Charak Samhita – Sutrasthan 18

12. एकदेशीय शोथ – 19

1. उपजिह्विका

दोष –

Answer
कफ

स्थान –
Answer
जिह्वामूले

लक्षण –
Answer
आशु संजनयेच्छोथं

2. गलशुण्डी

दोष –

Answer
कफ

स्थान –
Answer
काकले (तालु मूल)

लक्षण –
Answer
आशु संजनयेच्छोथं

3. गलगण्ड

दोष –

Answer
कफ

स्थान –
Answer
गलबाह्योऽवतिष्ठते

लक्षण –
Answer
शनैः संजनयेच्छोथं

4. गलग्रह

दोष –

Answer
कफ

स्थान –
Answer
तिष्ठत्यन्तर्गले

लक्षण –
Answer
आशु संजनयेच्छोथं

5. विसर्प

दोष –

Answer
पित

स्थान –
Answer
सरक्तं त्वचि सर्पति (पित रक्त के साथ त्वचा में फैल जाता है)

लक्षण –
Answer
शोथं सरागं

6. पिडका

दोष –

Answer
पित

स्थान –
Answer
त्वचि रक्तेऽवतिष्ठते (पित, त्वचा और रक्त में स्थिर हो जाता है)

लक्षण –
Answer
शोथं सरागं

7-10. तिलक, पिप्लु, व्यङ्ग, नीलिका

दोष –

Answer
पित

स्थान –
Answer
पित्तं शोणितं प्राप्य शुष्यति (पित रक्त में जाकर सूख जाता है)

लक्षण – –

11. शंखक

दोष –

Answer
पित

स्थान –
Answer
शङ्खयोरवतिष्ठते (पित, त्वचा और रक्त में स्थिर हो जाता है)

लक्षण –
Answer
दारुणस्तस्य

12. कर्णमूलिक शोथ

दोष –

Answer
पित

स्थान –
Answer
कर्णमूले

लक्षण –
Answer
ज्वरान्ते दुर्जयोन्ताय शोथस्तस्योपजायते (ज्वर के अन्त में शोथ उत्पन्न करता है तो असाध्य

13. प्लीहावृद्धि

दोष –

Answer
वात

स्थान –
लक्षण –
Answer
शनैः परितुदन् पार्श्वं (वाम पार्श्व में धीरे-धीरे वेदना)

14. गुल्म

दोष –

Answer
वात

स्थान –
Answer
गुल्मस्थानेऽवतिष्ठते (पार्श्वहृन्नाभिबस्तयः)

लक्षण –
Answer
शोफं सशूलं जनयन्

15. वृद्धि रोग

दोष –

Answer
वात

स्थान –
Answer
वंक्षणाद् वृषणौ

लक्षण –
Answer
शोफशूलकरश्चरन् वंक्षणाद् वृषणौ (वायु शोथ, शूल उत्पन्न कर चलती हुई वंक्षण प्रदेश से वृषण में जाती है)

16. उदर रोग

दोष –

Answer
वात

स्थान –
Answer
त्वगमांसान्तरमाश्रितः

लक्षण –
Answer
शोथं संजनयेत् कुक्षावुदरं तस्य जायते

17. आनाह

दोष –

Answer
वात

स्थान –
Answer
कुक्षिमाश्रित्य तिष्ठति

लक्षण –
Answer
नाधो व्रजति नाप्यूर्ध्वमानाहस्तस्य (आनाह में वायु न ऊपर जाती है और न नीचे जाती है)
TRICK : PG के उदर में वृद्धि हुई तो Dr बोला आनाह है – वात दोष

18. उत्सेध

अधिमांस, अर्बुद आदि में सामान्य रूप से होता है।

19. रोहिणी**

दोष –

Answer
वातपितकफ

स्थान –
Answer
जिह्वामूले

लक्षण –
Answer
त्रिरात्रं परमं तस्य जन्तोर्भवति जीवितम्।** (रोगी व्यक्ति के जीने की परम अवधि तीन दिन की होती है)
कुशलता त्वनुक्रान्तः क्षिप्रं संपद्यते सुखी (कुशल चिकित्सक से चिकित्सा करायी जाए तो रोगी शीघ्र ही अच्छा भी हो सकता है)
[NOTE : उपजिह्विका, रोहिणी – जिह्वामूलेऽवतिष्ठन्ते]

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