1. आचार्य चरक तथा सुश्रुतानुसार गर्भ की परिभाषा लिखिए।

Ans.  “शुक्र शोणितं जीव संयोगे तु खलु कुक्षिगते गर्भ संज्ञा भवति।” ( च. शा. 4/5)

स्त्री के शरीर (Uterus, गर्भाशय) में पुरुष का शुक्र, स्त्री का आर्तव और जीवात्मा का मिलन होने पर उसे गर्भ कहा जाता है।

  1. “शुक्र शोणितं गर्भाशयस्थं आत्मप्रकृतिविकार सम्मूर्च्छितं गर्भ इत्युच्यते ।” (सु. शा. 5/3)

स्त्री के शरीर में (गर्भाशय, Uterus) शुक्र-शोणित का मिलन होकर उसमें आत्मा, प्रकृति और विकार इन सबका संयोग होता है, तब उसे गर्भ कहते हैं।


2. सुश्रुतानुसार शरीर की परिभाषा लिखिए। 

“शुक्र शोणितं गर्भाशयस्थं आत्मप्रकृतिविकार सम्मूर्च्छितं गर्भ इत्युच्यते ।

तं चेतनावस्थितं वायुर्विभजति, तेज एनं पचति, आपः क्लेदयन्ति, पृथ्वी संहन्ति, आकाशं विवर्धयति, एवं विवर्धितः स यदा हस्त पाद जिह्वा घ्राण कर्णनितंवादिभिरंगैरुपेतः तदा शरीरं इति सज्ञां लभते ।।” (सु. शा. 5/3)

स्त्री के शरीर में (गर्भाशय, Uterus) शुक्र-शोणित का मिलन होकर उसमें आत्मा, प्रकृति और विकार इन सबका संयोग होता है, तब उसे गर्भ कहते हैं।

इस चेतन गर्भ का वायु तत्व द्वारा विभाजन और वृद्धि होती है।

तेज (अग्नि) तत्व द्वारा पाचन होता है, आप (जल) तत्व द्वारा द्रवीभवन होता है अर्थात् जल क्लिनता पैदा करता है।

पृथ्वी तत्व से संहनन और घनता उत्पन्न होती है और आकाश तत्व द्वारा रिक्तता निर्माण होकर उसका आकार बढ़ता है।

इस प्रकार पाँचों महाभूतों द्वारा गर्भ पर कार्य होने से जब उसे हाथ, पैर, जिह्वा, नाक, कान, नितम्ब आदि अंग-प्रत्यंग निर्माण होते हैं, तब उसे शरीर कहा जाता है।


3. Define the anatomical position of the body.

Ans. The subject stands erect facing the observer, with feet flat on the floor, arms at sides and palms, turned forward.

4. आचार्य चरकानुसार शरीर की परिभाषा लिखिए। 

Ans.तत्र शरीरं नाम चेतनाधिष्ठानभूतं पञ्चमहाभूतविकार समुदायात्मके समयोगवाहि ।”  (च.शा. 6/4)

चेतना (आत्मा) का अधिष्ठान और पंचमहाभूत रुपी विकारों का समुदाय शरीर कहलाता है।

यह शरीर समयोगवाही होता है, अर्थात् सप्तधातु, तीन दोष एवं मलों के समावस्था में रहने पर ही गति करता है।


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