यन्त्र परिभाषा :-
मन एवं शरीर, इनमें बाधा उत्पन्न करने वाले पदार्थों को शल्य कहते हैं और शल्य का निर्हरण जिन उपकरणों से किया जाता है, उन्हें यन्त्र कहते हैं, किन्तु मनः शल्य दृश्यमान पदार्थ न होने के कारण वह किसी भी प्रकार के यन्त्र के द्वारा निकाला नहीं जा सकता । अतः शल्य की व्याख्या :-
सर्वशरीरबाधकर शल्यम् । (सु. सू. 26/4)
अर्थात् जो समस्त शरीर में बाधा उत्पन्न करते हैं, उन्हें शल्य कहते हैं।
यन्त्र प्रकार : 6 | यन्त्र संख्या : 101 |
स्वस्तिक यन्त्र | 24 |
संदंश यन्त्र | 02 |
ताल यन्त्र | 02 |
नाड़ी यन्त्र | 20 |
शलाका यन्त्र | 28 |
उपयन्त्र | 25 |
यन्त्र के गुण :- 6
समाहितानि यंत्राणि खरश्लक्षणमुखानि च ।
सुदृढानि सुरूपाणि सुग्रहाणि च कारयेत् ।। (सु. सू. 7/9)
- समाहितानि : यन्त्र प्रमाणबद्ध (उचित प्रमाण में) होने चाहिए ।
- खरश्लक्षणमुख : आवश्यकता के अनुसार खर अथवा मृदु मुख होने वाले होने चाहिए ।
- सुदृढानि : अत्यंत मज़बूत होने चाहिए ।
- सुरूपाणि : दिखने में उत्तम होने चाहिए ।
- सुग्रहाणि : शल्य को ग्रहण करने की दृष्टि से सुलभ होने चाहिए ।
यन्त्र के दोष :- 12
- अतिस्थूल : अधिक मोटे यन्त्र
- असार : अशुद्ध धातु से निर्मित यन्त्र
- अतिदीर्घम् : अत्यधिक लम्बे यन्त्र
- अतिहृस्वं : अत्यधिक छोटे यन्त्र
- अग्राहि : जिस यन्त्र की ग्रहण/पकड़ करने की क्षमता उत्तम नहीं हो
- विषमग्राहि : जो सम्पूर्ण शल्य को ना पकड़ सके
- वक्रं : टेढे-मेढे यन्त्र
- शिथिलं : यन्त्र शिथिल होने से पकड़ने में नहीं आता
- अत्युन्नतं : जिसका कोई भाग ऊपर की ओर उठा हुआ हो
- मृदुकीलं : मृदु कीलयुक्त यन्त्र ज़ोर लगाने पर टूट सकता है
- मृदुमुखं : मुख/पकड़ मृद होने से शल्य को पकड़ना कठिन होता है ।
- मृदुपाशं : ऐसे यन्त्र जिनकी पकड़ ढीली हो चुकी हो ।
यन्त्रों के कार्य :- 24
- निर्घातन (Hammering)
- पूरण (To fill the medicine)
- बंधन (Bandaginng)
- व्यूहन (Approximation of the edges of the wound)
- वर्तन (Replacement)
- चालन (Moving)
- विवर्तन (Twisting)
- विवरण (Dilatation)
- पीड़न (Pressing)
- मार्गविशोधन (Purifing of passage)
- विकर्षण (Drawing off)
- आहरण (Attracting)
- आञ्छन (Extension)
- उन्नमन (Elevation)
- विनमन (Depression)
- भञ्जन (Crushing)
- उन्मथन (Sounding)
- आचूषण (Suction)
- एषण (Probbing or exploration)
- दारण (Application of various lepa to burst out the abscess)
- ऋजुकरण (Straightening)
- प्रक्षालन (Washing or flushing)
- प्रधमन (Insuflation)
- प्रमार्जन (Cleansing)
यन्त्र के तीन प्रमुख कर्म होते हैं – शल्यदर्शन, शल्यनिर्हरण व शस्त्रकर्मसौकर्यार्थम् ।
आचार्य वाग्भट ने यन्त्र के 14 कर्म बताये हैं।
प्रशस्त यन्त्र :- यन्त्र दोष रहित 18 अंगुल लंबाई वाला यन्त्र प्रशस्त होता है ।