चरक संहिता (पूर्वार्द्ध)

Charak Samhita – Sutrasthan 18

1. तीन भेद वाली 3 व्याधियाँ – 2. शोथ के तीन भेद : 3. शोथ के दो भेद : 4. आगन्तुक शोथ के कारण : 5. आगन्तुक शोथ का उपशय/चिकित्सा : 6. वातिक शोथ की सम्प्राप्ति और लक्षण : 7. पैतिक शोथ लक्षण : 8. कफज शोथ लक्षण : 9. शोथ के विभिन्न भेद :i. […]

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Charak Samhita – Sutrasthan 13

1. निम्न श्लोक को पूर्ण कीजिए –_____________ सहासीनं पुनर्वसुम् । 2. निकोचक कौनसी स्नेह योनि में सम्मिलित है – 3. स्नेहाध्याय में कुल प्रश्नों की संख्या – _______ 4. सर्वेषां तैलजातानां ___A___ विशिष्यते। बलार्थे स्नेहने चाग्रयम् ___B___ तु विरेचने॥ 5. स्नेह के चार भेद हैं – “घृत, तैल, वसा, मज्जा”गुरुता का क्रम – ___A___वातकफ शामकता

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Charak Samhita – Sutrasthan 01

1. भरद्वाज ऋषि के अन्य नाम – _________ 2. इन्द्र के कोई 5 पर्याय बताइए – __________ 3. आयुर्वेदावतरण के संदर्भ में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –ब्रह्मा – ___A___ – अश्विनी कुमार – शतक्रतु ___B___ – आत्रेय पुनर्वसु – अग्निवेश, भेल, ___C___, जतुकर्ण, पाराशर, हारीत 4. धर्मार्थकामोक्षणाम् _________ मूलमुत्तमम्। 5. रोगास्तस्यापहर्तारः _______ जीवितस्य च

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Charak Samhita – Introduction

चरक संहिता – परिचय 1. चरक संहिता के मूल उपदेष्टा हैं _________ । 2. चरक संहिता के तंत्रकर्ता हैं _________। 3. चरक संहिता के प्रतिसंस्कर्ता हैं __________। 4. चरक संहिता के द्वितीय प्रतिसंस्कर्ता या पूरक हैं __________। 5. दृढ़बल द्वारा पूरित अध्यायों की कुल संख्या ______ है, जिसमें चिकित्सा स्थान के ______ अध्याय, कल्पस्थान के

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Charak Samhita Sutrasthan topicwise recorded classes

Chapter 1 – दीर्घञ्जीवितीयध्याय Important topic covered Course Price Joining Link 1. अध्याय प्रवेश, चतुष्क, आयुर्वेदावतरण, भरद्वाज का इन्द्र के यहां गमन, इन्द्र के पर्याय, प्रथम सम्भाषा परिषद्, त्रिसूत्र आयुर्वेद Rs. 1 Click here 2. षट् पदार्थ वर्णन – अग्निवेशादि छः शिष्य, अष्ट ज्ञान देवता, आयुर्वेद की परिभाषा, आयु के लक्षण Rs. 1 Click here

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भरद्वाज की नियुक्ति तथा इन्द्र से वार्ता, त्रिसूत्र आयुर्वेद का स्वरूप

रोग का धर्मादि प्राप्ति में बाधकत्व धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम् ॥१५॥ रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च । प्रादुर्भूतो मनुष्याणामन्तरायो महानयम् ॥१६॥ कः स्यात्तेषां शमोपाय इत्युक्त्वा ध्यानमास्थिताः । अथ ते शरणं शक्रं दद्दशुर्ध्यानचक्षुषा ॥१७॥ स वक्ष्यति शमोपायं यथावदमरप्रभुः । आरोग्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ का उत्तम (प्रधान) मूल है । रोग उसी कल्याणकारी और मूलस्वरूप आरोग्य

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दीर्घञ्जीवितीय अध्याय – विषय प्रवेश, भरद्वाज का इन्द्र के यहाँ गमन, आयुर्वेद के पठन-पाठन की परम्परा, महर्षियों के एकत्र होने का कारण, महर्षियों की गणना

मनुष्य के जीवन काल में 3 एषणाएँ (इच्छाएँ) होती हैं – प्राण-एषणा धन-एषणा परलोक-एषणा मनुष्य की आयु – सतयुग – 400 वर्ष त्रेतायुग – 300 वर्ष द्वापरयुग – 200 वर्ष कलयुग – 100 वर्ष अनुबन्ध चतुष्ट्य – अभिधय प्रयोजन सम्बन्ध अधिकारी सूत्रस्थान में चार प्रकार के सूत्रों का निर्देश किया गया है – गुरुसूत्र –

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उद्गार वेग रोधज रोग-चिकित्सा, छींक के वेग को रोकने से हानि, हिक्का वेग रोधज रोग-चिकित्सा, तृषा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, क्षुधा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, निद्रा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, कास वेग रोधज रोग-चिकित्सा, श्रमश्व स वेग रोधज रोग-चिकित्सा, जृम्भा वेगरोधज रोग-चिकित्सा

उदगारवेगरोध जन्य रोग तथा उसकी चिकित्सा — धारणात् पुनः ॥7॥उद्गारस्यारुचिः कम्पो विबन्धो हृदयोरसोः । आध्मानकासहिध्माश्च  हिध्मावत्तत्र भेषजम् ॥8॥ उद्गार (डकार) का वेग रोकने से अरुचि (भोजन में अनिच्छा/Anorexia) कम्प (अज्ञों का कांपना Tremor), हृदय एवं वक्ष में जकड़ाहट, आध्मान (Flatulance), कास तथा हिक्का (hiccough) होती है। इसमें हिक्का रोग के समान चिकित्सा करनी चाहिए। छींक

उद्गार वेग रोधज रोग-चिकित्सा, छींक के वेग को रोकने से हानि, हिक्का वेग रोधज रोग-चिकित्सा, तृषा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, क्षुधा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, निद्रा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, कास वेग रोधज रोग-चिकित्सा, श्रमश्व स वेग रोधज रोग-चिकित्सा, जृम्भा वेगरोधज रोग-चिकित्सा Read More »

वेगों को रोकने का निषेध, अपान वायु को रोकने से हानि, मल वेग रोधज रोग,मूत्र वेग रोधज रोग, वेगरोधज रोगो की चिकित्सा

4. रोगानुत्पादनीय अध्याय जिस प्रकार का आचरण (आहार-विहार आदि) करने से रोगों की उत्पत्ति न हो अथवा जिस अध्याय में कहे जाने वाला विषय रोगों की उत्पत्ति को रोकने के लिए हितकारक है। वेगों को रोकने का निषेध वेगान्न धारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृटक्षुधाम् ।निद्राकासश्रमश्वासजृम्भाश्रुच्छर्दिरेतसाम् ॥1॥ वात (अधोवात/Flatus, विट् (पुरीष/Defecation), मूत्र (Micturition), क्षव (छींक/Sneezing), तृट् (प्यास/Thirst), क्षुधा (भूख /

वेगों को रोकने का निषेध, अपान वायु को रोकने से हानि, मल वेग रोधज रोग,मूत्र वेग रोधज रोग, वेगरोधज रोगो की चिकित्सा Read More »