आम :-
“जठरानलदौर्बल्यात् अविपक्वस्तु यो रसः ।
स आमसंज्ञको देहे सर्व दोषप्रकोपणः ।।” (मधुकोश)
- उदर की अग्नि की दुर्बलता से जो अविपक्व रस बनता है, उसे आम कहते है।
- यह शरीर में सभी दोषों को प्रकुपित करता है।
“आमेन सहितः वातः आमवातः ।”
- आम वायु के साथ मिलकर पूरे शरीर में फैलकर आमवात को उत्पन्न करता है।
परिभाषा:-
“युगपत्कुपितावन्तस्त्रिकसन्धिप्रवेशको।
स्तब्धं च गुरुतो गात्रमामवातः स उच्यते।।’ (मा.नि. 25/5)
- जब दोनों (युगपत्, आम व वात) कुपित होकर त्रिक प्रदेश व सन्धियों में प्रवेश करके स्तब्धता (जकड़ाहट) व शरीर (गात्र) में भारीपन (गुरूता) उत्पन्न करते है तो उसे आमवात कहते है।
निदान :
“विरुद्धाहारचेष्टस्य मन्दाग्ने निश्चलस्य च।
स्निग्धं भुक्तवतो ह्यन्नं व्यायाम कुर्वतस्तथा।” (मा.नि. 25/1)
- विरुद्ध आहार (दुध के साथ अम्लीय पदार्थ, लवण, मांस, मूली सेवन)
- विरुद्ध चेष्टा (विहार)
- अग्नि मन्द होना
- स्निग्ध आहार के बाद व्यायाम (यात्रा आदि) करना (प्रमुख निदान)
- निश्चेष्ट (आलस्य) अभिष्यन्दी (दही), गुरू पदार्थों का अधिक सेवन
- आनूप (जलीय) जीवों का मांस सेवन (मछली आदि)
सम्प्राप्ति :-
सम्प्राप्ति घटक :-
- दोष – वात प्रधान त्रिदोष
- दूष्य – रस, कण्डरा, स्नायु
- स्रोतस् – रसवह
- अधिष्ठान – सभी सन्धियां
- रोग – आमाश्योत्थ
क्रियात्मक पक्ष:
- आमवात का मुख्य कारण स्निग्ध आहार के बाद व्यायाम या यात्रा करना है।
- व्यायाम या यात्रा करने से वायु का प्रकोप होता है, ये दोनों मिलकर ही आमवात की उत्पत्ति करते है ।
रूप (लक्षण):
“अंगमर्दोऽरूचिस्तृष्णाह्यालस्यं गौरवं ज्वरः।
अपाकः शूनताऽङ्गानामामवातस्य लक्षणं ।।” (मा.नि. 25/6)
- अङ्गमर्द
- शरीर में भारीपन
- अरूचि
- तृष्णा
- अजीर्ण
- ज्वर
- आलस्य
- अंगों में शोथ
भेद :-
दोष | प्रमुख लक्षण |
1. वातज | वेदना अधिक |
2. पित्तज | दाह व लालिमा |
3. कफज | गुरूता, जकड़ाहट अधिक |
4. सन्निपातज | सभी लक्षणों की तीव्रता |
आमवात की तीव्रावस्था के लक्षण :-
- वृश्चिकदंश (बिच्छू डंक) के समान पीड़ा विशिष्ट लक्षण है।
- इसके अतिरिक्त गुल्फ, त्रिक, जानु व मणिबन्ध सन्धियों में शूल, शोथ व जकड़ाहट होती है।
- शरीर में भारीपन, उत्साह में कमी, अरूचि, अग्निमांद्य आदि लक्षण होते है।