Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda

 Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda

 

                 1. दीर्घञ्जीवितीयमधायायं व्याख्यास्यामः 

 Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda

This post contains brief description about :

i. Aayu

ii. Defination of ayurveda

iii. Trisutra ayurveda


इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की संक्षिप्त रूप से व्याख्या की जा रही है ।

1. त्रिसूत्र आयुर्वेद (Trisutra ayurveda) :-

“हेतुलिङ्गौषधज्ञानं स्वस्थातुरपरायणम् ।
त्रिसूत्रं शाश्वतं पुण्यं बुबुधे य पितामहः ।।”

(1) हेतुज्ञान :- रोग की उत्पत्ति का कारण
(2) लिङ्गज्ञान :- रोग और आरोग्य का लक्षण
(3) औषधज्ञान :- स्वस्थ और रोगी के हितकर पथ्य और चिकित्सा की प्रक्रिया .


2. आयुर्वेद के षट्पदार्थ :-

  • सामान्य
  • विशेष
  • गुण
  • द्रव्य
  • कर्म
  • समवाय

3. आयुर्वेद की परिभाषा (Definition Ayurveda) :-

          “हिताहित सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम् ।
            मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते ।।”

  • जिस शास्त्र में हित, अहित, सुख और दुःख – इन चार प्रकार की आयु का वर्णन किया गया हो; आयु के लिए किस तरह का आहार या आचार हितकर या अहितकर है, इसका वर्णन किया गया हो; आयु का मान बतलाया गया हो, और आयु किसे कहते हैं? उसका स्वरूप क्या है? इन सभी विषयों का युक्तियुक्त प्रकार से वर्णन किया गया हो, उसे आयुर्वेद कहते हैं ।

4. आयु का लक्षण और पर्याय :-

शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगो धारि जीवितम् ।
नित्यगश्चानुबन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ।।

  • शरीर , इन्द्रिय , मन और आत्मा के संयोग को आयु कहते है ।
  • धारि , जीवित , नित्यग और अनुबन्ध – इन पर्यायों से आयु का ही बोध होता है ।

तस्यायुषः पुण्यतमो वेदो वेदविदां मतः ।
वक्ष्यते यन्मनुष्याणां लोकयोरुभयोर्हितम् ।।

  • आयुर्वेद उस आयु का अत्यन्त पवित्र वेद है, इसलिए वेदविद् (आयुर्वेदज्ञ) इसका सम्मान करते हैं।
  • यह मनुष्यों के लोक और परलोक का हितसाधक है।

इन्द्रिय :-

1. श्रोत्र, 2 . त्वचा , 3. नेत्र , 4. जिह्वा और 5. नासिका —
ये पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं ।

1. हस्त , 2. पाद , 3 . गुद , 4 . उपस्थ और 5. वागिन्द्रिय –
ये पाँच कर्मेन्द्रिय हैं ।


आयु के पर्याय (Synonyms) :-

  • धारि
  • जीवित
  • नित्यग
  • अनुबन्ध
  • चेतनानुवृत्ति

(1) धारि

  • जो अपनी शक्ति से रस – रक्त आदि धातुओं की संवहन क्रिया के संचालन से शरीर को शीर्ण होने (गलने – पचने) से बचाता है, उसे ‘धारि’ कहते हैं।

(2) जीवित

  • जो श्वसन, पचन, आहरण, निर्हरण आदि क्रियाओं से प्राणों को धारण करता है , उसे ‘जीवित’ कहते हैं।

(3) नित्यग

  • जो प्रतिक्षण गमनशील है, उसे नित्यग कहते हैं।

(4) अनुबन्ध

  • जो प्रतिक्षण परिवर्तनशील शरीर में रहता हुआ क्षीयमाण शरीर से अग्रिम शरीर में अपना सम्बन्ध स्थापित करता रहता है, उसे ‘अनुबन्ध’ कहते हैं।

(5) चेतनानुवृत्ति

  • बिना किसी विराम या विच्छेद के जो गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त शरीर के साथ अपना अस्तित्व बनाये रखता है तथा चैतन्य का अनुवर्तन करता है, उसे ‘चेतनानुवृत्ति’ कहते हैं ।

 

Charak Samhita 1 – Ayurveda ka Adhikarana – Ayurveda ka paryojan – Dosha

 

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