चरक संहिता (पूर्वार्द्ध)

Charak Samhita 1 – Rasa

दशविध परीक्ष्य :- कारण करण कार्ययोनि कार्य कार्यफल अनुबन्ध देश काल प्रवृत्ति उपाय वात के गुण और चिकित्सासूत्र – रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः । विपरीतगुणैर्द्रव्यैर्मारुतः सम्प्रशाम्यति ।। रूक्ष, शीत, लघु (हलका), सूक्ष्म, चल (गतिशील), विशद और खर ये वायु के गुण हैं । वह उक्त गुणों के विपरीत (स्निग्ध , उष्ण , गुरु […]

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उदकवह स्रोतस की व्याधियां || udakvah sarotas diseases

उदकवहानां स्रोतसां तालुमूलं क्लोम च, प्रदुष्टानां तु खल्वेषामिदं विशेषविज्ञानं भवति, तद्यथा- जिह्वाताल्वोष्ठकण्ठक्लोमशोषं पिपासां चातिप्रवृद्वां दृष्टोदकवहान्यल्य स्रोतांसि प्रदुष्यनीति विद्यात्। (च. वि. 5/8) उदकवह स्रोतस का मूल तालु व क्लोम हैं। आचार्य चरक मतानुसार उदकवह स्रोतस के दुष्ट होने पर जिह्वा, तालु, ओष्ठ, कण्ठ, क्लोम, शोष तथा अति प्रवृद्ध पिपासा उत्पन्न होती है। उदकवहे द्वे, तयोर्मूलं तालु

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Charak Samhita – Upsaya – Samprapti

उपशय (Therapeutic Suitability) :- उपशयः पुनर्हेतुव्याधिविपरीतानां विपरीतार्थकारिणां चौषधाहारविहाराणामुपयोगः सुखानुबन्धः   १. हेतुविपरीत २. व्याधिविपरीत ३. हेतु – व्याधि उभयविपरीत ४. हेतुविपरीतार्थकारी ५ .व्याधिविपरीतार्थकारी ६. हेतु – व्याधि उभयविपरीतार्थकारी औषध, अन्न तथा आहार के परिणाम में सुखप्रद उपयोग को उपशय कहते हैं ।   उपशय – भेदबोधक सारणी (१) हेतुविपरीत शीत कफज्वर में शुण्ठी आदि उष्ण

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Charak Samhita 1 – Ayurveda ka Adhikarana – Ayurveda ka paryojan – Dosha

                                             प्रयोजनं चास्य स्वस्थ्यस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च ।   This Post contains a brief description on :- त्रिदण्ड और आयुर्वेद का अधिकरण आयुर्वेद का प्रयोजन रोगों के त्रिविध हेतु दोष एवं उनका चिकित्सासूत्र त्रिदण्ड

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Charak Samhita 1 – Samanya aur vishesh – सामान्य और विशेष

                                सामान्य और विशेष का लक्षण :- सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम् । ह्रासहेतुर्विशेषश्च, प्रवृत्तिरुभयस्य तु ॥ सामान्य सदैव सभी भावों (द्रव्य-गुण-कर्म) की वृद्धि का कारण होता है और विशेष सदैव सभी भावों के ह्रास (कमी) का कारण होता है। सामान्यमेकत्वकरं,

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 Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda

                   1. दीर्घञ्जीवितीयमधायायं व्याख्यास्यामः   Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda This post contains brief description about : i. Aayu ii. Defination of ayurveda iii. Trisutra ayurveda इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की संक्षिप्त रूप से व्याख्या की जा रही है । 1.

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Charak Samhita – Jawar Nidan – Panch Nidan

                                अथातो ज्वरनिदानं व्याख्यास्यामः                                                      पञ्चनिदान निदान के पर्याय और प्रकार (Synonyms and Types of

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Charak Samhita – Apamarga – 2

      (1) अग्निप्रदीपक शूलनाशक यवागू – पीप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक एवं सोंठ से बनायी गयी यवागू जाठराग्निदीपक एवं शूलनाशक होती है । (2) पाचनी एवं ग्राहिणी पेया – कैथ का फल, बिल्व, तिनपतिया (चांगेरी), मट्ठा एवं अनारदाना से सिद्ध की गयी पेया पाचन और ग्राही होती है । (3) वातज विकारनाशक पेया –

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Charak Samhita – षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः

  This Post also Contains the description about panch vidh kshaya kalpana… छ: सौ ‘विरेचन’ होते हैं – षड् विरेचनशतानि  और छ: विरेचनों के आश्रय होते हैं — षड् विरेचनाश्रया इह खलु षड् विरेचनशतानि भवन्ति, षड् विरेचनाश्रयाः, पञ्च कषाययोनयः, पञ्चविधं कषायकल्पनं, पञ्चाशन्महाकषायाः, पञ्च कषायशतानि, इति संग्रहः ॥ इस आयुर्वेदशास्त्र में छ : सौ विरेचन योग

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Charak Samhita – aaragvadh – 1

द्वितीय अध्याय में अन्तःपरिमार्जन  ( भीतरी शरीर – शोधन ) के उपयोगी पञ्चकर्म सम्बन्धी औषध – द्रव्यों का वर्णन किया गया है । इसके बाद चिकित्सा के दूसरे प्रकार ‘ बहिःपरिमार्जन ‘ के उपयोगी द्रव्यों का वर्णन और उनके प्रयोग – विधान तथा प्रशस्ति का उपदेश इस अध्याय में किया जायेगा । बाह्य प्रयोगार्थ बत्तीस

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