1. निम्न श्लोक को पूर्ण कीजिए –
_____________ सहासीनं पुनर्वसुम् ।
2. निकोचक कौनसी स्नेह योनि में सम्मिलित है –
3. स्नेहाध्याय में कुल प्रश्नों की संख्या – _______
4. सर्वेषां तैलजातानां ___A___ विशिष्यते। बलार्थे स्नेहने चाग्रयम् ___B___ तु विरेचने॥
5. स्नेह के चार भेद हैं – “घृत, तैल, वसा, मज्जा”
गुरुता का क्रम – ___A___
वातकफ शामकता – ___B___
पित्त शामकता – ___C___
6. सर्पिस्तैलं वसा मज्जा सर्वस्नेहोत्तमाः मताः। एषु चैवोत्तमं सर्पिः ___________॥ [BHU 2013]
7. रिक्त स्थान की पूर्ति करें –
स्नेहाद् ____A____शमयति ____B____ माधुर्यशैत्यतः ।
घृतं तुल्यगुणं दोषं संस्कारत्तु जयेत् ____C____ ।।
8. घृत के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
घृतं पित्तानिलहरं ___A___ हितम्।
___B___ मृदुकरं ___C___॥
9. तैल के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
मारुतघ्नं न च श्लेष्मवर्धनम् ___A___ । त्वच्यमुष्णं ___B___ तैलं ___C___॥
10. वसा के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
विद्धभग्नाहत ___A___कर्णशिरोरुजिः । पौरुषोपचये स्नेहे ___B___ चेष्यते वसा ॥
11. मज्जा के गुणों के संदर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए –
___A___श्लेष्ममेदोमज्जविवर्धनः । मज्जा विशेषतो___B___ स्नेहने हितः ॥
Important Points :
* योनिविशोधक –
चरक :- तैल
काश्यप :- घृत + शतपुष्पा
* भग्न में प्रयुक्त –
चरक :- वसा
काश्यप :- तैल
12. ऋतु अनुसार स्नेहन/स्नेहन काल :-
सर्पिः ___A___ पातव्यं, वसा मज्जा च ___B___।
तैलं ___C___ नात्युष्णशीते स्नेहं पिबेन्नरः। ॥
13. स्नेहन का अनुपान :
घृत – ___A___
तैल – ___B___
वसा, मज्जा – ___C___
सर्वस्नेह – ___D___
14. स्नेहपान काल –
वात्तपित्ताधिक्य/उष्णकाल – ___A___
कफाधिक्य/शीतकाल – ___B___
15. विपरीतकाल में स्नेहन से हानि :-
अत्युष्णकाल/वातपित्ताधिक्य में दिन में स्नेहन से – ___A___
अतिशीतकाल/कफाधिक्य में रात्रि में स्नेहन से – ___B___
16. आचार्य सुश्रुत ने सभी स्नेहों का अनुपान उष्ण जल बताया है, लेकिन ___A___ और ___B___ के अनुपान में उष्ण जल का निषेध किया है ।
स्नेह की प्रविचारणाएँ –
चरक : 24 प्रविचारणाएं, काश्यप : 20 प्रविचारणाएं
17. आचार्य चरकानुसार निम्न में से स्नेह की प्रविचारणा में सम्मिलित नहीं है –
1. ओदन, 2. विलेपी, 3. काम्बलिक, 4. यवागू, 5. पेया, 6. यवागू, 7. मण्ड, 8. कवल, 9. गण्डूष, 10. मद्य
18. स्नेहस्य स भिषग्दृष्टःकल्पःप्राथमकल्पिकः ।
यह किसके लिए कहा है –
गण्डूषः कर्णतेलँ च नस्तःकर्णाक्षिभिषगम् \text{।।25।।}
गण्डूष स्नेह विचारणा है। (कवल नहीं है)
अच्छस्नेह – कल्पः \text{(प्राथमिकम् + कल्प)}
रसभेद से स्नेह विचारणा – 63 \text{(षड़भक्षिणेषु)}
कुल स्नेह कल्पना – 64 \text{(63 + अच्छस्नेह)}
स्नेह की मात्राएँ –
- उत्तम – अहोरात्र – एक दिवस \text{(अहोरात्र में)} – 8 \text{ पहर}/\mathbf{24 \text{ घण्टे}} में जीर्ण
- मध्यम – अहः – एक दिन \text{(अहः)} – 4 \text{ पहर}/\mathbf{12 \text{ घण्टे}} में जीर्ण \text{(Tri 1995)}
- ह्रस्व – अर्धाह – अर्ध दिन \text{(अर्धाह)} – 2 \text{ पहर}/\mathbf{6 \text{ घण्टे}} में जीर्ण
- (ह्रसीयसी मात्रा – चतुर्धाभागोऽहनि \mathbf{- 3 \text{ घण्टे}} में पचने वाली-सुश्रुत, वाग्भट) \text{(Tri 1990)}
\Rightarrow सन्दर्भ – स्नेह मात्रा प्रयोग – \text{तासां प्रयोगान् वक्ष्यामि पुरुषं पुरुषं प्रति $\text{।।}$}
\text{[पुरुषं पुरुषं वीक्ष्यं – च.सू. 1]}
स्नेह की उत्तम मात्रा योग्य अवस्थायें –
- प्रभूतस्नेहपहा नराः \text{।} पावकक्लेशसोऽम्तो येषां चोत्तमा बले \text{।।}
- गुलमन्नः \text{सर्वदश विषपीड़िताश्च नराः $\text{।}$ उन्मत्त कृच्छ्रमूत्रं गाढवर्चस च $\text{।।}$}
- प्रभूतस्नेहपीवी, सुप्तिपपासा को सहने वाले
- उत्तम बल व उत्तम अग्निवल वाले
- गुल्म, सर्वदंश, विसर्प, उन्माद, मूत्रकृच्छ्र तथा गाढवर्च (मल) से पीड़ित \text{(BHU 2013)}
- विसर्प सर्वदंश – उत्तम मात्रा \text{(उन्माद, मूत्रकृच्छ्र, गुल्म में भी)}
- प्रमेह वातरक्त – मध्यम मात्रा
चरक | वाग्भट | |
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शमन | उत्तम | मध्यम |
शोधन | मध्यम | उत्तम |
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