Charak Samhita 1 – वात-पित्त कफ के गुण और चिकित्सासूत्र
Charak Samhita 1 – वात-पित्त कफ के गुण और चिकित्सासूत्र
दशविध परीक्ष्य :-
- कारण
- करण
- कार्ययोनि
- कार्य
- कार्यफल
- अनुबन्ध
- देश
- काल
- प्रवृत्ति
- उपाय
वात के गुण और चिकित्सासूत्र –
रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः । विपरीतगुणैर्द्रव्यैर्मारुतः सम्प्रशाम्यति ।।
- रूक्ष, शीत, लघु (हलका), सूक्ष्म, चल (गतिशील), विशद और खर ये वायु के गुण हैं ।
- वह उक्त गुणों के विपरीत (स्निग्ध , उष्ण , गुरु , स्थूल , स्थिर , पिच्छिल और श्लक्ष्ण) गुण वाले द्रव्यों से शान्त होता है ।
पित्त के गुण और चिकित्सासूत्र —
सस्नेहमुष्णं तीक्ष्णं च द्रवमम्लं सरं कटु ।
विपरीतगुणैः पित्तं द्रव्यैराशु प्रशाम्यति ॥
- पित्त अल्प स्नेहयुक्त, उष्ण, तीक्ष्ण, द्रव, अम्ल, सर और कटु गुण वाला होता है ।
- वह उक्त गुणों के विपरीत (पूर्ण स्निग्ध, शीत, मृदु, सान्द्र, स्थिर, मधुर, कषाय और तिक्त) गुण वाले द्रव्यों से (तथा कर्मों द्वारा) शान्त होता है ।
कफ के गुण और चिकित्सासूत्र –
गुरुशीतमृदुस्निग्धमधुरस्थिरपिच्छिलाः ।
श्लेष्मणः प्रशमं यान्ति विपरीतगुणैर्गुणाः।।
- गुरु, शीत, मृदु, स्निग्ध, मधुर, स्थिर और पिच्छिल – ये कफ के गुण हैं ।
- वह अपने से विपरीत (लघु, उष्ण, तीक्ष्ण, रूक्ष, कटु, तिक्त, कषाय रस, सर और विशद) गुण वाले द्रव्यों से ( एवं कर्मों द्वारा ) शान्त होता है ।
साध्यरोगों का चिकित्सासूत्र-
विपरीतगुणैर्देशमात्राकालोपपादितैः ।
भेषजैर्विनिवर्तन्ते विकाराः साध्यसम्मताः ॥
- देश (रोगी-शरीर), मात्रा और काल के अनुसार विपरीत गुणों वाली औषधों से साध्य माने गये रोग दूर हो जाते हैं ।
रस का लक्षण —
- जल और पृथिवी रस के आधार कारण है (जिनके आश्रित रस रहता है) ।
- रस की अभिव्यक्ति (उत्पत्ति) में भी जल और पृथिवी कारण हैं, किन्तु रसविशेष की (मधुर – अम्ल आदि अलग – अलग) उत्पत्ति में आकाश, वायु और अग्नि कारण हैं ।
रसों के भेद :–
स्वादुरम्लोऽथ लवणः कटुकस्तिक्त एव च ।
कषायश्चेति षट्कोऽयं रसानां संग्रहः स्मृतः ॥
- मधुर
- अम्ल
- लवण
- कटु
- तिक्त
- कषाय
रसों के कार्य —
स्वादुम्ललवणा वायुं , कषायस्वादुतिक्तकाः ।
जयन्ति पित्तं , श्लेष्माणं कषायकटुतिक्तकाः ॥
- मधुर, अम्ल और लवण (ये तीन) रस वायु को शान्त करते हैं ।
- कषाय, मधुर और तिक्त (ये तीन) रस पित्त को शान्त करते हैं।
- कषाय, कटु तथा तिक्त (ये तीन) रस कफ को शान्त करते हैं ।
रसों का पाञ्चभौतिक संगठन एवं दोषों पर प्रभाव –
रस |
दोषशामक |
दोषप्रकोपक |
पाञ्चभौतिक संगठन |
(1) मधुर | (1) वात – पित्त | (1) कफ | (1) जल – पृथ्वी |
(2) अम्ल | (2) वात | (2) पित्त – कफ | (2) पृथ्वी – अग्नि |
(3) लवण | (3) वात | (3) पित्त – कफ | (3) जल – अग्नि |
(4) कटु | (4) कफ | (4) पित्त – वात | (4) वायु – अग्नि |
(5) तिक्त | (5) पित्त – कफ | (5) वात | (5) वायु – आकाश |
(6) कषाय | (6) पित्त – कफ | (6) वात | (6) वायु – पृथ्वी |