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ताम्बूल सेवन विधि

  • भोजन के प्रति इच्छा अधिक हो, मुख स्वच्छ एवं सुगन्धित रखने वाले को पान खाना चाहिए।
  • इसे भोजन की भाँति मुख में रखकर तत्काल निगलना नहीं चाहिए। पान के मसाले — जावित्री, जायफल, लौंग, कपूर, पिपरमेण्ट, कंकोल (शीतल चीनी), कटुक (लताकस्तूरी के बीज) तथा इसमें सुपारी के भिगाये हुए टुकड़े भी रखें।
  • इस प्रकार सेवन करने से पान हृदय को प्रिय लगता है और यह शक्तिवर्धक होता है।
  • इसका सेवन सोकर उठने के बाद स्नान एवं भोजन करने के बाद तथा वमन करने के पश्चात् करना चाहिए।

ताम्बूल-सेवन का निषेध

ताम्बूलं क्षतपित्तास्ररूक्षोत्कुपितचक्षुषाम् ।
विषमूर्च्छामदार्तानामपथ्यं शोषिणामपि।।7।।

  • उर:क्षत, पित्तविकार, रक्तविकार, रूक्ष शरीर वाले नेत्ररोगी, विषविकार, मूर्च्छा, मदात्यय (मदजनित रोग) एवं शोष (राजयक्ष्मा) में ताम्बूल अहितकर होता है।

अभ्यंग विधान

अभ्यङ्गमाचरेन्नित्यं, स जराश्रमवातहा।
दृष्टिप्रसादपुष्ट्यायुःस्वप्नसुत्वक्त्वदार्ढ्यकृत् ॥8॥

  • अभ्यंग नित्य करना चाहिए ।
  • यह जरा (वृद्धावस्था), श्रम (थकावट) एवं वातज विकारों को नष्ट करता है। 
  • वह  नेत्रज्योति को निर्मल, शरीर को पुष्ट, आयु को बढ़ाने वाला, निद्रा लाने वाला, त्वचा के सौन्दर्य को स्थिर  रखने वाला तथा शरीर को दृढ़ (मजबूत) करने वाला होता है।

अभ्यंग का विशेष स्थान

शिरःश्रवणपादेषु तं  विशेषेण  शीलयेत्

  • शिर, कान तथा पैरों के तलुओं पर विशेष रूप से प्रतिदिन मालिश करनी चाहिए।

अभ्यंग का निषेध

वर्ज्योऽभ्यङ्गः कफग्रस्तकृतसंशुद्वयजीर्णिभिः ।।9।।

  • कफदोष से पीड़ित, वमन-विरेचन आदि संशोधन कर्म के पश्चात् तथा अजीर्ण रोग में अभ्यंग नहीं करना चाहिए।