आयुर्वेद का प्रयोजन, आयुर्वेदावतरण, अष्टांगहृदय का स्वरुप, आयुर्वेद के आठ अंग

मंगलाचरण :- रागादिरोगान् सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान् ।औत्सुक्यमोहरतिदाञ्जघान योऽपूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै ।। राग-द्वेष आदि रोगों को, जो नित्य मानव के साथ सम्बद्ध रहते है एवं सम्पूर्ण शरीर में फैले रहते हो, अविचार युक्त कार्य प्रवृत्ति, असन्तोष को उत्पन्न करते हैं, उन सबको जिसने नष्ट किया है, उस आचार्य रूप अर्थात् अद्भुत रूप वैद्य Read more…