हिक्का रोग (Hiccough)

हिक्का वात कफ़ज तथा आमाशय समुत्थ व्याधि है।

निदान

1. विदाही द्रव्यों का अतिसेवन
2. गुरू, विष्टम्भी, रूक्ष तथा अभिष्यन्दी भोजन का अतिसेवन
3. अत्यधिक शीतल जलादि पेय पदार्थों का सेवन
4. अतिशीतल भोजन तथा शीतस्थान
5. रज, धूम, तेज हवा तथा अग्नि का सेवन
6. अति व्यायाम
7. साहस से अधिक कार्य करना
8. अतिभार वहन तथा अतिमार्ग गमन
9. वेग संधारण
10. व्रत, उपवास आदि अपतर्पक कर्म अधिक करना
11. आमदोष, अभिघात तथा अतिव्याय
12. क्षय रोग
13. वातादि दोषों का अति प्रकोप
14. विषमाशन, अध्यशन तथा समशन में लिप्त होना

कुछ व्याधियो के उपद्रवस्वरूप भी हिक्का उत्पन्न हो सकती है यथा-पाण्डु, अलसक, उरःक्षत, क्षय, उदावर्त, रक्तपित्त, विसूचिका, अतिसार, ज्वर, छर्दि आदि।

सम्प्राप्ति

1. सामान्य सम्प्राप्ति-

मारुतः प्राणवाहीनि स्रोतांस्याविश्य कुप्यति।
उरःस्थः कफमुद्धूयहिक्काश्वासान् करोति सः॥      (च.चि. 17/17)

  • निदानों के सेवन से प्रकुपित वात दोष प्राणवाही स्रोतस में प्रवेश कर वक्षप्रदेश में स्थित कफ को उभाङ कर प्राण वायु का अवरोध उत्पन्न कर पाँच प्रकार की हिक्का तथा पाँच प्रकार के श्वास रोगों को उत्पन्न करती हैं ।

2. विशिष्ट सम्प्राप्ति-

प्राणोदकान्नवाहीनि स्रोतांसि सकफोऽनिलः।
हिक्का: करोति तासां लिङ्गं पृथक् ऋणु ॥     (च. चि. 17/21)

  • कफ के साथ वातदोष प्रकुपित होकर प्राणवह,उदकवह तथा अन्नवह स्रोतस मेअवरोध उत्पन्न कर हिक्कारोग की उत्पत्ति करता है।

सम्प्राप्ति चक्र –

सम्प्राप्ति घटक –

दोष प्राण वायु, उदान वायु + कफ
अधिष्ठान स्वरयंत्र, आमाशयोत्थ व्याधि
स्रोतस प्राणवह, अन्नवह तथा उदकवह
स्रोतोदुष्टि संग तथा विमार्गगमन
अग्निदुष्टि अग्निमांद्य
स्वभाव मृदु
साध्यासाध्यता साध्य

भेद

पंच हिक्का इति महती गम्भीराव्यपेताक्षुद्रा अन्नजा च।(च. सू. 19/4 )
अन्नजां यमलां क्षुद्रां गम्भीरां महतीं तथा।
वायुः कफेनानुगतः पच्च हिक्का करोतिहि।।(सु. उ. 50/7 )

आचार्य चरक एवं सुश्रुत मतानुसार हिक्का के निम्न भेद है।

क्र.सं. आचार्य चरक आचार्य सुश्रुत
१. महाहिक्का महाहिक्का
२. गम्भीरा हिक्का गम्भीरा हिक्का
३. व्यपेता हिक्का यमला हिक्का
४. क्षुद्रा हिक्का क्षुद्रा हिक्का
५. अन्नजा हिक्का अन्नजा हिक्का

पूर्व रूप

आचार्य चरक ने हिक्का के निम्न पूर्व रूप वर्णित किये हैं-
• कण्ठ तथा उरःप्रदेश में गौरव
• कटुकास्यता
• कुक्षि में आटोप

लक्षण

1. सामान्य लक्षण- मुख मार्ग से बार- बार हिक्-हिक् विशिष्ट ध्वनि का उत्पन्न होना।
2. भेदा नुसार विशिष्ट लक्षण- आचार्य चरक ने हिक्का के भेदानुसार निम्न लक्षण वर्णित किए है-

        १. महाहिक्का के लक्षण   ……………………………………….                                                       आचार्य चरक ने इस हिक्का को महामूल, महावेगा, महाबला तथा महाशब्द वाली कहा है तथा इसे सधः प्राणहर माना है।

इसके लक्षण निम्न प्रकार हैं-

• मांस, बल, प्राण तथा तेज का क्षीण होना
• प्राणवह तथा मर्मवाही स्रोतस एवं अग्नि को सकफ वायु अवरुद्ध कर ज्ञान को नष्ट कर शरीर में जकड़ाहट उत्पन्न करती है।
• अश्रुपूर्ण नेत्रता
• अन्नवह तथा उदकवह स्रोतस का अवरोध
• वाक् स्तब्धता
• शंख प्रदेश में स्तब्धता
• स्मरण शक्ति नाश
• सम्पूर्ण शरीर में कम्पन
       

