चरक संहिता (पूर्वार्द्ध)

Charak Samhita || अपामार्गतण्डुलीयमध्यायं व्याख्यास्यामः || Chapter 2 || Part 1

  शिरोविरेचन द्रव्य और उनका प्रयोग – अपामार्ग, पिप्पली, मरिच, विडंग, शिग्रु, सर्षप, तुम्बरु, अजाजी, अजगन्धा, पीलु, एला, हरेणुका, पृथ्वीका (बड़ी इलायची), सुरसा, श्वेता, कुठेरक फणिज्झक (तुलसी भेद), शिरीषबीज, लहसुन, हरिद्रा, दारुहल्दी, सैन्धव नमक, काला नमक, ज्योतिष्मता एव नागर (शुण्ठी) इन सभी द्रव्यों का नस्य शिरोविरेचन के लिए प्रयोग करना चाहिए । शिर के भारीपन […]

Charak Samhita || अपामार्गतण्डुलीयमध्यायं व्याख्यास्यामः || Chapter 2 || Part 1 Read More »

Charak Samhita – Classification of Dravyas

  प्रभाव-भेद से द्रव्यों के भेद – किञ्चिद्दोषप्रशमनं किञ्चिद्धातुप्रदूषणम् । स्वस्थवृत्तौ मतं किञ्चित्रिविधं द्रव्यमुच्यते ॥ दोषों को शान्त करने वाले द्रव्य धातुओं को दूषित करने वाले द्रव्य स्वस्थवृत्त में हितकारक द्रव्य उत्पत्ति-भेद से द्रव्यों के प्रकार — तत् पुनस्त्रिविधं प्रोक्तं जङ्गमौद्भिदपार्थिवम् । जाङ्गम द्रव्य औद्भिद द्रव्य पार्थिव द्रव्य   1. जाङ्गम द्रव्य – जंगम प्राणियों

Charak Samhita – Classification of Dravyas Read More »

Panchkarma || पंचकर्म

पंचकर्म का परिचय आयुर्वेद के दोनों प्रयोजनों की सिद्धि पंचकर्म द्वारा सम्भव है। चिकित्सा के सिद्धांतों में सबसे महत्वपूर्ण है- संशोधन संशमन निदान परिवर्जन पंचकर्म के द्वारा ही प्रयोजन का प्रथम उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु ऋतुचर्या के अनुसार पंचकर्म निर्दिष्ट है जिससे रोग उत्पन्न होने से पूर्व ही प्रकुपित दोषों

Panchkarma || पंचकर्म Read More »

Maha Sneha – Panch lavan – Asta mutra

 चार महास्नेह (four maha sneha) :- सर्पिस्तैलं वसा मज्जा स्नेहो दिष्टश्चतुर्विधः । पानाभ्यञ्जनबस्त्यर्थ नस्यार्थं चैव योगतः॥ स्नेहना जीवना बल्या वर्णोपचयवर्धनाः । स्नेहा ते च विहिता वातपित्तकफापहाः ॥  १ . घृत, २ . तैल, ३ . वसा और ४ . मज्जा – ये चार प्रकार के स्नेह बतलाये गये है । इनका प्रयोग पीने के लिए

Maha Sneha – Panch lavan – Asta mutra Read More »