Introduction to Shalya Tantra (शल्यतन्त्र परिचय)

1. शल्य की परिभाषा :-

अतिप्रवृद्धं मलदोषजं वा शरीरिणां स्थावरजङ्गमानाम्। यत्किञ्चिदाबाधकरं शरीरे तत्सर्वमेव प्रवदन्ति शल्यम्।                                                                                               (डल्हण)

  • अर्थात् अत्यधिक बढ़े हुए दोष (शारीरिक एवं मानसिक) अथवा मल पदार्थ जिससे शरीर को कष्ट होता हो, तथा किसी भी स्थावर अथवा जांगम पदार्थ (foreign body) द्वारा शरीर में रूजा (pain) उत्पन्न हो उसे शल्य कहा जाता है।

सर्वशरीरबाधकरं शल्यम् । (सु.सू. 26/4)

  • जो समस्त शरीर में बाधा उत्पन्न करते हैं उन्हें शल्य कहते हैं।


2. शल्यतन्त्र की परिभाषा लिखिए। 

तत्र शल्यं नाम विविधतृणकाष्ठपाषाणपांशुलोहलोष्टास्थि बालनखपूयासावदुष्टवणान्तगर्भ शल्योद्धरणार्थ, यन्त्रशस्त्रक्षाराग्निप्रणिधानवणविनिश्चयार्थञ्च।             (सु. सू. 1/9)

 

  • अर्थात् आयुर्वेद के जिस अंग में अनेक प्रकार के तृण, काष्ठ (लकड़ी), पत्थर, धूलि के कण, लौह, मिट्टी, अस्थि, केश, नाखून, पूय (Pus), स्राव (Discharge) आदि शल्य, दूषित व्रण, अन्तः शल्य तथा मृतगर्भ शल्य को निकालने का ज्ञान, यन्त्र, शस्त्र, क्षार और अग्निकर्म करने का ज्ञान, तथा व्रणों की आम, पच्यमान, और पक्वावस्था आदि का निश्चय किया जाता हो, उसे शल्य तन्त्र कहते हैं।

  • इन सभी को शल्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये शरीर में पीड़ा उत्पन्न करते हैं।


3. शल्य चिकित्सक के गुणों का वर्णन कीजिए। 

शौर्यमाशुक्रिया शस्त्रतक्ष्ण्यमस्वेदवेपथु।             

असम्मोहश्च वैद्यस्य शस्त्रकर्मणि शस्यते। (सु.सू.5/10)

  • शूरता (निर्भयता, braveness)

  • शस्त्र कर्मादि में शीघ्रता

  • शस्त्रों की धार का उचित तीक्ष्ण होना/रखना

  • शस्त्र कर्म करते समय पसीना न आना तथा हाथ का न काँपना (Trembling) तथा

  • बड़े शस्त्र कर्म की दशा में अत्यधिक रक्तादि को देखकर मूर्च्छित न होना, ये शल्य चिकित्सक के गुण हैं।

आधुनिक मतानुसार Surgeon  के निम्न गुण होने चाहिए-

  • Lady’s finger – gentle handling 

  • Lion’s heart – boldness

  • Eagle’s eye – Watchfullness 

  • Horse’s leg – Stamina

  • Camels belly – Ability to carry on without food and water


4. आचार्य सुश्रुतानुसार यन्त्र की परिभाषा, संख्या, तथा प्रकार बताइए। 

यन्त्र की परिभाषा

तत्र, मनः शरीराबाधकराणि शल्यानि, तेषामाहरणोपायो यन्त्राणि।            (सु.सू. 7/4)

  • मन एवं शरीर, इनमें बाधा उत्पन्न करने वाले भावों को ( पदार्थो को ) शल्य कहते हैं और शल्य का निर्हरण जिन उपकरणों की सहायता से किया जाता है, उन्हें यन्त्र कहते हैं |

यन्त्र प्रकार – 6 यन्त्र                                                                                यन्त्र कुल संख्या – 101

1. स्वस्तिक यन्त्र

24

2. संदंश यन्त्र

02

3. ताल यन्त्र

02

4. नाड़ी यन्त्र

20

5. शलाका यन्त्र

28

6. उपयन्त्र

25

 

  • यन्त्रों की संख्या 101 होती है तथा इनमें हस्त प्रधानतम यन्त्र है, क्योंकि हस्त के अभाव में यन्त्रों का प्रयोग करना असंभव है।

 

यन्त्र के  6 गुण –

समाहितानि यंत्राणि खरश्लक्ष्णमुखानि च।

सुदृढानि सुरूपाणि सुग्रहाणि च कारयेत्।। (सु.सू.7/9)

  • समाहितानि : यन्त्र प्रमाणबद्ध होने चाहिए, ना कि अधिक बड़े अथवा छोटे होने चाहिए।

  • खरश्लक्ष्णमुख : आवश्यकता के अनुसार खर अथवा मृदु मुख होने वाले होने चाहिए।

  • सुदृढानि : अत्यन्त मजबूत होने चाहिए।

  • सुरूपाणि : सुंदर रूप होने वाले अर्थात् दिखने में उत्तम होने चाहिए।

  • सुग्रहाणि : शल्य को ग्रहण करने की दृष्टि से सुलभ होने चाहिए।

यन्त्र के 12 दोष –

यत्र अतिस्थूलम् असारम्, अतिदीर्घम्, अतिहृस्वम्, अग्राहि, विषमग्राहि, वक्रं शिथिलम्, अत्युन्नतं, मृदुकीलं, मृदुमुखम्, मृदुपाशमिति द्वादश यन्त्रदोषाः। (सु.सू. 7/20)

  1. अतिस्थूल : यन्त्रों की मोटाई अधिक नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अधिक मोटा यन्त्र भद्दा (clumsy) प्रतीत होता है।

  2. असार : यन्त्र सारवान अथवा उत्तम धातु से निर्मित होने चाहिए, यदि अशुद्ध लोह से निर्मित होंगे तो शीघ्र ही टूट जायेंगे।

  3. अतिदीर्घम् : यन्त्र अत्यधिक लम्बे नहीं होने चाहिए।

  4. अतिहृस्वं : यन्त्र अत्यधिक छोटे नहीं होने चाहिए।

  5. अग्राहि : जिस यन्त्र की पकड़/ग्रहण की क्षमता उत्तम नहीं हो।

  6. विषमग्राहि : जिसकी पकड़ विषम स्वरूप की हो, अर्थात् जो सम्पूर्ण शल्य को ना पकड़ सके।

  7. वक्रं : यन्त्र टेढ़े – मेढ़े नहीं हों।

  8. शिथिलं : यन्त्र शिथिल होने से पकड़ने में नहीं आता।

  9. अत्युन्नतं : जिनका कोई भाग ऊपर की ओर उठा हुआ हो।

  10. मृदुकीलं : मृदु/मुलायम कीलयुक्त यन्त्र जोर लगाने पर टूट सकता है।

  11. मृदुमुखं : मुख/पकड़ मृदु होने से शल्य को पकड़ना कठिन होता है।

  12. मृदुपाशं : ऐसे यन्त्र जिनकी पकड़ ढीली हो चुकी है।


5. प्रशस्त यन्त्र के गुणों का वर्णन कीजिए। 

एतैर्दोषैर्विनिर्मुक्तं यन्त्रमष्टादशांगुलम्।

प्रशस्तं भिषजां ज्ञेयं तद्धि कर्मसु योजयेत्। (सु.सू. 7/21)

  • यन्त्रदोष से वर्जित अर्थात् यंत्रदोष रहित 18 अंगुल लंबाई वाला यन्त्र प्रशस्त होता है।