        २. गम्भीरा हिक्का के लक्षण

……………………………..
• रोगी अत्यन्त कृश तथा दीन होता है।
• रोगी जर्जरित छाती से बहुत कठिनता से गम्भीर शब्दों के साथ जम्भाई लेता हुआ कभी अंगो को संकुचित करता है तथा कभी फैलाता है।
• रोगी उच्छ्वास के समय दोनों पाशर्वों को संकुचित करता है।
• अव्यक्त शब्द युक्त हिक्का उत्पत्ति।
• नाभि या पक्वाशय से उत्पन्न हिक्का
• गात्रस्तम्भ तथा वेदना
• तमः प्रवेश
• रोगी के बल तथा मन के व्यापार का नष्ट होना।
• शरीर में अत्यंत क्षोभ तथा वेग के समय शरीर का टेढ़ा होना।

        ३. व्यपेता हिक्का के लक्षण                            ………………………
व्यपेता हिक्का चार प्रकार के अन्न (अशित, खादित,पीत, लीढ़) के सेवन के बाद उत्पन्न होती है।

इसके लक्षण निम्न प्रकार हैं।

• हिक्का के वेग के समय प्रलाप, वमन, अतिसार, तृष्णा आदि लक्षण का उत्पन्न होना
• ज्ञान शून्यता तथा मुखशोष
• उदर में आध्मान
• शरीर का आगे या पीछे टेढा होना
• जत्रुमूल से उत्पन्न हिक्का तथा वेगों का लगातार न होकर रूक-रूककर उत्पन्न होना
• अन्नपाक के पश्चात् वेग में वृद्धि होना

        ४. क्षुद्रा हिक्का के लक्षण
………………….
किसी भी प्रकार के व्यायाम से प्रकुपित वात कोष्ठ से कष्ठ प्रदेश में जब चला जाता है तब क्षुद्रा नामक हिक्का की उत्पत्ति होती है। क्षुद्रा हिक्का कष्ट कारक नहीं होती तथा उरःप्रदेश, शिरःप्रदेश तथा मर्मस्थान में बाधा उत्पन्न नहीं करती।

इस के लक्षण निम्न प्रकार हैं-

• दोष प्राणवह, अन्नवह तथा उदकवह स्रोतों को अवरुद्ध नहीं करते।
• भोजनोपरान्त हिक्का का वेग शान्त हो जाता है तथा परिश्रम व व्यायाम से बढ़ जाता है।
• दोष हृदय, क्लोम, कण्ठ तथा तालु में आस्रित रहते हैं। हिक्का का वेग यही से प्रारम्भ होता है।
• जिन कारणों से हिक्का की उत्पत्ति होती हैं। उन्हीं से इसका शमन भी होता है।
• मृदु तथा साध्य होती हैं।

        ५. अन्नजा हिक्का के लक्षण
……………..
जो व्यक्ति सहसा अतिमात्रा में अन्न या जल का सेवन करता है तो प्रकुपित वायु कोष्ठ से उर्ध्वगमन करती है तथा अन्य निदान तथा अतिमद्यपान, अतिक्रोध, अतिभाषण, अतिमार्गगमन, अतिहास्य या अतिभारवहन आदि के कारण वात अन्नपान के द्वारा पीड़ित होकर ऊर्ध्वगमन करती है तथा वक्ष प्रदेश के स्रोतों में प्रविष्ट होकर ‘अन्नजा हिक्का’ को उत्पन्न करती हैं।

इसके लक्षण निम्न प्रकार है।

• मंद ध्वनि युक्त तथा छींक के साथ उत्पन्न हिक्का
• हिक्का का वेग जल पान तथा अन्न पान के बाद स्वयं शांत हो जाता है।
• मर्म प्रदेश तथा इन्द्रियों में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती है।

        ६. यमला हिक्का के लक्षण                               आचार्य सुश्रुत ने व्यपेता के स्थान पर यमला हिक्का का वर्णन किया है।
  • यह हिक्का शिर तथा ग्रीवा में कम्पन उत्पन्न कर रूक-रूककर दो वेगों के साथ उत्पन्न होती है।
  • एक साथ दो वेग होने के कारण इस हिक्का को यमला हिक्का भी कहते हैं।
  • यह कष्टसाध्य है।

साध्यासाध्यता

• महाहिक्का, गम्भीराहिक्का तथा व्यपेता हिक्का को आचार्यों ने असाध्य माना है।          …………………                                                                        • क्षुद्रा तथा अन्नजा हिक्का साध्य होती हैं।
• प्रलाप तथा तृष्णादि उपद्रव होना पर हिक्का असाध्य होती है।
• वृद्धावस्था में उत्पन्न होने वाली हिक्का असाध्य होती है।
…………………..
• अति व्यवाय तथा अति व्यायाम के कारण उत्पन्न हिक्का असाध्य होती है।
• हिक्का के कारण जिस रोगी का सम्पूर्ण शरीर खिंच जाता है, आँखे चढ़ जाती हैं, अरूचि तथा क्षवथु आदि उत्पन्न हो जाती है, वह हिक्का असाध्य होती है।

 

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