परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण
परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण
अमृतीकरण : –
लोहादीनां मृतानां वै शिष्टदोषापनुत्तये।
क्रियते यस्तु संस्कार अमृतीकरणं मतम् । ।
- धातुओं आदि की भस्म करने के पश्चात् भी उसमें शेष रहे हुए दोषों को दूर करने वाले संस्कार को अमृतीकरण कहते है ।
- अमृतीकरण से गुण की वृद्धि तथा वर्ण की हानि होती है ।
लोहितीकरण : –
- अमृतीकरण से भस्म में वर्ण हानि होती है, अतः रक्तवर्ण उत्पन्न करने के लिए भस्म में जो क्रिया की जाय, उसे लोहितीकरण कहते है ।
- अभ्रक भस्म का अमृतीकरण करने पर वर्ण काला हो जाता है, अतः अभ्रक भस्म का लोहितीकरण किया जाता है ।
मृतलौह :-
तर्जन्यङ्गुष्ठंसंघृष्टं यत्तद्रेखान्तरं विशेत् ।
मृत लौहं तद्दुदिष्टं रेखापूर्णाभिधानतः ।।
- किसी भी धातु की भस्म को तर्जनी और अंगुष्ठ के बीच मलने पर यदि वह भस्म अंगुली की रेखाओं में घुस जाय और पोंछने पर भी भस्म का सूक्ष्म अंश रेखाओं में रह जाये, उस भस्म को मृतलौह कहते है ।
सत्त्वपातन : –
क्षाराम्लद्रावकैर्युक्तं ध्मातमाकरकोष्ठके ।
यस्ततो निर्गतः सारः सत्त्वमित्यभिधीयते ॥
- क्षारवर्ग अम्लवर्ग, द्रावकगण की औषधियों के साथ किसी धातु खनिज, रत्न या अन्य द्रव्य को मर्दन कर, गोलक बनाकर, सुखाकर, मूषा में रखकर, सत्त्वपातन कोष्ठी में तीव्र धमन करने से मूल पदार्थ का जो साररूप पदार्थ प्राप्त होता है, उसे सत्त्व कहते है
कज्जली : –
धातुभिर्गन्धकाद्यैश्च निवैर्मर्दितो रसः।
सुश्लक्ष्णः कज्जलाभोऽसौ कज्जलीत्यभिधीयते ।।
- द्रव पदार्थ के बिना शुद्ध पारद और शुद्ध गन्धक अथवा किसी धातु के साथ पारद डालकर मर्दन करने पर सुश्लक्ष्ण कज्जल की आभा वाला चूर्ण तैयार होता है, उसे कज्जली कहते है ।
शुद्धावर्त : –
यदा हुताशो दीप्तार्चि शुक्लोत्थानसमन्वितः ।
शुद्धावर्तस्तदा ज्ञेयः सकालः सत्त्वनिर्गमे ।
- जब अग्नि अच्छी तरह प्रज्वलित होकर श्वेतवर्ण के प्रकाश के साथ चमकने लगती है तब उसे शुद्धावर्त कहते है ।
- इस तापक्रम पर प्रायः सभी धातुओं का सत्त्व निकलता है ।
बीजावर्त : –
द्राव्य द्रव्यनिभा ज्वाला दृश्यते धमने यदा ।
द्रावस्योन्मुखता सेयं बीजावर्तः स उच्यते ।
- जब धातुओं को द्रवित करने के लिए, धमन करने से द्रवित किये जाने वाले द्रव्य के अनुरूप ज्वाला निकले और द्रव्य ( धातु ) का द्रवीभूत होना प्रारम्भ हो जाये, उसे बीजावर्त कहते है ।
- बीजावर्त के बाद शुद्धावर्त की स्थिति आती है ।
- सत्त्वपातन की प्रक्रिया बीजावर्त की स्थिति में ( द्रवीभवन ) शुरु होकर शुद्धावर्त की स्थिति में पूर्ण होती है ।
Rasa Shastra – Pribhasa evum dravya prakaran – 2