ‘ब्राह्ममुहूर्त’ होता है ।
दन्तधावन
शरीरचिन्तां निर्वर्त्य कृतशौचविधिस्ततः ॥१॥
- शरीर की चिन्ता अर्थात् जीर्ण एवं अजीर्ण (रात्रि का भोजन पच गया है अथवा नहीं) का विचार करते हुए मल मूत्र का त्याग करना चाहिए तथा मलमूत्र मार्ग को जल से शुद्ध करना चाहिए।
अर्कन्यग्रोधखदिरकरञ्जककुभादिजम् ।
प्रातर्भुक्त्वा च मृद्वग्रं कषायकटुतिक्तकम् ॥२॥
- इसके पश्चात् अर्क (मदार), न्यग्रोध (वट), खदिर (बबूल), करञ्ज एवं ककुभ (अर्जुन) आदि की अथवा कषाय, कटु एवं तिक्त रस वाले वृक्षों की दातौन करनी चाहिए।
कनीन्यग्रसमस्थौल्यं प्रगुणं द्वादशाङ्गुलम् ।
भक्षयेद्दन्तपवनं दन्तमांसान्यबाधयन् ॥३॥
- दातौन बारह अंगुल लम्बी एवं कनिष्ठा अंगुली के अग्रभाग के समान मोटी होनी चाहिए।
- दातौन करने के दो समय होते हैं –
- प्रातःकाल और
- भोजन कर लेने के बाद
- इससे मुख की मलिनता दूर होती है और भोजन करने के बाद दांतों या मसूड़ों में फंसे अन्नकण आदि निकल जाते हैं।
दातौन का निषेध
नाद्यादजीर्णवमथुश्वासकासज्वरार्दिती।
तृष्णास्यपाकहृन्नेन्नशिरः कर्णामयी च तत् ॥३॥
- अजीर्ण (Indigestion) होने पर
- छींक (छर्दिरोग में)
- श्वासरोग (Dyspnoea)
- कासरोग (Cough)
- ज्वररोग में
- अर्दितरोग में (Facial paralysis)
- तृष्णा (Thirst)
- मुखपाक (Ulceration in the mouth)
- हृद्रोग
- नेत्ररोग
- शिरोरोग एवं कर्णरोग में दातौन नहीं करनी चाहिए।