इन्द्रिय व्यवहार विधि
न पीडवेदिन्द्रियाणि न चैतान्यति लालयेत् ॥29॥
- रसना एवं चक्षु आदि इन्द्रियों को न तो रस-रूप आदि विषयों को ग्रहण करने से रोके और न ही इनको अत्यधिक विलास युक्त बनावे ।
त्रिवर्ग विरोध का निषेध
त्रिवर्गशून्यं नारम्भं भजेत्तं चाविरोधयन् ।
- त्रिवर्ग (धर्म-अर्थ-काम) से रहित कोई कार्य नहीं करना चाहिए अर्थात् ऐसा कोई कार्य न करे, जिससे धर्म-अर्थ-काम की प्राप्ति न हो अथवा उनका परस्पर विरोध हो।
व्यवहार विधि
अनुयायात्प्रतिपदं सर्वधर्मेषु मध्यमाम् ॥30॥
- सभी धर्मों में मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। किसी धर्म के घोर समर्थक या घोर विरोधी न बने।
- यहां धर्म शब्द से आयुर्वेदोक्त सदाचार मार्ग में मध्यममार्ग पर चलें।
शरीर शुद्धि के प्रकार
नीचरोमनखश्मश्रुर्निर्मलाङि्घ्रमलायनः ।
स्नानशीलः सुसुरभिः सुवेषोऽनुल्बणोज्ज्वलः।।
- रोम (केश), नख, श्मश्रु (दाढी-मूंछ) को अधिक नहीं बढ़ाना चाहिए।
- आंघ्री (पैर) एवं मलायन (मलद्वार-चक्षु, कर्ण, नासा, मुख, गुद तथा उपस्थ) को स्वच्छ रखना चाहिए।
- प्रतिदिन स्नान करें, सुसुरभि-सुगन्धित द्रव्यों का अनुलेप, सुवेष-सुन्दर वस्त्र, अनुलबण (अनुद्धत-शालीन वेष ) तथा स्वच्छ वस्त्रों को धारण करें।
- अनुद्धत का अभिप्राय ऐसी वेशभूषा में है, जो देखने में शालीनता का सूचक हो ।
रत्न आदि का धारण
धारयेत्सततं रत्नसिद्धमन्त्रमहौषधीः ।
- रत्न (मणि), सिद्धमन्त्र (अपराजिता आदि) तथा महौषधि (सहदेवी) आदि को बाहु अथवा ग्रीवा में धारण करना चाहिए।
छत्रादि धारण
सातपत्रपदत्राणो विचरेद्युगमात्रदृक् ॥32।।
- सातपत्र (छाता) लगाकर, (पदत्राण) जूता पहन कर तथा (हस्तचतुष्टय) अर्थात् चार हाथ आगे के मार्ग को देखते हुए चलना चाहिए ।
दण्डादि धारण
निशि चात्ययिके कार्ये दण्डीमौली सहायवान् ॥
- रात्रि में किसी प्रयोजनवश बाहर जाना हो, तो हाथ में लाठी लेकर तथा सिर पर पगड़ी बांधकर किसी सहयोगी के साथ जाना चाहिए।