आयुर्वेद का प्रयोजन, आयुर्वेदावतरण, अष्टांगहृदय का स्वरुप, आयुर्वेद के आठ अंग

मंगलाचरण :-

रागादिरोगान् सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान् ।
औत्सुक्यमोहरतिदाञ्जघान योऽपूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै ।।

  • राग-द्वेष आदि रोगों को, जो नित्य मानव के साथ सम्बद्ध रहते है एवं सम्पूर्ण शरीर में फैले रहते हो, अविचार युक्त कार्य प्रवृत्ति, असन्तोष को उत्पन्न करते हैं, उन सबको जिसने नष्ट किया है, उस आचार्य रूप अर्थात् अद्भुत रूप वैद्य को नमस्कार है।

अथात आयुष्कामीयमध्यायं व्याख्यास्यामः ।।१।।

  • आयु की कामना करने वालों के लिए जो हितकर अध्याय

आयुर्वेद का प्रयोजन :-

आयु: कामयमानेन धर्मार्थसुखसाधनम् ।
आयुर्वेदोपदेशेषु विधेयः परमादरः ।।२।।

  • धर्म, अर्थ एवं सुख (तत्कालीन तथा उत्तरकालीन दोनों प्रकार के) इन सभी का साधन आयु है। उस आयु की कामना करने वाले पुरुष को आयुर्वेद के उपदेश में परम आदर रखना चाहिए।

आयुर्वेदावतरण :-

ब्रह्मा स्मृत्वाऽऽयुषो वेदं प्रजापतिमजिग्रहत् । सोऽश्विनौ तौ सहस्त्राक्षं सोऽत्रिपुत्रादिकान्मुनीन् ।
तेऽग्निवेशादिकांस्ते तु पृथक् तन्त्राणि तेनिरे ।।३।।

  • सर्वप्रथम ब्रह्मा ने आयुर्वेद का स्मरण करके दक्षप्रजापति को आयुर्वेद का ज्ञान दिया। दक्षप्रजापति ने देववैद्य अश्विनी-कुमारों को आयुर्वेद का उपदेश दिया।
  • अश्विनीकुमारों ने सहस्राक्ष (इन्द्र) को और इन्द्र ने अत्रिपुत्र अर्थात् आत्रेय, धन्वन्तरि, निमि, काश्यप आदि को आयुर्वेद पढ़ाया।
  • आत्रेय आदि ने अग्निवेश आदि शिष्यों को आयुर्वेद का उपदेश दिया। फिर अग्निवेश आदि ने पृथक्-पृथक् (तन्त्राणि) शास्त्रों की रचना की।

अष्टांगहृदय का स्वरूप (वैशिष्ट्य) :-

तेभ्योऽतिविप्रकीर्णेभ्यः प्रायः सारतरोच्चयः ।
क्रियतेऽष्टाङ्गहृदयं नातिसङ्क्षेपविस्तरम् ।।४।।

  • इधर-उधर (प्रकीर्ण) विक्षिप्त उन प्राचीन तन्त्रों में से उत्तम से उत्तम (सार) भाग को लेकर यह संग्रह किया गया है। इस संग्रह ग्रंथ का नाम अष्टांगहृदय है। इसमें वर्णित विषय न अत्यन्त संक्षेप से और न अत्यन्त विस्तार से कहे गये हैं।

आयुर्वेद के आठ अंग :-

कायबालग्रहोर्ध्वाङ्गशल्यदंष्ट्राजरावृषान् 
अष्टावङ्गानि तस्याहुश्चिकित्सा येषु संश्रिता ॥५॥

  1. कायचिकित्सा
  2. बालतन्त्र (कौमारभृत्य) 
  3. ग्रहचिकित्सा (भूतविद्या) 
  4. ऊर्ध्वांगचिकित्सा (शालाक्यतन्त्र)
  5. शल्यचिकित्सा (शल्यतन्त्र) 
  6. दंष्ट्राविषचिकित्सा (अगदतन्त्र ) 
  7. जराचिकित्सा (रसायनतन्त्र) तथा 
  8. वृषचिकित्सा (वाजीकरण – तन्त्र) 

ये आठ अंग कहे गये हैं। इन्हीं अंगों में सम्पूर्ण चिकित्सा आश्रित है।

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