अश्रु वेगरोधज रोग- चिकित्सा, छर्दि वेग रोधज रोग -चिकित्सा, शुक्र के वेग को रोकने के कारण उत्पन्न रोग-चिकित्सा, वेगरोधी के असाध्य लक्षण, सामान्य चिकित्सा

अश्रु का वेग रोकने से होने वाले रोग तथा चिकित्सा

पीनसाक्षिशिरोहृद्रुङ्मन्यास्तम्भारुचिभ्रमाः ।
सगुल्मा बाष्पतस्तत्र स्वप्नो मद्यं प्रियाः कथाः।।6।।

  • अश्रु का वेग रोकने से पीनस (प्रतिश्याय – नासास्राव), अक्षिरोग, शिरोरोग, हृद्रोग, मन्यास्तम्भ (Torticollis), अरुचि, भ्रम तथा गुल्म होता है।
  • इसमें शयन, मद्यपान तथा प्रिय कहानियों का श्रवण करना चाहिए।

 छर्दि  का वेग रोकने से होने वाले रोग तथा चिकित्सा

विसर्पकोठकुष्ठाक्षिकण्डूपाण्ड्वामयज्वराः ।
सकासश्वासहृल्लासव्यङ्गश्वयथवो वमेः 17॥
गण्डूषधूमानाहारं रूक्षं भुक्त्वा तदुद्वमः ।
व्यायामः स्रुतिरस्रस्य शस्तं चात्र विरेचनम् ॥18॥
सक्षारलवणं तैलमभ्यङ्गर्थ   च    शस्यते ।

  • छर्दि का वेग रोकने से विसर्प रोग (Erysipelas), कोठ (चकते पड़ जाना), कुष्ठ रोग (Skin diseases), नेत्ररोग, पाण्डुरोग (Anaemia), ज्वर, कास, श्वास, हृल्लास (हृदय में व्यथा/nausea), व्यंग (श्यामल मण्डल/Black pigmentation of face) तथा शोथ (oedema) होता है। 
  • इसमें गण्डूष, धूमपान, अनाहार (उपवास), रुक्ष अन्न खाकर पुनः वमन करना, व्यायाम, रक्तविस्रावण (Blood letting) तथा विरेचन करना चाहिए और क्षार तथा लवण मिलाकर तैल से अभ्यंग  करना चाहिए।
Blood letting - it is the withdrawal of blood from a patient to prevent or cure illness and disease.

शुक्र का वेग रोकने से होने वाले रोग तथा चिकित्सा

शुक्रात् तत्स्त्रवणं गुह्यवेदनाश्वयथुज्वराः 19॥                
हृद्व्यथामूत्रसङ्गाङ्गभङ्गवृद्ध्यश्मषण्ढताः।
ताम्रचूडसुराशालिबस्त्यङ्गावगाहनम 20॥ 
बस्तिशुद्धिकरैः सिद्धं भजेत् क्षीरं प्रियाः स्त्रियः।

  • शुक्र का वेग रोकने से शुक्रस्राव (Seminal discharge), गुह्य वेदना (लिङ्ग तथा वृषण में वेदना), शोध, ज्वर, हृदय में पीड़ा (Cardiac pain), मूत्र संग (मूत्र की  अप्रवृति / Retention of urine), अंगभंग (Malaise), वृद्धि  (मुष्कवृद्वि-अण्डवृद्धि/inguioscrotal swelling), अश्म (अश्मरी) तथा षण्डता (Impotency) होती है।
  • इसमें ताम्रचूड (कुक्कुट) का मांस, सुरापान, शालिचावल, बस्तिकर्म,  अभ्यंग  तथा अवगाहन प्रशस्त है।
  • बस्ति (मूत्राशय) को शुद्ध करने वाले (मूत्रप्रवर्तक) गोक्षुर आदि औषधियों द्वारा सिद्ध किये हुए दुग्ध का सेवन तथा प्रिय स्त्रियों के साथ सहवास करना चाहिए।

चिकित्सा निषेध/वेगरोधी के असाध्य लक्षण

तृट्‌ शूलार्तं त्यजेत् क्षीणं विड्वमं वेगरोधिनम् ॥21॥

  • वेग धारण करने वाला यदि प्यास एवं शूल से पीड़ित हो, क्षीण (कृश) हो गया हो तथा पुरीष का वमन कर रहा हो, तो उसकी चिकित्सा न करें।

रोगों का सामान्य निदान

रोगाः सर्वेऽपि जायन्ते वेगोदीरणधारणैः

  • सभी प्रकार के रोग वेगोदीरण (वेगों के बलात प्रवर्तन) एवं वेगविधारण से होते हैं।

वेगोदीरण – धारण से उत्पन्न रोगों की चिकित्सा/ सामान्य चिकित्सा

निर्दिष्टं साधनं तत्र भूयिष्ठं ये तु तान् प्रति ॥22॥
ततश्चानेकधा प्रायः पवनो यत् प्रकुप्यति ।
अन्नपानौषधं तस्य युञ्जीतातोऽनुलोमनम् ॥23॥

  • वेगोदीरण तथा वेगविधारण करने पर जो व्याधियाँ बहुलता से होती हैं, उनका साधन (चिकित्सा) कहा जा चुका है।
  • वेगोदीरण तथा वेगधारण द्वारा प्राय: अनेक प्रकार से वायु प्रकुपित होती है, इसलिए उस वायु का अन्नपान एवं औषध से अनुलोमन करना चाहिए ।

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