श्वास रोग || Dyspnoea, Asthma

व्याधि परिचय
  • आचार्य चरक ने हिक्का तथा श्वास रोग में दोष, दूष्य तथा स्रोतस की समानता होने के कारण दोनों व्याधियों का एक साथ वर्णन किया है।
  • आचार्य चरक मतानुसार यह गम्भीर प्राणनाशक व्याधि हैं।
         यथा श्वासश्च हिक्का च प्राणनाशुनिकृन्ततः ।। (च. चि. 17/6)
 
  • आचार्य चरक ने इस व्याधि को अरिष्ट लक्षण भी माना है।
         अन्ते संजायते हिक्का श्वासो । (च. चि. 17/6)

 

  • हिक्का तथा श्वास रोग की शीघ्र चिकित्सा न होने पर ये आशीविष (सर्पविष) के समान रोगी का नाश कर देते हैं।
    आचार्य चरक ने श्वास रोग को ‘पित्त स्थान समुद्भव’ कहा है।
कफवातात्मकावेतौ पित्तस्थान समुद्भवौ।। (च. चि. 17/8)



निदान


आचार्य चरक मतानुसार श्वास रोग के निम्न निदान है-
• धूल अथवा धूम का श्वास मार्ग में प्रविष्ट होना
• शीत स्थान या शीतल जल का अति सेवन
• अति व्यायाम या अति व्यवाय
• अति मार्गगमन
• अत्यधिक रूक्षान्न सेवन
• विषम भोजन
• आम दोष वृद्धि तथा आनाह रोग
• अत्यधिक अपतर्पण
• मर्माघात
• शीत तथा उष्ण दोनों का एक साथ शरीर में लगना
• शारीरिक रूक्षता
• वमन, विरेचन का अति योग
• अतिसार, ज्वर, वमन, प्रतिश्याय, उरःक्षत, रक्तपित, उदावर्त, विसूचिका, अलसक, पाण्डु तथा विषसेवन के कारण।



सम्प्राप्ति
यदा स्रोतांसि संरुध्य मारुतः कफपूर्वकः ।
विष्वग्व्रजति संरुद्धस्तदा श्वासान्करोति सः ।। (च. चि. 17/45)
  • जब कफ के साथ प्रकुपित्त वायु प्राण, अन्न तथा उदकवह स्रोतों को अवरुद्ध कर कफ दोष द्वारा स्वयं रूकी हुई वायु शरीर में फैले हुए विभिन्न स्रोतों में गमन करती है, तब श्वास रोग की उत्पत्ति होती है।
  • श्वास रोग की उत्पत्ति में आम दोष तथा अग्निमांद्य का विशेष महत्व रहता है।


सम्प्राप्ति घटक
• दोष- वात तथा कफ दोष
• दूष्य – रस धातु तथा प्राणवायु
• अधिष्ठान- प्राणवह स्रोतस, आमाशय
• स्रोतों दुष्टि लक्षण- संग तथा विमार्गगमन
• स्वभाव – चिरकारी
• अग्नि दुष्टि – अग्निमांद्य
• साध्यासाध्यता- कृच्छ्रसाध्य



भेद
क्षुद्रकस्तमकश्छिन्नो महानूर्ध्वश्च पञ्चधा । ( सु. उ. 51/5)

आचार्य चरक तथा आचार्य सुश्रुत ने श्वास रोग के पाँच भेद वर्णित किये हैं-
• महाश्वास
• उर्ध्व श्वास
• छिन्न श्वास
• तमक श्वास
• क्षुद्र श्वास



पूर्व रूप
आनाहः पार्श्वशूलं च पीडनं हृदयस्य च ।
प्राणस्य च विलोमत्वं श्वासानां पूर्व लक्षणम् ।। (च. चि. 17/20)


आचार्य चरक के मतानुसार श्वास रोग के निम्न पूर्व रूप प्रकट हो सकते है।
• आनाह
• पार्श्वशूल
• हृत्पीड़ा
• प्राणवायु का विलोम होना
• शूल
• भक्तद्वेष
• अरति
• आस्यवैरस्य
• शंख भेद


श्वास रोग के विभिन्न भेदो में दोष स्थिति
—–

श्ववास रोग के पाँचो में विभिन्न दोषों का बाहुल्य निम्न सारणी में दर्शाया गया है।
• महाश्वास, वातप्रधान
• उर्ध्व श्वास, वातप्रधान
• छिन्न श्वास, वात कफ प्रधान
• तमक श्वास, कफ प्रधान
• क्षुद्र श्वास, वातप्रधान

Rasa Shastra – Pribhasha evum dravya varga prakaran – 3

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *