Charak Samhita – Sutrasthan 13

1. निम्न श्लोक को पूर्ण कीजिए –
_____________ सहासीनं पुनर्वसुम् ।

Answer
सांख्यैः संख्यातसंख्येयैः

2. निकोचक कौनसी स्नेह योनि में सम्मिलित है –

Answer
स्थावर (निकोचक = नीम का बीज)

3. स्नेहाध्याय में कुल प्रश्नों की संख्या – _______

Answer
25

4. सर्वेषां तैलजातानां ___A___ विशिष्यते। बलार्थे स्नेहने चाग्रयम् ___B___ तु विरेचने॥

Answer
A = तिलतैलं, B = एरंडं
[बलार्थ एवं स्नेहन हेतु – तिल तैल श्रेष्ठ, विरेचन हेतु – एरंड तैल श्रेष्ठ]

5. स्नेह के चार भेद हैं – “घृत, तैल, वसा, मज्जा”
गुरुता का क्रम – ___A___
वातकफ शामकता – ___B___
पित्त शामकता – ___C___

Answer
A = गुरुता का क्रम : घृत < तैल < वसा < मज्जा,
B = वातकफ शामकता : सर्पि < मज्जा < वसा < तैल,
C = पित्त शामकता : सर्पि > मज्जा > वसा > तैल

6. सर्पिस्तैलं वसा मज्जा सर्वस्नेहोत्तमाः मताः। एषु चैवोत्तमं सर्पिः ___________॥ [BHU 2013]

Answer
संस्कारस्यानुवर्तनात्
[सभी स्नेहों में संस्कार का अनुवर्तन करने के कारण सर्पि सबसे उत्तम स्नेह है।]

7. रिक्त स्थान की पूर्ति करें –
स्नेहाद् ____A____शमयति ____B____ माधुर्यशैत्यतः ।
घृतं तुल्यगुणं दोषं संस्कारत्तु जयेत् ____C____ ।।

Answer
A = वातं
B = पित्तं
C = कफम्

8. घृत के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
घृतं पित्तानिलहरं ___A___ हितम्।
___B___ मृदुकरं ___C___॥

Answer
A = रसशुक्रौजसां
B = निर्वापणं (दाह को शांत करता है)
C = स्वरवर्णप्रसादनम्

9. तैल के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
मारुतघ्नं न च श्लेष्मवर्धनम् ___A___ । त्वच्यमुष्णं ___B___ तैलं ___C___॥

Answer
A = बलवर्धनम्
B = स्थिरकरं
C = योनिविशोधनम्
[आचार्य काश्यप ने योनिविशोधन गुण घृत का माना है ।]

10. वसा के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
विद्धभग्नाहत ___A___कर्णशिरोरुजिः । पौरुषोपचये स्नेहे ___B___ चेष्यते वसा ॥

Answer
A = भ्रष्टयोनि
B = व्यायामे
[Explanation : विद्ध होने पर, काण्डभग्न या संधिभग्न होने पर, योनिभ्रंश, कर्ण एवं शिरःशूल होने पर तथा पुरुषार्थ की वृद्धि तथा व्यायाम करने वालो के लिये लाभकारी है ।]

11. मज्जा के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
___A___श्लेष्ममेदोमज्जविवर्धनः । मज्जा विशेषतो___B___ स्नेहने हितः ॥

Answer
A = बलशुक्ररस
B = ऽस्थ्नां च बलकृत्
[Explanation : बल-शुक्र-रस-श्लेष्म-मेद-मज्जा की वृद्धि कराने वाला, विशेषतः अस्थि बल-प्रदायक]

12. ऋतु अनुसार स्नेहन/स्नेहन काल :-
सर्पिः ___A___ पातव्यं, वसा मज्जा च ___B___।
तैलं ___C___ नात्युष्णशीते स्नेहं पिबेन्नरः। ॥

Answer
A = शरदि
B = माधवे
C = प्रावृषि
[TRICK : S.P.M]
शरद – घृत
प्रावृट – तैल
माधव – वसा, मज्जा [BHU 2014]
(अत्यन्त शीत तथा अत्यन्त उष्णकाल में स्नेह का सेवन नहीं करना चाहिए ।)

13. स्नेहन का अनुपान :
घृत – ___A___
तैल – ___B___
वसा, मज्जा – ___C___
सर्वस्नेह – ___D___

Answer
A = उष्णोदक
B = यूष
C = मण्ड
D = उष्णोदक

14. स्नेहपान काल –
वात्तपित्ताधिक्य/उष्णकाल – ___A___
कफाधिक्य/शीतकाल – ___B___

Answer
A = रात्रि में
B = दिन में (च अमल भास्करे – सूर्य अच्छे से निकला हो)

15. विपरीतकाल में स्नेहन से हानि :-
अत्युष्णकाल/वातपित्ताधिक्य में दिन में स्नेहन से – ___A___
अतिशीतकाल/कफाधिक्य में रात्रि में स्नेहन से – ___B___

Answer
A = मूर्च्छा, पिपासा, उन्माद, कामला की उत्पत्ति [मू. पि. उ. का.]
B = आलस्य, अरुचि, शूल, पाण्डुता की उत्पत्ति [अ. आ. शू. पा.]

16. आचार्य सुश्रुत ने सभी स्नेहों का अनुपान उष्ण जल बताया है, लेकिन ___A___ और ___B___ के अनुपान में उष्ण जल का निषेध किया है ।

Answer
A = भल्लातक तैल
B = तुवरक तैल

स्नेह की प्रविचारणाएँ –

चरक : 24 प्रविचारणाएं, काश्यप : 20 प्रविचारणाएं

17. आचार्य चरकानुसार निम्न में से स्नेह की प्रविचारणा में सम्मिलित नहीं है –
1. ओदन, 2. विलेपी, 3. काम्बलिक, 4. यवागू, 5. पेया, 6. यवागू, 7. मण्ड, 8. कवल, 9. गण्डूष, 10. मद्य

Answer
पेया, मण्ड, कवल

18. स्नेहस्य स भिषग्दृष्टःकल्पःप्राथमकल्पिकः
यह किसके लिए कहा है –

Answer
अच्छ स्नेह के लिए
[Explanation : केवल स्नेह (अच्छपेय) का पान-स्नेह विचारणा नहीं है, इसे मुख्य कल्पना माना गया है।]

गण्डूषः कर्णतेलँ च नस्तःकर्णाक्षिभिषगम् \text{।।25।।}
गण्डूष स्नेह विचारणा है। (कवल नहीं है)

अच्छस्नेह – कल्पः \text{(प्राथमिकम् + कल्प)}

रसभेद से स्नेह विचारणा – 63 \text{(षड़भक्षिणेषु)}
कुल स्नेह कल्पना – 64 \text{(63 + अच्छस्नेह)}

स्नेह की मात्राएँ –

  • उत्तम – अहोरात्र – एक दिवस \text{(अहोरात्र में)} – 8 \text{ पहर}/\mathbf{24 \text{ घण्टे}} में जीर्ण
  • मध्यम – अहः – एक दिन \text{(अहः)} – 4 \text{ पहर}/\mathbf{12 \text{ घण्टे}} में जीर्ण \text{(Tri 1995)}
  • ह्रस्व – अर्धाह – अर्ध दिन \text{(अर्धाह)} – 2 \text{ पहर}/\mathbf{6 \text{ घण्टे}} में जीर्ण
  • (ह्रसीयसी मात्रा – चतुर्धाभागोऽहनि \mathbf{- 3 \text{ घण्टे}} में पचने वाली-सुश्रुत, वाग्भट) \text{(Tri 1990)}
    \Rightarrow सन्दर्भ – स्नेह मात्रा प्रयोग – \text{तासां प्रयोगान् वक्ष्यामि पुरुषं पुरुषं प्रति $\text{।।}$}
    \text{[पुरुषं पुरुषं वीक्ष्यं – च.सू. 1]}

स्नेह की उत्तम मात्रा योग्य अवस्थायें –

  • प्रभूतस्नेहपहा नराः \text{।} पावकक्लेशसोऽम्तो येषां चोत्तमा बले \text{।।}
  • गुलमन्नः \text{सर्वदश विषपीड़िताश्च नराः $\text{।}$ उन्मत्त कृच्छ्रमूत्रं गाढवर्चस च $\text{।।}$}
  • प्रभूतस्नेहपीवी, सुप्तिपपासा को सहने वाले
  • उत्तम बल व उत्तम अग्निवल वाले
  • गुल्म, सर्वदंश, विसर्प, उन्माद, मूत्रकृच्छ्र तथा गाढवर्च (मल) से पीड़ित \text{(BHU 2013)}
  • विसर्प सर्वदंश – उत्तम मात्रा \text{(उन्माद, मूत्रकृच्छ्र, गुल्म में भी)}
  • प्रमेह वातरक्त – मध्यम मात्रा
चरकवाग्भट
शमनउत्तममध्यम
शोधनमध्यमउत्तम
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