Rasa Shastra – Parad ke dosh

             
Parad ke dosh –  पारद के दोष

  • शुद्ध पारद सर्वव्याधिनाशक, जरावस्थानाशक एवं मृत्यु का निवारण करता है, किन्तु अशुद्ध पारद भयंकर दोष करने वाला विष होता है।
  • पारद में कुल 12 दोष होते है ।

(1) नैसर्गिक दोष : –

  • नैसर्गिक दोष विष, वह्नि और मल तीन होते है ।
  • जिनके द्वारा क्रमशः मृत्यु, संताप और मूर्छा होती है ।
  • पारद एक खनिज द्रव्य होने से भूगर्भ में पारद के साथ अन्य धातुओं का मिश्रण होना स्वाभाविक है । अतः इस दोष को नैसर्गिक दोष कहा जाता है ।

(2) यौगिक दोष : – 

  • मिलावट के कारण हुए दोषों को यौगिक दोष कहते हैं ।
  • पारद के नाग और वङ्ग दो यौगिक दोष है ।
  • इन दोषों से युक्त पारद जड़ता, आध्मान तथा कुष्ठ रोग को उत्पन्न करता है ।

 

(3) औपाधिक दोष : –

  • पारद में पूर्वोक्त पाँच दोषों के अतिरिक्त भूमिज, गिरिज, वारिज, नागज- 2 और वङ्गज- 2 कुल सात औपाधिक दोष (सप्तकचुक दोष) होते है ।
  • इस प्रकार सभी दोषों को मिलाकर रसशास्त्रविशेषज्ञों ने पारद में 12 दोष माने है ।

(i) भूमिज : –

  • पारदीय खनिज भूगर्भ में जिस मिट्टी के सम्पर्क में रहता है, उस मिट्टी में से कुछ दोष पारद में आ जाने से भूमिज दोष कहलाते हैं ।

(ii) गिरिज : –

  • पारदीय खनिज भूगर्भ पाषाणों के सम्पर्क से दोष आ जाने से गिरिज दोष कहलाते हैं ।

(iii) वारिजः

  • पारदीय खनिज के सम्पर्क में आये हुए जल के कारण दोष पारद में आने से वारिज दोष कहलाते हैं ।

(iv) नागजः –

  • पारद का सीसे के सम्पर्क से आगत दोष नागज दोष कहलाते हैं ।
  • ये संख्या में दो होते हैं ।

(v) वङ्गजः –

  • वङ्ग के सम्पर्क से पारद में आगत दोष वङ्गज दोष कहलाते हैं ।
  • इनकी संख्या भी दो होती है ।

विशेष : –

  • नाग व वङ्ग दोषों को यौगिक एवं औपाधिक दोनों में गिना गया है ।
  • पारद में नाग या वङ्ग धातु बाहर से मिलाने पर यौगिक दोष कहलाते है ।
  • जबकि पारदीय खनिज में पहले से ही विद्यमान नाग या वङ्ग के खनिज के कारण उनका कुछ अंश पारद में चले जाने से औपाधिक दोष कहलाते हैं ।
  • भूमिज दोष कुष्ठ, गिरिज दोष जड़ता, वारिज दोष वात विकार तथा नाग वङ्ग वातादि तीनों दोषों को प्रकुपित करके विविध प्रकार के रोगों को उत्पन्न करते है ।.


पारद || पारद के अष्टविध संस्कार || Parad ke astvidh sanskaar || Rasashastra

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