ग्रीष्म ऋतु चर्या,सेवनीय पदार्थ, सतू्त सेवन विधि, मद्य सेवन विधि, मद्यपान का निषेध, भोजन विधान,पेय विधान, रात्रि में दुग्ध पान विधि,मध्याह्नचर्या, शयन विधान, रात्रि चर्या,मनोहर वातावरण

ग्रीष्म ऋतुचर्या

तीक्ष्णांशुरतितीक्ष्णांशु्र्ग्रीष्मे सङ्क्षिपतीव यत् ॥26॥
प्रत्यहं क्षीयते श्लेष्मा तेन वायुश्च वर्धते ।अतोऽस्मिन्पटुकट्वम्लव्यायामार्ककरांस्त्यजेत् ॥27॥

  • ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी तीक्ष्ण किरणों से जगत के स्नेहों का अधिक मात्रा में आदान (ग्रहण) कर लेता है, जिसके कारण शरीर स्थित जलीयांशश्लेष्मा का क्षय होने लगता है, जिससे वायु दोष की वृद्धि हो जाती है ।
  • इसलिए इस ऋतु में पटु (लवण), कटु, अम्ल रस प्रधान आहार, व्यायाम तथा धूप का सेवन नहीं करना चाहिए।

सेवनीय पदार्थ

भजेन्मधुरमेवान्नं लघु स्निग्धं हिमं द्रवम् ।

  • इस ऋतु  मे  मधुर, लघु (शीघ्र पच जाने वाले), स्निग्ध, शीतल एवं द्रव पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

सत्तू सेवन विधि

सुशीततोयसिक्ताङ्गो लिह्यात्सक्तून् सर्शकरान् ॥28॥

  • शीतल जल से  स्नान करें एवं शर्करा  मिलाकर सतू को चाटकर सेवन करे । (चाटने योग्य बनाने के लिए उसमें शीतल जल मिला लें)

मद्य सेवन विधि

मद्यं न पेयं, पेयं वा स्वल्पं, सुबहुवारि वा ।

  • इन दिनों मद्यपान न करे या अल्प मात्रा में पियें अथवा उसमें बहुत सा जल  मिलाकर सेवन करें।

मद्यपान का निषेध

अन्यथा शोषशैथिल्यदाहमोहान् करोति तत् ॥29॥

  • शास्त्रीय आज्ञा के विरुद्ध किया हुआ मद्यपान शोष (कृशता), शैथिल्य (शिथिलता = अंगों में ढीलापन), दाह एवं मोह (बेहोशी) आदि विकारों को पैदा कर देता है।

भोजन विधान

कुन्देन्दुधवलं शालिमश्नीयाज्जाङ्गलैः पलैः ।

  • कुन्द (पुष्प-विशेष) के समान सफेद एवं चन्द्रमा (इन्दु) के समान शीतल शालिचावल के भात को तीतर, बटेर आदि जांगल प्रदेशीय प्राणियों के मांस रस के साथ खाये।

पेय विधान

पिबेद्रसं नातिघनं रसालां रागखाण्डवौ ॥30॥
पानकं पञ्चसारं वा नवमृद्भाजने स्थितम् ।
मोचचोचदलैर्युक्तं साम्लं मृन्मयशुक्तिभिः ॥31॥
पाटलावासितं चाम्भः सकर्पूरं सुशीलतम् ।

  • मांस रस ईषत् सान्द्र (नातिघन) अर्थात,हल्का गाढ़ा, रसाला (शिखरिणी), राग (रायता), खाण्डव (मधुर, अम्ल, लवण, कटु,कषाय रस का घोल) पीये ।
  • नये मिट्टी के पात्र में बनाए गये पञ्चसार (पञ्चसार = मधु, खजूर, मुनक्का, फ़ासला, मिश्री तथा जल — इन पांचों को मिलाकर बनाया गया मन्थ) तथा मोच ( केला), चोच (नारिकेल) के पत्तों से शीतल होने के लिए ढके गये दाडिम, आँवला आदि से अम्लीकृत पानक (शर्बत) को मिट्टी के कुल्हड़ से पीये।
  • पाटला (Stereospermum suaveolens) के पुष्पों से सुगन्धित तथा कर्पूर (Cinnamomum camphora) आदि से सुशीतल जल पीये।

रात्रि में दुग्ध पान विधि

शशाङ्ककिरणान् भक्ष्यान् रजन्यां भक्षयन् पिबेत् ॥32॥
ससितं माहिषं चन्द्रनक्षत्रशीतलम्

