सम्प्राप्ति के भेद – 

 

संख्याप्राधान्यविधिविकल्पबलकालविशेषैर्भिद्यते 

१. संख्या

२. प्राधान्य

३. विधि

४ . विकल्प

५. बल काल – विशेष भेद से ५ प्रकार की होती है ।


(1) संख्या सम्प्राप्ति :-

संख्या तावद्यथा – अष्टौ ज्वराः, पञ्च गुल्माः, सप्त कुष्ठान्येवमादिः 

  • संख्या, जैसे — आठ ज्वर, पाँच गुल्म, सात कुष्ठ आदि ।

(2) प्राधान्य  सम्प्राप्ति :-

प्राधान्यं पुनर्दोषाणां तरतमाभ्यामुपलभ्यते । तत्र द्वयोस्तरः, त्रिषु तम इति ।

  •  दोषों में ‘ तर’ या’ तम’ प्रत्यय के लगे रहने से प्रधानता का ज्ञान होता है ।
  •  जैसे वात वृद्ध, पित्त वृद्धतर, कफ वृद्धतम कहने से वात की अपेक्षा पित्त की प्रधानता और वात – पित्त इन दाना की अपेक्षा कफ की प्रधानता जानी जाती है ।
  •  दा म आधक या प्रधान बतलाने के लिए तर प्रत्यय जोड़ा जाता है और तीन या तीन से अधिक पदार्थों में किसी एक को संबसे अधिक या प्रधान बतलाने के लिए’ तम’ प्रत्यय लगाया जाता है ।**

(3) विधि सम्प्राप्ति :-

विधिर्नाम – द्विविधा व्याधयो निजागन्तुभेदेन, त्रिविधास्त्रिदोषभेदेन, चतुर्विधाः साध्यासाध्यमृदुदारुणभेदेन ।

  •  विधि अर्थात् प्रकार भेद से दो प्रकार के रोग हैं :-

१. निज

२. आगन्तुक

  •  तीन दोष ( वात – पित्त – कफ ) होने से तीन प्रकार के
  1. वातिक
  2. पैत्तिक
  3. श्लैष्मिक
  • १. साध्य, २. असाध्य, ३. मृदु और ४. दारुण भेद से चार प्रकार के रोग हैं ।

(4) विकल्प :-

समवेतानां पुनर्दोषाणामंशांशबलविकल्पो विकल्पोऽस्मिन्नर्थे ।

  •  सम्प्राप्ति रोग में सम्बद्ध वात – पित्त – कफ इन दोषों की अंशांशकल्पना को विकल्पसम्प्राप्ति कहते हैं ।
  • वात आदि दोषों में रहने वाले रूक्षता, स्निग्धता या गुरुता आदि धर्म ‘अंश’ हैं ।
  • अमुक दोष अपने इतने अंशों (धर्मों) में कुपित हुआ है, इसके निश्चय को ही अंशांशकल्पना कहते हैं ।

(5) बलकाल सम्प्राप्ति :-

बलकालविशेषः पुनर्व्याधीनामृत्वहोरात्राहारकालविधिविनियतो भवति ॥

  • व्याधियों का बलकाल – विशेष ऋतु, अहोरात्र और भोजनकाल पर निर्भर है ।
  • जैसे — ऋतुविनियत बलकाल – विशेष श्लेष्मज्वर का वसन्त ऋतु ।
  • अहोरात्रविनियत, जैसे — श्लेष्मज्वर का पूर्वाह्न और प्रदोष ।
  • आहारविनियत, जैसे — श्लेष्मज्वर का भुक्तमात्र काल ।
  •  इसी प्रकार वर्षा ऋतु में, पश्चाद् रात्रि में, अपराह्न में तथा भोजन का परिपाक हो जाने पर वात का तलकाल – विशेष होता है ।
  • शरद् ऋतु में, मध्याह्न में, मध्यरात्रि में एवं आहार की पच्यमान अवस्था में पित्त का बलकाल – विशेष होता है!


Charak Samhita – Moolini evum Phalini dravya


0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *