Charak Samhita 1 – Dravya – Guna – Karma aur Samvaya
द्रव्य – गुण – कर्म और समवाय
Charak Samhita 1 – Dravya – Guna – Karma aur Samvaya
द्रव्य – गुण – कर्म और समवाय
द्रव्य – गुण – कर्म और समवाय का वर्णन
I. द्रव्य वर्णन (Description of Dravya):-
“खादीन्यात्मा मनः कालो दिशश्च द्रव्यसंग्रहः । सेन्द्रियं चेतनं द्रव्यं , निरिन्द्रियमचेतनम् ।”
- आकाश आदि ( आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी ) पञ्चमहाभूत द्रव्य तथा आत्मा , मन , काल और दिशा — ये नौ द्रव्य हैं ।
द्रव्य दो प्रकार के होते हैं (Types of Dravya) :-
- चेतन :- इन्द्रिय सहित
- अचेतन :- इन्द्रिय रहित
- चेतन के दो भेद होते हैं — 1. अन्तश्चेतन और 2. बहिश्चेतन ।
1.अन्तश्चेतन –
- अन्तश्चेतन द्रव्यों में भीतर तो ज्ञान तथा सुख – दुःख का अनुभव होता है , किन्तु वे अपने ऊपर होने वाले आक्रमण का प्रतिरोध करने में असमर्थ होते हैं, जैसे — वनस्पतिवर्ग ।
2. बहिश्चेतन –
- इन बहिश्चेतन द्रव्यों की चेतना का बाह्यरूप से प्रत्यक्ष अनुभव होता है ।
- ये द्रव्य अपने ऊपर होने वाले आक्रमण का प्रतिरोध करने में समर्थ होते हैं, जैसे — मनुष्य , पशु – पक्षी आदि ।
II. गुण वर्णन (Description of Guna) :-
संख्या तथा भेद –
गुणों का वर्गीकण (Classification of Guna) –
- वैशेषिक या इन्द्रिय गुण
- गुर्वादि गुण
- आध्यात्मिक गुण
- सामान्य गुण
1. वैशेषिक गुण –
- आकाश – वायु – अग्नि – जल – पृथिवी – इन पञ्चमहाभूतों के अथवा श्रोत्र – त्वक् – चक्षु – जिह्वा – घ्राण – इन इन्द्रियों के क्रमशः एक – एक विशेष गुण होने के कारण शब्द – स्पर्श रूप – रस – गन्ध वैशेषिक या इन्द्रिय गुण कहलाते हैं।
2. गुर्वादि गुण –
गुरु | लघु |
शीत | उष्ण |
स्निग्ध | रूक्ष |
स्थिर | सर |
मृदु | कठिन |
मन्द | तीक्ष्ण |
विशद | पिच्छिल |
श्लक्ष्ण | खर |
स्थूल | सूक्ष्म |
सान्द्र | द्रव |
3. आध्यात्मिक गुण –
- बुद्धि
- इच्छा
- द्वेष
- सुख
- दुःख
- प्रयत्न
4. परादि सामान्य गुण –
- परत्व
- अपरत्व
- युक्ति
- संख्या
- संयोग
- विभाग
- पृथक्त्व
- परिमाण
- संस्कार
- अभ्यास
गुणों की संख्या :-
वैशेषिक या इन्द्रिय गुण | 5 |
गुर्वादि गुण | 20 |
आध्यात्मिक गुण | 6 |
सामान्य गुण | 10 |
41 |
III. समवाय का वर्णन (Description of Samvaya) —
- पृथिवी का गन्ध से, जल का शीतलता से, अग्नि का उष्णता से, वायु का स्पर्श से और आकाश का शब्द के साथ जो नित्य सम्बन्ध है उसे समवाय माना गया है ।
- यह नित्य है , क्योंकि द्रव्य बिना गुण के नहीं रहते हैं।
द्रव्य का लक्षण (Characterstics of Dravya) :
यत्राश्रिताः कर्मगुणाः कारणं समवायि यत् । तद्रव्यं –
- जिस वस्तु में कर्म और गुण आश्रित रहते हैं तथा जो कर्म एवं गुण का समवायी कारण होता है, उसे ‘द्रव्य’ कहते हैं ।
गुण का लक्षण (Chacterstics of Guna)—
समवायी तु निश्चेष्टः कारणं गुणः ॥
- जो द्रव्य के साथ समवायसम्बन्ध वाला , चेष्टारहित एवं किसी द्रव्य के ग्राह्य होने में कारण होता है , उसे ‘गुण’ कहते हैं।
कर्म का लक्षण (Characterstics of Karma) –
संयोगे च विभागे च कारणं द्रव्यमाश्रितम् ।
कर्तव्यस्य क्रिया कर्म , कर्म नान्यदपेक्षते ॥
- जो संयोग और विभाग में स्वयं कारण हो और किसी दूसरे कारण की अपेक्षा न करता हो , द्रव्य के आश्रित रहता हो तथा किसी कार्य को सम्पन्न करने के लिए जो चेष्टा या क्रिया की जाती है , उसे कर्म कहते हैं ।.