प्राथमिक स्वास्थ्य संरक्षण
(Primary Health Care)
परिभाषा और सिद्धांत : –
प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के रूप में परिभाषित किया गया है: –
“व्यावहारिक, वैज्ञानिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य विधियों और प्रौद्योगिकी के आधार पर आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल जो समुदाय में व्यक्तियों और परिवारों के लिए उनकी पूर्ण भागीदारी के माध्यम से, देश और समुदाय अपने विकास के हर stage पर स्वेच्छा से वहन (afford) कर सके।
प्राथमिक स्वास्थ्य संरक्षण के महत्वपूर्ण अंग –
अल्मा-आटा घोषणा ने प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के 8 तत्वों को बताया।
1. मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं और उन्हें रोकने और नियंत्रित करने के तरीकों के बारे में शिक्षा।
2. खाद्य आपूर्ति और उचित पोषण को बढ़ावा देना।
3. सुरक्षित पानी और बुनियादी स्वच्छता की पर्याप्त आपूर्ति।
4. परिवार नियोजन सहित मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल।
5. संक्रामक रोगों के खिलाफ टीकाकरण।
6. एंडीमिक रोगों की रोकथाम और नियंत्रण।
7. सामान्य बीमारियों और चोटों का उचित उपचार।
8. आवश्यक दवाओं का प्रावधान।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC)
- मैदानी इलाकों में प्रत्येक 30000 आबादी और पहाड़ी, आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों में 20000 के लिए एक पीएचसी के आधार पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना (1983) ने पीएचसी का संगठन प्रस्तावित किया।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी)
- प्रत्येक सामुदायिक विकास खंड में एक सीएचसी है यानी 80000 से 1.2 लाख की आबादी के लिए।
कार्य –
- प्रत्येक सीएचसी में एक्सरे और लैब सुविधा के साथ सर्जरी, चिकित्सा, प्रसूति और स्त्री रोग और बाल चिकित्सा के 30 बेड होते हैं।
- सीएचसी के विशेषज्ञ (Specialist) राज्य स्तर के अस्पताल या नजदीकी मेडिकल कॉलेज में एक मरीज को सीधे रेफर (refer) कर सकते हैं।
- आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का प्राथमिक स्वास्थ्य संरक्षण में योगदान –
- भारत में लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में आयुर्वेद की बड़ी भूमिका है।
- भारत में तीन लाख से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सक हैं।
- 90% से अधिक आयुर्वेदिक चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवा करते हैं जहां चिकित्सा सुविधाएं दुर्लभ हैं।
- इन डॉक्टरों में से अधिकांश स्थानीय निवासी हैं और सामाजिक और सांस्कृतिक(cultural) रूप से लोगों के बहुत करीब हैं।
- 1971 में, C.C.I.M. (सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन) की स्थापना के बाद, आयुर्वेद के अभ्यास को शासन प्राधिकरण (government authority) के तहत regulate किया जाता है। (the practice of Ayurveda is regulated under goverment authority.)
- आयुर्वेदिक डॉक्टरों को आयुर्वेद के साथ-साथ एलोपैथी में भी प्रशिक्षित किया जाता है ताकि वे जरूरत के मुताबिक लोगों की सेवा कर सकें।
- डॉक्टरों के अलावा, भारतीय जनता को भी आयुर्वेद का पारंपरिक ज्ञान है।
- वे आयुर्वेद में रोकथाम की अवधारणाएं, दैनिक आहार (दिनचर्या), मौसमी आहार (ऋतुचर्या) और आहार की अवधारणाओं को जानते हैं।
- इस प्रकार दिन प्रतिदिन जीवन में अपने सिद्धांतों का उपयोग करके रोगों की रोकथाम में आयुर्वेद की प्रमुख भूमिका है।
- कई आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है जैसे कि खांसी, जुकाम, बुखार, पेट में दर्द आदि।
- भारत में आयुर्वेद फल-फूल रहा है। भविष्य में यह जनता की बेहतर सेवा करेगा, जब लोग आयुर्वेद और इसकी उपयोगिता को समझेंगे।