पंचकर्म परिचय

1. पंचकर्म की परिभाषा लिखिए। 

Ans. शोधन की वह विधि जिसके द्वारा शरीर के वृद्ध दोषों या उत्क्लिष्ट कराकर दोषों को प्रायः कोष्ठ में लाकर उनके निकटतम प्राकृत मार्ग से बाहर निकाल कर त्रिदोष साम्य स्थापित कर अपुनर्भव को प्राप्त करते है, उसे पंचकर्म कहते हैं।

अपुनर्भव = पुनः जन्म न लेना

पांच कर्म = वमन, विरेचन, अनुवासन, निरूह, नावन (नस्य) है।


2. पंचकर्म में रक्तमोक्षण सम्मिलित नहीं है । स्पष्ट कीजिए। 

Ans.

  1. रक्तमोक्षण एक शल्य प्रधान चिकित्सा (शोधन) है।

  2. पंचकर्म में प्राकृत स्रोतो द्वारा ही शोधन होता है।

  3. रक्तमोक्षण हेतु ऐसा प्राकृत स्त्रोत नहीं है, कृत्रिम बनाना पडता है।

  4. वमन, विरेचन आदि में दोष व्यवस्था है।

 

शरीरजानां दोषाणां क्रमेण परमौषधम्।

बस्तिर्विरेको वमनं तथा तैलं घृतं मधु॥ (अ. हृ. सू. 1/25)

  • वमन – कफ के लिए

  • विरेचन – पित्त के लिए

  • बस्ति – वात के लिए

परन्तु रक्त मोक्षण पर सीधे दोष व्यवस्था नहीं है, किन्तु आश्रय-आश्रयी भाव से पित्त दोष से सम्बन्धित है।


3. पंचकर्म (शोधन) का महत्व स्पष्ट कीजिए। 

Describe the importance of Panchkarma.

Ans.

दोषाः कदाचित्कुप्यंति जिता लंघन पाचनैः।

जिताः संशोधनैर्येतु न तेषां पुनरुद्भवः।। (च. सू. 16/20)

शमन चिकित्सा द्वारा दोषों का प्रशमन तो होता है परन्तु पुनः प्रकोप की सम्भवना बनी रहती है परन्तु संशोधन करने से मूल से ही दोष नष्ट होता है जिससे उसका पुनःरुद्भव नहीं होता है।

जिस प्रकार वृक्ष के नष्ट हो जाने पर भी यदि उसका मूल न नष्ट किया जाए तो उसमें पुनः हरापन (जीवन) आ जाता है, उसी प्रकार यदि रोगों को समूल नष्ट न किया जाए तो पुनः रोग उत्पत्ति सम्भव है।”

संशोधन सशमनं निदानस्य च वर्जनम्।

एतावद्भिषजा कार्य रोगे रोगे यथाविधि।। (च. वि. 7/30)

चिकित्सा के तीन प्रकार-

  • संशोधन

  • सशंमन और

  • निदान परिवर्जन

जिसका चिकित्सक को प्रत्येक रोग में इन तीनों का प्रयोग विधिपूर्वक करना चाहिए।

दोषों की वृद्धि की अवस्था को निवारण करने के लिए 3 प्रकार की चिकित्सा वर्णित है:

1. अंत: परिमार्जन-शोधन

2. बहिः परिमार्जन – अभ्यंग, स्वेदन, परिषेक, उवर्तन

3. शस्त्र प्रणिधन – शल्य कर्म

इस प्रकार चिकित्सा के प्रकार तथा सिद्धान्तों में पंचकर्म का विशिष्ट रूप से वर्णन है।


4. त्रिविध कर्म का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

Ans.      1. पूर्वकर्म       2. प्रधान कर्म       3. पश्चात कर्म

1. पूर्वकर्म

  • पञ्चकर्म द्वारा जिस व्यक्ति का शोधन करना होता है, उससे पूर्व जो कर्म किये जाते हैं, उन्हें पूर्वकर्म कहते हैं।

  • पूर्वकर्म तीन प्रकार के हैं-

          1. दीपन/पाचन,

          2. स्नेहन और

          3. स्वेदन।

(i) दीपन/पाचन-

  • सम्यक् पाचनार्थ अग्नि को प्रदीप्त करने वाली औषधि और आम पाचन हेतु औषधों का प्रयोग करना दीपन-पाचन कर्म है।

(ii) स्नेहन-

  • घृत-तैल-वसा-मज्जा ये चार उत्तम स्नेह हैं और इनके सदृश्य स्नेहों का प्रयोग बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार से किया जाता है।

  • बाह्य प्रयोग में तेल या अन्य स्नेह द्वारा अभ्यंग आदि किया जाता है।

(iii) स्वेदन-

स्वेदन दो प्रकार से किया जाता है-

(A) साग्नि और

(B) निराग्नि।

(A) साग्नि में अग्नि से तपाकर संकर, प्रस्तर, नाडी, जेन्ताक आदि तेरह प्रकार से स्वेदन किया जाता है।

(B) निराग्नि स्वेद में व्यायाम कराकर, उष्ण सदन (गर्म कक्ष में रखकर), गुरु प्रवाहण (रजाई आदि ओढ़ाकर), क्रोध, क्षुधा आदि उपायों से बिना अग्नि संयोग के स्वेदन कराया जाता है।

2. प्रधानकर्म-

  • वमन, विरेचन, बस्ति, नस्य और रक्तमोक्षण या वमन, विरेचन, निरुह व अनुवासन बस्ति तथा नस्य। ये पाँच प्रधान कर्म है।

3. पश्चात कर्म-

  • वमन-विरेचन आदि के द्वारा शरीर का शोधन करने के पश्चात्, अग्नि वृद्धि हेतु और बलाधान के लिए तथा शरीर को प्राकृत अवस्था में लाने हेतु जो कर्म किये जाते हैं, वे पश्चात् कर्म कहे जाते हैं।

            (i) संसर्जन क्रम

            (ii) रसायन-वाजीकरण प्रयोग और

            (iii) शमन प्रयोग।

 

(i) संसर्जन कर्म-

  • पञ्चकर्म द्वारा शोधन किये जाने पर जठराग्नि दुर्बल हो जाती है और आहार का पाचन करने में क्षीण/असमर्थ होती है, अतः अग्नि वर्द्धन हेतु आहार कल्पना लघु से गुरु की ओर की जाती है।

  • जैसे पेया, विलेपी, यूष, मांसरस और कृत मांसरस, क्रमशः उत्तम-मध्यम-अवर शुद्धि के अनुसार खिलाकर तदन्तर प्राकृत आहार दिया जाता है, इस क्रम को संसर्जनक्रम कहते है।

(ii) रसायनादिक्रम-

  • यदि किसी व्यक्ति का शोधन रसायन या वाजीकरण औषध-सेवन कराने के लिए किया गया हो, तो उस व्यक्ति को संसर्जन क्रम के पश्चात् रसायन या वाजीकरण औषध का प्रयोग करना चाहिए।

(iii) शमन चिकित्सा-

  • रोगी को संसर्जनक्रम के पश्चात् रोगानुसार रोगनाशक औषध का प्रयोग कराना चाहिए।