हेमन्त ऋतुचर्या, प्रातः काल के कर्तव्य, स्नान आदि की विधि, शीत नाशक उपाय, निवास विधि

हेमन्त ऋतुचर्या

बलिनः शीतसंरोधाद्धेमन्ते प्रबलोऽनलः ॥7॥
भवत्यल्पेन्धनो धातून् स पचेद्वायुनेरितः ।
अतो हिमेऽस्मिन्सेवेत स्वाद्वम्ललवणान्रसान् ।।8।।

  • हेमन्त ऋतु में काल स्वभाव से पुरुष बलवान् होता है क्योंकि शीत के कारण अवरुद्ध होने से (रोमकूपों के शीत से अवरूद्ध होने के कारण) शरीर की ऊष्मा जाठराग्नि को प्रबल कर देती है।
  • इसलिए आहाररूपी इंधन के न मिलने पर वह अग्नि वायु द्वारा प्रेरित होकर रस आदि धातुओं का पाचन करने लगती है।
  • इसलिए हेमन्त ऋतु में वातनाशक मधुर, अम्ल एवं लवण रस पदार्थों का विशेषरूप में सेवन करना चाहिए।

प्रातःकाल के कर्तव्य

दैर्घ्यान्निशानामेतर्हि प्रातरेव बुभुक्षितः ।
अवश्यकार्यं सम्भाव्य यथोक्तं शीलयेदनु ॥9॥
वातघ्नतैलैरभ्यङ्गं मूर्ध्नि तैलं विमर्दनम् ।
नियुद्धं कुशलैः सार्धं पादाघातं च युक्तितः ॥10॥

  • हेमन्त ऋतु में रात्रि बड़ी होती है, इसलिए प्रातःकाल उठते ही भूख लग जाती है। इसलिए प्रात:कालीन दिनचर्या पूर्ण करके उसके बाद यथोक्त (सेवेत् स्वाद्वम्ललवणान्रसान्) मधुर-अम्ल -लवण रस वाले पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • प्रतिदिन वातनाशक तैलों से अभ्यंग करना चाहिए।
  • सिर पर तैल का मर्दन करे।
  • कुशल लड़ने वालों के साथ (नियुद्ध) बाहुयुद्ध करना चाहिए।
  • युक्तिपूर्वक पैरों से मर्दन करना चाहिए।

स्नान आदि की विधि

कषायापहृतस्नेहस्ततः स्नातो यथाविधि।
कुङ्‌कुमेन सदर्पेण प्रदिग्धोऽगुरुधूपितः ॥11॥

  • आँवला आदि कषायरस प्रधान द्रव्यों के कल्क (चटनी के समान पीसे हुए द्रव्य) से अभ्यंग के स्नेह को दूर करे, फिर विधिपूर्वक स्नान करे।
  • उसके बाद शरीर को पोंछकर कुंकुम (केशर/ Crocus sativus) एवं दर्प (कस्तूरी) आदि उष्णगुण प्रधान द्रव्यों का लेप करे।
  • अगुरु (Aquilaria agallocha) का धूप लेवे तथा इसके पश्चात् भोजन करें।

रसान् स्निग्धान् पलं पुष्टं गौडमच्छसुरां सुराम् ।
गोधूमपिष्टमाषेक्षुक्षीरोत्थविकृतीः शुभाः ॥
नवमन्नं वसां तैलं शौचकार्ये सुखोदकम् ।

  • भोजन में स्नेहयुक्त (घी-तेल में भुना गया) मांसरस स्वस्थ (पुष्ट) प्राणियों के मांस का होना चाहिए।
  • (गौड) गुड़ से बने पदार्थ, (अच्छसुरा) स्वच्छ मद्य, सुरा (मदिरा), (गोधूम) गेहूँ का आटा, (माष) उड़द की दाल, इक्षुरस (Saccharum officinarum) तथा दूध के बने पदार्थ, नया अन्न, वसा एवं तैल का सेवन करें।

प्रावाराजिनकौशेयप्रवेणीककौचवास्तृतम् ॥13॥
उष्णस्वभावैर्लघुभिः प्रावृतः शयनं भजेत् ।

  • इस ऋतु में (प्रावार) कम्बल आदि, (अजिन) मृगचर्म, (कौशेय) कृमि से उत्पन्न रेशमी वस्त्र, (प्रवेणी) रंगीन ऊनी वस्त्र अथवा (कौचवा) रंग-बिरंगा गलीचा बिछाकर रखे तथा गरम एवं हल्के वस्त्र ओढकर सोयें ।

युक्त्याऽर्ककिरणान् स्वेदं पादत्राणं च सर्वदा ॥14॥

  • युक्तिपूर्वक प्रातःकाल सूर्य की किरणों का सेवन करे।
  • जूता सदैव धारण करें।

शीतनाशक उपाय

पीवरोरुस्तनश्रोण्यः समदाः प्रमदाः प्रियाः ।
हरन्ति शीतमुष्णाङ्ग्यो धूपकुङ्कमयौवनैः ॥15॥

  • पीवर (स्थूल एवं पुष्ट) ऊरु, स्तन एवं श्रोणि वाली यौवन तथा सुरा के मद से मदमाती स्त्रियाँ कुंकुम (Crocus sativus) के लेप एवं अगुरु (Aquilaria agallocha) की धूप एवं यौवन की ऊष्मा से शीत को हर लेती है।

निवास विधि

अङ्गारतापसन्तप्तगर्भभूवेश्मचारिणः ।
शीतपारुष्यजनितो न दोषो जातु जायते ॥16॥

  • जलते अंगार से तप्त गृह के निचले हिस्से में अथवा गर्भभूवेश्म (गृहकोष्ठ) में रहने वाले नर-नारियों को शीत जनित परुषता (रूक्षता) सम्बन्धी कोई विकार नहीं होते हैं ।

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