Charak Samhita – Apamarga – 2

     
अष्टाविंशति यवागू – वर्णन

(1) अग्निप्रदीपक शूलनाशक यवागू –

  • पीप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक एवं सोंठ से बनायी गयी यवागू
  • जाठराग्निदीपक एवं शूलनाशक होती है ।

(2) पाचनी एवं ग्राहिणी पेया –

  • कैथ का फल, बिल्व, तिनपतिया (चांगेरी), मट्ठा एवं अनारदाना से सिद्ध की गयी पेया
    पाचन और ग्राही होती है ।

(3) वातज विकारनाशक पेया –

  • लघुपञ्चमूल ( छोटी कटेरी , बड़ी कटेरी , सरिवन , पिठवन एवं गोखरू ) से सिद्ध की गयी पेया
    वातज विकार ( अतिसार या ग्रहणी ) में लाभप्रद होती है ।

(4) पित्तश्लेष्मातिसार नाशक पेया –

  • सरिवन, बला, बिल्व , पिठवन से सिद्ध हुई और अनार रस से खट्टी की हुई पेया
    पित्तश्लेष्मजन्य अतिसार रोग में हितकर होती है ।

(5) रक्तातिसारनाशक पेया –

  • बकरी के दूध में आधा पानी मिलाकर उसमें ह्रीबेर , नीलकमल, नागरमोथा और पिठवन से तैयार की हुई पेया रक्तातिसार को नष्ट करती है ।

(6) आमातिसारघ्नी पेया –

  • आमातिसार में अतीस और सोंठ से बनायी गयी पेया को अनार के रस में खट्टी की हुई पेया ।

(7) मूत्रकृच्छ्रनाशिनी पेया –

  • गोखरू और छोटी कटेरी से सिद्ध पेया में फाणित (राब) मिलाकर मूत्रकृच्छ्र रोग में देना चाहिए ।

(8) क्रिमिघ्नी यवागू –

  • वायविडंग, पिप्पलीमूल, शिग्रु एवं मरिच के साथ मढे में तैयार तथा सज्जीखार – मिश्रित यवागू क्रिमियों को नष्ट करती है ।

(9) तृष्णाशामक यवागू –

  • मुनक्का, सारिवा, धान का लावा, पिप्पली एवं नागरमोथा से सिद्ध यवागू में ( शीतल होने पर ) मधु डालकर सेवन करने से पिपासा दूर होती है ।

(10) विषघ्नी यवागू –

  • सोमराजी से सिद्ध की हुई यवागू विषनाशक होती है ।

(11)कृशतानाशक यवागू –

  • सूअर के मांसरस से सिद्ध की हुई यवागू बृंहणी होती है।

(12) कृशताकारक यवागू –

  • भुने हुए गवेधुक से बनायी हुई यवागू मधु डालकर पीने से शरीर को कृश (दुर्बल) बनाती है ।

(13) स्नेहनार्थ यवागू –

  • अधिक तिल और घृतयुक्त नमक के साथ तैयार की हुई यवाग स्नेहन करने वाला होता है ( इसमें तिल अधिक और चावल कम पड़ता है)

(14) रूक्षणार्थ यवागू –

  • कुश की जड़ और आँवले के क्वाथ में सावाँ का चावल डालकर पकाया गयी यवागू शरीर में रूक्षता लाती है ।

(15) हिक्का – कास – श्वासनाशिनी यवागू –

  • दशमूल ( सरिवन , पिठवन , बृहती , कण्टकारी , गोखरू , बेल , गम्भारी, अग्निमन्थ , पाढल एवं श्योनाक ) से पकायी गयी यवागू
    खाँसी , श्वास , हिचकी और कफज विकारों को दूर करती है ।

(16) पक्वाशयशूलनाशक यवागू –

  • यमक अर्थात् समान मात्रा में घी एवं तेल लेकर उसमें चावल को भूनकर मद्य के साथ पकायी हुई यवागू पक्वाशय के शूल को दूर करती है ।

(17) रेचक यवागू –

  • शाक , मांस , तिल और उड़द से सिद्ध यवागू पुरीष को बाहर निकालती है।

(18) ग्राही यवागू –

  • जामुन की गुठली , आम , खट्टे कैथ का गुदा एवं बिल्व से बनायी गयी यवागू मल को बाँधने वाली होती है ।

(19)भेदिनी यवागू –

  • यवक्षार , चित्रक , हिंगु एवं अम्लवेत से सिद्ध की हुई यवागू मल का भेदन कर कब्ज को मिटाती है ।

(20) वातानुलोमनी यवागू –

  • हर्रे , पिप्पलीमूल एवं विश्व से बनी यवागू वायु का अनुलोमन करती है ।

(21) घृतजन्य उपद्रवशामक यवागू –

  • तक्र से बनी यवागू घृत के अजीर्ण से होने वाले उपद्रवों को शान्त करती है ।

(22) तैलव्यापत्-शामक यवागू –

  • तक्र और तिल की खली (पिण्याक) से सिद्ध की गयी यवागू
  • तैल के अजीर्ण से उत्पन्न उपद्रवों को शान्त करती है।

(23) विषमज्वरघ्नी यवागू –

  • गौ के मांसरस से सिद्ध की गयी और खट्टे अनार के रस से खट्टी की गयी यवागू विषमज्वर को नष्ट करती है ।

(24) कण्ठरोगनाशक यवागू –

  • जव को घी-तेल के सम्मिश्रण में भूनकर पिप्पली तथा आँवला के साथ पकायी हुई यवागू कण्ठ के रोगों को शान्त करती है ।

(25) शिश्नपीडाशामक यवागू –

  • मुर्गे के मांसरस से बनायी गयी यवागू वीर्यमार्ग की पीड़ा को दूर करती है ।

(26) वाजीकरण यवागू –

  • उड़द की दाल तथा घी और दूध के साथ बनायी हुई यवागू वृष्य (वाजीकरण) होती है ।

(27) मदहर यवागू –

  • पोई के शाक और दही के साथ पकायी हुई यवागू मदरोग को दूर करती है ।

(28) क्षुधानाशक यवागू –

  • अपामार्ग के बीज , दूध और गोह के मांसरस से बनायी यवागू भूख को नष्ट करती है ।


Charak Samhita – kriyakal

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