उद्गार वेग रोधज रोग-चिकित्सा, छींक के वेग को रोकने से हानि, हिक्का वेग रोधज रोग-चिकित्सा, तृषा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, क्षुधा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, निद्रा वेग रोधज रोग-चिकित्सा, कास वेग रोधज रोग-चिकित्सा, श्रमश्व स वेग रोधज रोग-चिकित्सा, जृम्भा वेगरोधज रोग-चिकित्सा

उदगारवेगरोध जन्य रोग तथा उसकी चिकित्सा

धारणात् पुनः ॥7॥
उद्गारस्यारुचिः कम्पो विबन्धो हृदयोरसोः ।
आध्मानकासहिध्माश्च  हिध्मावत्तत्र भेषजम् ॥8॥

  • उद्गार (डकार) का वेग रोकने से अरुचि (भोजन में अनिच्छा/Anorexia)
  • कम्प (अज्ञों का कांपना Tremor), हृदय एवं वक्ष में जकड़ाहट,
  • आध्मान (Flatulance), कास तथा हिक्का (hiccough) होती है।
  • इसमें हिक्का रोग के समान चिकित्सा करनी चाहिए।

छींक का वेग रोकने से उत्पन्न रोग एवं उसकी चिकित्सा

तीक्ष्णधूमाञ्जनाघ्राणनावनार्कविलोकनैः ॥9॥
प्रवर्तयेत् क्षुतिं सक्तां स्नेहस्वेदौ च शीलयेत्

  • तीक्ष्ण धूमपान (Smoking)
  • तीक्ष्ण अंजन, तीक्ष्ण नस्य तथा
  • सूर्य की ओर देखकर छींक को प्रवृत्त करना चाहिए।
  • स्वेदन तथा स्नेहन करना चाहिए ।

तृषा रोकने से उत्पन्न व्याधि तथा चिकित्सा

शोषाङ्गसादबाधिर्यसम्मोहभ्रमहृद्गदाः ||10||
तृष्णाया निग्रहात् तत्र शीतः सर्वो विधिर्हितः ।

  • तृषा (प्यास) का वेग रोकने से शोष (मुखशोष/Dryness of mouth),
  • अङ्गसाद (अनुत्साह), बाधिर्य (Deafness), सम्मोह (बेहोशी/Fainting),
  • भ्रम (चक्कर आना/Giddiness) तथा हृद्रोग होता है ।
  • इसमें सभी प्रकार के शीतल स्नान एवं अन्नपान आदि का प्रयोग चाहिए ।

क्षुधा का वेग रोकने से उत्पन्न व्याधि तथा चिकित्सा

अङ्गभङ्गारुचिग्लानिकार्श्यशूलभ्रमाः क्षुधः ।।11॥
तत्र योज्यं लघु स्निग्धमुष्णमल्पं च भोजनम् ।

  • भूख को रोकने से अङ्गों का टूटना, अरुचि, ग्लानि (अप्रहर्ष), कार्श्य (कृशता/ Emaciation),  शूल (वेदना) तथा भ्रम होता है।
  • इसमें लघु (शीघ्रपाकी/Light food), स्निग्ध, उष्ण तथा अल्प भोजन करना चाहिए।

निद्रा का वेग रोकने से उत्पन्न व्याधि तथा चकित्सा

निद्राया मोहमूर्धाक्षिगौरवालस्यजृम्भिकाः॥12॥
अङ्गमर्दश्च, तत्रेष्टः स्वप्नः संवाहनानि च ।

  • निद्रा का वेग रोकने से मोह (बेहोशी), मूर्धा (शिर/Head) एवं नेत्रों में भारीपन, आलस्य, जम्भाई तथा अङ्गमर्द (Malaise) होता है।
  • इसमें शयन तथा सेवाहन (स्वल्प मर्दन/ Massage of the body) अभीष्ट है।

कास का वेग रोकने से उत्पन्न व्याधि तथा चिकित्सा

कासस्य रोधात् तद् वृद्धिः श्वासारुचिहृदामयाः ॥13॥
शोषो हिध्मा च, कार्योऽत्र कासहा सुतरां विधिः ।

  • कास का वेग रोकने से कास की वृद्धि, श्वास, अरुचि, हृद्रोग, शोष (राजयक्ष्मा/Tuberculosis) तथा हिक्का होता है।
  • इसमें कासध्न उपचार करना चाहिए।

श्रमश्वास वेग को रोकने से उत्पन्न व्याधि तथा चिकित्सा

गुल्महृद्रोगसम्मोहाः श्रमश्वासाद्विधारितात् ॥14॥
हितं विश्रमणं तत्र  वातध्नश्च  क्रियाक्रमः।

  • व्यायामादि श्रमजन्य श्वास के वेग को रोकने से गुल्मरोग,
  • हृद्रोग तथा सम्मोह (Fainting) होता है।
  • इसमें विश्राम (आराम करना) तथा वातनाशक उपचार हितकर है।

जृम्भारोध से होने वाले रोग तथा चिकित्सा

जृम्भायाः क्षववद्रोगाः सर्वश्चानिलजिद्विधिः ॥15॥

  • जम्भाई का वेग रोकने से छींक के वेग को रोकने के समान रोगों की उत्पत्ति होती है। (सिर में पीड़ा, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों में कमजोरी, मन्यास्तम्भ, अर्दित रोग)
  • इसमें वातनाशक सभी चिकित्सा करनी चाहिए।

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