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[su_heading size=”18″]परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण [/su_heading]
द्रुति :-
औषधाध्मानयोगेन लोहधात्वादिकं तथा ।
सन्तिष्ठते द्रवाकारं सा द्रुतिः परिकीर्तिताः । ।
- विशिष्ट औषधियों के संयोग तथा तीव्रधमन के योग से स्वर्णादि धातु या अन्य खनिज द्रव्य द्रवीभूत होकर द्रवावस्था में रह जाये,
- तब उस द्रवीभूत अवस्था को मूल पदार्थ की द्रुति कहते है ।
द्रुतिलक्षण : –
- पात्र में न चिपकना,
- द्रवरूप में रहना,
- चमकदार होना,
- मूलपदार्थ से हल्का होना
- पारद से अलग रहना उत्तमद्रुति के पाँच लक्षण होते है ।
रुद्रभागः –
- व्यापारी लोगों से जो औषधियाँ वैद्यों या उसके रोगियों के द्वारा खरीद ली जाती थी, उनके मूल्य का ग्यारहवाँ भाग वैद्य लोग व्यापारी से वसूल करते थे ।
- वैद्य को मिलने वाले इस ग्यारहवें भाग को रुद्रभाग कहते हैं ।
धन्वन्तरि भाग : –
- सिद्ध किये हुए रस, तैल और घृत इनका आधा भाग, अवलेह का आठवाँ भाग तथा सब प्रकार की धातुओं की भस्म, काष्ठौषधियों के चूर्ण, वटी, मोदक आदि का सातवाँ भाग
- इस प्रकार अन्य गरीब लोगों के लिए रोगी के खर्चे से तैयार औषधि का यह भाग आरोग्य सुख की प्राप्ति के लिए धन्वन्तरि के नाम से वैद्य को दिया जाता है,
- उसको धन्वन्तरि भाग कहते हैं ।
अपुनर्भव : –
- किसी धातु भस्म को मित्रपञ्चक (गुड़, गुञ्जा, टंकण, मधु और घृत) के साथ मिलाकर धमन करने पर भस्म में कोई परिवर्तन न हो (पुनः धातुरूप में न आये),
- तो उसे अपुनर्भव भस्म कहते है ।
निरुत्थ : –
रौप्येण सह संयुक्तं ध्मातं रौप्येण नो लगेत्।
तदा निरुत्थमित्युक्तं लोहं तदपुनर्भवम् । ।
- किसी भी लौह आदि धातु भस्म को चांदी के टुकड़े के साथ मिलाकर मूषा में रख धमन करने से उस भस्म का थोड़ा अंश भी यदि चांदी के साथ नहीं चिपकता है,
- उस भस्म को निरुत्थ भस्म कहते है ।
रेखापूर्ण : –
- तर्जनी और अंगुष्ठ के बीच में भस्म को रगड़ने पर रेखाओं में प्रवेश कर जाय, उस मृतलौह को रेखापूर्ण भस्म कही जाती है ।
- रेखापूर्ण सूक्ष्मता का प्रतीक है।
वारितर :-
- यदि किसी धातुभस्म को तर्जनी और अंगुष्ठ से दबाकर निस्तरंग जल में डालने पर तैरती रहे, उसे वारितर भस्म कहते है।
उत्तम ( ऊनम ) : –
तस्योपरि गुरुद्रव्यं धान्यं चोपनयेद् ध्रुवम् ।
हंसवत्तीर्यते वारिण्युत्तमं परिकीर्तितम् । ।
-
- अपुनर्भव भस्म को सूक्ष्म पीसकर जल में डालने पर तैरता रहता है ।
- तैरते हुए उस भस्म के ऊपर गुरु द्रव्य (धान्य आदि) का कण छोड़ने पर वह धान्यादि अन्न हंस के समान तैरता रहता है, तब ऐसे भस्म को उत्तम भस्म कहलाती है ।
अग्निमंथ || Premna mucronata