व्यायाम
लाघवं कर्मसामर्थ्य दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः।
विभक्तघनगात्रत्वं व्यायामादुपजायते ॥10॥
- व्यायाम करने से शरीर में लघुता (हलकापन), कार्य करने की शक्ति तथा पाचकाग्नि प्रदीप्त होती है।
- मेदोधातु का क्षय होता है, शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग की मांसपेशियाँ पृथक-पृथक स्पष्ट हो जाती है तथा शरीर घन (ठोस) हो जाता है।
व्यायाम का निषेध
वातपित्तामयी बालो वृद्धोऽजीर्णी च तं त्यजेत् ।
- वातपित्त के रोगी, बालक, वृद्ध तथा अजीर्ण रोगी को व्यायाम नहीं करना चाहिए।
अर्द्धशक्ति तथा काल-निर्देश
अर्धशक्त्या निषेव्यस्तु बलिभिः स्निग्धभोजिभिः ॥11॥
शीतकाले वसन्ते च, मन्दमेव ततोऽन्यदा।
- बलवान् एवं स्निग्ध भोजन करने वाले को शीत काल एवं वसन्त ऋतु में अर्द्ध शक्ति भर व्यायाम करना चाहिए।
- अन्य ऋतुओं (ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद) में स्वल्प व्यायाम करना चाहिए।
शरीरायासजनने कर्म व्यायाम उच्यते ।
- जिस क्रिया से शरीर में आयास (श्रम- थकावट) उत्पन्न हो, उसे व्यायाम कहते हैं।
शरीर – मर्दन
तं कृत्वाऽनुसुखं देहं समन्ततः ॥12॥
- व्यायाम करके समस्त शरीर का सुखपूर्वक मर्दन करना चाहिए।
अति व्यायाम से हानि
तृष्णा क्षयः प्रतमको रक्तपित्तं श्रमः क्लमः ।
अतिव्यायामत: कासो ज्वरश्छर्दिश्च जायते ॥
- अधिक व्यायाम करने से तृषा (प्यास), क्षयरोग (राजयक्ष्मा), प्रतमक श्वास, रक्तपित्त, श्रम (थकावट), क्लम (मानसिक दुर्बलता या सुस्ती), कास (खाँसी) ज्वर तथा छर्दि (वमन) रोगों की उत्पत्ति होती है।
व्यायाम आदि का निषेध
व्यायामजागराध्व स्त्रीहास्यभाष्यादिसाहसम् ।
गजं सिंह इवाकर्षन् भजन्नति विनश्यति ॥14॥
- व्यायाम, जागरण, मार्गगमन, मैथुन, हास्य एवं भाषण – इनका साहस (शक्ति) से अधिक सेवन करने पर मनुष्य उसी प्रकार विनष्ट (रूग्ण अथवा मृत) हो जाता है, जिस प्रकार हाथी (अपने से विशाल जन्तु) को खींचता हुआ सिंह (शेर) नष्ट हो जाता है ।