पारद के प्रमुख पाँच पर्याय 
पारद के प्रमुख पाँच पर्याय
Five important synonyms of Parad
1. रस :-
रसनात् सर्वधातूनां रस इत्यभिधीयते ।जरारुङ्मृत्युनाशाय रस्यते वा रसो मतः ।।
- स्वर्णादि सभी धातुओं एवं अभ्रकादि महारसों को भक्षण करके सभी धातुओं आदि की शक्ति स्वयं में लेने के कारण ही इसे रस कहते हैं ।
- जरा, रोग, मृत्यु आदि को नष्ट करने में समर्थ होने से भी इसे रस कहते है ।
मम देह रसो यस्मात् रसस्तेनायमुच्यते ” ।
- शिववीर्य होने के कारण इसे रस कहते हैं ।
2. रसेन्द्रः –
रसोपरसराजत्वाद्रसेन्द्र इति कीर्तितः ।
- रसों एवं उपरसों का राजा होने के कारण इसे रसेन्द्र कहते है ।
3.सूत : –
देहलोहमयीं सिद्धिं सूते सूतस्ततः स्मृतः ।
- देह सिद्धि एवं लौह सिद्धि को देने वाला होने के कारण इसे सूत कहते है ।
4. पारद : –
रोगपङ्काब्धिमग्नानां पारदानाञ्च पारदः ।
- रोगरूपी कीचड़ वाले समुद्र में डूबे हुए मनुष्यों को पार करने वाला होने के कारण इसे पारद कहते हैं ।
5. मिश्रक :-
संर्वधातुगतं तेजोमिश्रितं यत्र तिष्ठति ।
तस्मात् स मिश्रकः प्रोक्तो नानारूपफलप्रदः ।।
- जिसमें सभी धातुओं का तेज मिश्रित हो, उसे मिश्रक कहते है तथा इसे अनेक प्रकार का फल देने वाला कहा गया है ।
पारद के भेद :-
पारद के भेद :-
- पारद एक प्रकार का होते हुए भी स्थान भेद से पृथक् – पृथक् मानने पर पाँच प्रकार का होता है ।
- जिसका निम्नानुसार वर्णन है :-
1. रस
2. रसेन्द्र
3. सूत
4. पारद
5. मिश्रक
1. रस :-
- यह रक्तवर्ण, सर्वदोषमुक्त, रसायन, जरा व रोगनाशक होता है ।
- इसके उपयोग से देवता अजर – अमर हुये ।
2. रसेन्द्र :-
- यह श्याववर्ण, दोषमुक्त, रूक्ष, अतिचञ्चल, रसायन होता है ।
- इसके उपयोग से नाग जरा व मृत्यु से मुक्त हुये ।
- स्वयं अजर – अमर हो जाने के बाद देवताओं और नागों ने क्रमशः रस और रसेन्द्र संज्ञक पारद के कूपों को मिट्टी व पत्थरों से भर दिया ताकि आमजन लाभ उठाकर उनकी समानता न कर सकें ।
- इसी कारण व रसेन्द्र पारद की उपलब्धि अतिदुर्लभ हो गयी ।
3. सूत :-
- यह किञ्चित पीतवर्ण, रूक्ष, दोषों से युक्त होता है ।
- अष्टादश संस्कारों से सुसंस्कारित होने पर शरीर को लौह सदृश दृढ़ बना देता है।
4. पारद : –
- यह श्वेतवर्ण का, चञ्चल होने से विविध औषधि योगों में प्राधान्येन मिलकर विविध रोगों को नष्ट करता है ।
5. मिश्रक :-
- मयूरपंख चन्द्रिकावत् होने से अष्टादश संस्कार करने पर अच्छी तरह रोगनाशादि कार्य को साधने वाला होता है ।
ग्राह्य – अग्राह्य पारद के लक्षण :-
- शुद्ध पारद को काँच के पात्र में रखने पर अन्तस्तल से नीलाभ, बाहर से उज्जवल वर्ण एवं मध्याह्न के सूर्य की तरह प्रकाशित हो, वह पारद श्रेष्ठ होता है ।
- धूम्रवर्ण, पाण्डुवर्ण और कई वर्षों से युक्त पारद रसकर्म सिद्धि के लिए ग्रहण योग्य नहीं होता है ।
गुग्गुलु ।। Commiphora Mukul
Charak Samhita – kriyakal
Charak Samhita – Jawar Nidan – Panch Nidan