  • रात्रि में (शशाङ्क) कर्पूर के (किरणान्) टुकड़ों से युक्त (प्रक्षेप द्रव्य के समान प्रयोग से अभिप्राय है) खाद्य पदार्थों को खाते हुए चन्द्रमा एवं तारों (नक्षत्र) से शीतल किये गये शर्करा मिश्रित भैंस का दूध सेवन करें।

मध्याह्नचर्या

अभ्रङ्कषमहाशालतालरुद्धोष्णरश्मिषु ॥33॥
वनेषु माधवीश्लिष्टद्राक्षास्तबकशालिषु ।

  • दोपहर में सूर्य के ताप से पीड़ित नर-नारी आकाश को छूने वाले बड़े शाल, ताल एवं तमाल के वृक्षों से अवरुद्ध सूर्य की रश्मियाँ तथा माधवी (लता विशेष) से आलिंगित अगूँरो (Vitis vinifera) के गुच्छों से युक्त उपवनों में शयन या आराम करें।

शयन विधान

सुगन्धिहिमपानीयसिच्यमानपटालिके ॥34॥
कायमाने चिते चूतप्रवालफललुम्बिभिः ।

  • सुगन्धित एवं शीतल जल से सिंचित पटालिका (परदो) वाले चूत (आम), प्रवाल (प्रवाल सदृश नव पल्लव), फललुम्बय (फल का गुच्छा) सेयुक्त कायमान (बाँस एवं सरपत से बने छप्पर युक्त घर) में सोयें।

कदलीदलकह्लारमृणालकमलोत्पलैः ॥35॥
कोमलैः कल्पिते तल्पे हसत्कुसुमपल्लवे ।
मध्यन्दिनेऽर्कतापार्तः स्वप्याद्धारागृहेऽथवा ॥36॥पुस्तस्त्रीस्तनहस्तास्यप्रवृत्तोशीरवारिणि

  • केले के पत्तों,कह्लार (संध्या के समय विकसित कमल पुष्प), कमल (दिन में विकसित), उत्पल (रात्रि में विकसित) कमलभेद तथा मृणाल (कमलनाल) से रचित एवं खिले पुष्पों तथा कोमल पत्तों से युक्त (तल्पे) बिस्तर पर सोये ।
  • अथवा धारागृह के समीप शयन करें, जिस घर में शिल्पियों द्वारा स्त्री की आकृति की पुतलियां बनाई हों, उसके हाथों तथा मुख से उशीर से मिश्रित सुगन्धित जल निकल रहा हो।

रात्रि चर्या

निशाकरकराकीर्णे  सौधपृष्ठे निशासु  च ॥37॥
आसाना—

  • रात्रि में चूना से पुते हुए मकान (सौध) की छत पर चन्द्रमा की (चाँदनी) फैल रही हों, वहाँ पर सोना चाहिए।

मनोहर वातावरण

— स्वस्थचित्तस्य चन्दनार्द्रस्य मालिनः ।
निवृत्तकामतन्त्रस्य सुसूक्ष्मतनुवाससः ॥38॥

  • इन दिनों चित्त को स्वस्थ बनाये रखें, चन्दन का लेप लगाये, फूलों एवं रत्नों की माला धारण करे, मैथुन न करें, पतले एवं महीन वस्त्र धारण करें।

जलार्द्रास्तालवृन्तानि विस्तृताः पद्मिनीपुटाः ।
उत्क्षेपाश्च मृदूत्क्षेपा  जलवर्षिहिमानिलाः ॥39॥

  • जल में भिगोये गये ताड़ के पंखों से अथवा कमल के पत्ते अथवा मोर पंखों की हवा का सेवन करें और उनसे शीतल जल के कण गिर रहे हों और ठण्डी हवा आ रही हो ।

कर्पूरमल्लिकामाला हाराः सहरिचन्दनाः ।
मनोहरकलालापाः शिशवः सारिका: शुकाः ॥40॥

  • कर्पूर (Cinnamomum camphora) के घोल से सुगन्धित मल्लिका (बेला/स्फटिक) की माला और मोतियों की माला जो चन्दन से लिप्त हो, आस-पास मनोहर (सुन्दर) शिशव: (छोटे बच्चे) खेल रहे हों, सारिका एवं तोते मधुर आलाप (आवाज) कर रहे हो।

मृणालवलयाः कान्ताः प्रोत्फुल्लकमलोज्ज्वलाः ।
जङ्गमा इव पद्मिन्यो  हरन्ति दयिताः क्लमम् ॥41॥

  • मृणाल (कमलनाल) के वलय (ककंण) पहनी हुई कान्ता (प्रिया) एवं खिले कमल-सी उज्जवल  (सुन्दर) चलती-फिरती कमलिनी-सी स्त्रियाँ ग्रीष्मकालीन सुस्ती को दूर कर देती हैं।

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