अथातो ज्वरनिदानं व्याख्यास्यामः
पञ्चनिदान
निदान के पर्याय और प्रकार (Synonyms and Types of Etiology) :-
इह खलु हेतुर्निमित्तमायतनं कर्ता कारणं प्रत्ययः समुत्थानं निदानमित्यनन्तरम् ।तत्रिविधम् – असात्म्येन्द्रियार्थसंयोगः,प्रज्ञापराधः परिणामश्चेति।।
- इस निदान के प्रकरण में हेतु,निमित्त,आयतन,कर्ता,कारण,प्रत्यय,समुत्थान और निदान — इन शब्दों का एक ही ( कारण ) अर्थ है ।
- वह निदान तीन प्रकार का होता है
१. असात्म्येन्द्रियार्थसंयोग
२. प्रज्ञापराध
३. परिणाम
रोगों के भेद ( Types of Diseases ) :-
अतस्त्रिविधा व्याधयः प्रादुर्भवन्ति – आग्नेयाः,सौम्याः,वायव्याश्च ; द्विविधाश्चापरे राजसाः तामसाश्च ॥
- इन कारणों ( १. असात्म्येन्द्रियार्थसंयोग , २. प्रज्ञापराध और ३. परिणाम ) से तीन प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं
१. आग्नेय ( पित्तज )
२. सौम्य ( कफज )
३. वायव्य ( वातज )
- उक्त कारणों से ही दो प्रकार के मानस रोग भी होते हैं
१. राजस
२. तामस
व्याधि के पर्याय ( Synonyms of Disease ) :-
तत्र व्याधिरामयो गद आतङ्को यक्ष्मा ज्वरो विकारो रोग इत्यनर्थान्तरम् ॥
- व्याधि,आमय,गद,आतंक,यक्ष्मा,ज्वर,विकार और रोग – इन सभी शब्दों का समान अर्थ ‘ रोग ‘ है ।
निदानपञ्चक :-
तस्योपलब्धिर्निदानपूर्वरूपलिङ्गोपशयसम्प्राप्तितः ॥
- ( पहले सूत्र में व्याधिजनक ‘ निदान का वर्णन किया जा चुका है,अब यहाँ ‘व्याधिबोधक’ पञ्चनिदान का उल्लेख कर रहे हैं) रोग का ज्ञान–
१. निदान
२. पूर्वरूप
३. रूप
४. उपशय और
५. सम्प्राप्ति — इन पाँच ज्ञानोपायों से होता है ।
(१) निदान ( Etiology ):-
- इन रोगज्ञान के पाँच उपायों में से ‘निदान ‘कारण को कहते हैं ।
- दोष को प्रकुपित करने वाले अनेकविध अहितकर आहार – विहार एवं वे दोष जो स्वयं दूषित होकर दूष्य धातुओं को दूषित कर रोग को उत्पन्न करते हैं,वे ‘निदान ‘कहलाते हैं ।
(२) पूर्वरूप ( Prodromal Symptom ):-
पूर्वरूपं प्रागुत्पत्तिलक्षणं व्याधेः
- रोग उत्पन्न होने के पहले जो लक्षण होते हैं,उन्हें पूर्वरूप कहा जाता है ।
(३) रूप (Symptomatology) :-
प्रादुर्भूतलक्षणं पुनर्लिङ्गम् । तत्र लिङ्गमाकृतिर्लक्षणं चिहं संस्थानं व्यञ्जनं रूपमित्यनर्थान्तरम्
- उत्पन्न हुए रोगों के चिह्नों को लिंग, लक्षण अथवा रूप कहते हैं । ( लिङ्ग के लक्षण – कथन के सन्दर्भ में )
- लिङ्ग,आकृति,लक्षण,चिह्न,संस्थान,व्यञ्जन और रूप – ये सभी शब्द एक ही अर्थ के बोधक हैं
आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में लक्षण के दो भेद :-
(१) लक्षण ( Symptoms ) :-
- क्षुधा, तृष्णा, मल – मूत्र की प्रवृत्ति, उदरशूल आदि का भोजन से सम्बन्ध, निद्रा, स्वप्न – दर्शन आदि का ज्ञान रोगी से पूछकर ही किया जाता है, क्योंकि ये रोगी द्वारा अनुभूत होते है । इन्हें Subjective symptoms कहते हैं ।
(२ )चिह्न ( Signs ) :-
- जिह्वा, नेत्र, मुखमण्डल, मल – मूत्र का वर्ण आदि एवं श्वास के वेग के साथ छाती का फूलना स्वाभाविक या अस्वाभाविक आदि दर्शन से जाना जाता है ।
- अंगों की मृदुता या कठोरता, यकृत, प्लीहा, वृक्क की स्थिति, नाड़ी की गति, हृदय एवं फुप्फुस की ध्वनि आदि का ज्ञान वैद्य स्वयमेव करता है । इन्हें ‘ Objective signs ‘ कहते हैं ।
- इनका ज्ञान दर्शन ( Inspection ), स्पर्शन ( Palpation ), अगुलिताडन ( Percussion ), उरःश्रवण ( Ascultation ) आदि से किया जाता है ।
Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda