अष्टाविंशति यवागू – वर्णन
अष्टाविंशति यवागू – वर्णन
(1) अग्निप्रदीपक शूलनाशक यवागू –
- पीप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक एवं सोंठ से बनायी गयी यवागू
- जाठराग्निदीपक एवं शूलनाशक होती है ।
(2) पाचनी एवं ग्राहिणी पेया –
- कैथ का फल, बिल्व, तिनपतिया (चांगेरी), मट्ठा एवं अनारदाना से सिद्ध की गयी पेया
पाचन और ग्राही होती है ।
(3) वातज विकारनाशक पेया –
- लघुपञ्चमूल ( छोटी कटेरी , बड़ी कटेरी , सरिवन , पिठवन एवं गोखरू ) से सिद्ध की गयी पेया
वातज विकार ( अतिसार या ग्रहणी ) में लाभप्रद होती है ।
(4) पित्तश्लेष्मातिसार नाशक पेया –
- सरिवन, बला, बिल्व , पिठवन से सिद्ध हुई और अनार रस से खट्टी की हुई पेया
पित्तश्लेष्मजन्य अतिसार रोग में हितकर होती है ।
(5) रक्तातिसारनाशक पेया –
- बकरी के दूध में आधा पानी मिलाकर उसमें ह्रीबेर , नीलकमल, नागरमोथा और पिठवन से तैयार की हुई पेया रक्तातिसार को नष्ट करती है ।
(6) आमातिसारघ्नी पेया –
- आमातिसार में अतीस और सोंठ से बनायी गयी पेया को अनार के रस में खट्टी की हुई पेया ।
(7) मूत्रकृच्छ्रनाशिनी पेया –
- गोखरू और छोटी कटेरी से सिद्ध पेया में फाणित (राब) मिलाकर मूत्रकृच्छ्र रोग में देना चाहिए ।
(8) क्रिमिघ्नी यवागू –
- वायविडंग, पिप्पलीमूल, शिग्रु एवं मरिच के साथ मढे में तैयार तथा सज्जीखार – मिश्रित यवागू क्रिमियों को नष्ट करती है ।
(9) तृष्णाशामक यवागू –
- मुनक्का, सारिवा, धान का लावा, पिप्पली एवं नागरमोथा से सिद्ध यवागू में ( शीतल होने पर ) मधु डालकर सेवन करने से पिपासा दूर होती है ।
(10) विषघ्नी यवागू –
- सोमराजी से सिद्ध की हुई यवागू विषनाशक होती है ।
(11)कृशतानाशक यवागू –
- सूअर के मांसरस से सिद्ध की हुई यवागू बृंहणी होती है।
(12) कृशताकारक यवागू –
- भुने हुए गवेधुक से बनायी हुई यवागू मधु डालकर पीने से शरीर को कृश (दुर्बल) बनाती है ।
(13) स्नेहनार्थ यवागू –
- अधिक तिल और घृतयुक्त नमक के साथ तैयार की हुई यवाग स्नेहन करने वाला होता है ( इसमें तिल अधिक और चावल कम पड़ता है)
(14) रूक्षणार्थ यवागू –
- कुश की जड़ और आँवले के क्वाथ में सावाँ का चावल डालकर पकाया गयी यवागू शरीर में रूक्षता लाती है ।
(15) हिक्का – कास – श्वासनाशिनी यवागू –
- दशमूल ( सरिवन , पिठवन , बृहती , कण्टकारी , गोखरू , बेल , गम्भारी, अग्निमन्थ , पाढल एवं श्योनाक ) से पकायी गयी यवागू
खाँसी , श्वास , हिचकी और कफज विकारों को दूर करती है ।
(16) पक्वाशयशूलनाशक यवागू –
- यमक अर्थात् समान मात्रा में घी एवं तेल लेकर उसमें चावल को भूनकर मद्य के साथ पकायी हुई यवागू पक्वाशय के शूल को दूर करती है ।
(17) रेचक यवागू –
- शाक , मांस , तिल और उड़द से सिद्ध यवागू पुरीष को बाहर निकालती है।
(18) ग्राही यवागू –
- जामुन की गुठली , आम , खट्टे कैथ का गुदा एवं बिल्व से बनायी गयी यवागू मल को बाँधने वाली होती है ।
(19)भेदिनी यवागू –
- यवक्षार , चित्रक , हिंगु एवं अम्लवेत से सिद्ध की हुई यवागू मल का भेदन कर कब्ज को मिटाती है ।
(20) वातानुलोमनी यवागू –
- हर्रे , पिप्पलीमूल एवं विश्व से बनी यवागू वायु का अनुलोमन करती है ।
(21) घृतजन्य उपद्रवशामक यवागू –
- तक्र से बनी यवागू घृत के अजीर्ण से होने वाले उपद्रवों को शान्त करती है ।
(22) तैलव्यापत्-शामक यवागू –
- तक्र और तिल की खली (पिण्याक) से सिद्ध की गयी यवागू
- तैल के अजीर्ण से उत्पन्न उपद्रवों को शान्त करती है।
(23) विषमज्वरघ्नी यवागू –
- गौ के मांसरस से सिद्ध की गयी और खट्टे अनार के रस से खट्टी की गयी यवागू विषमज्वर को नष्ट करती है ।
(24) कण्ठरोगनाशक यवागू –
- जव को घी-तेल के सम्मिश्रण में भूनकर पिप्पली तथा आँवला के साथ पकायी हुई यवागू कण्ठ के रोगों को शान्त करती है ।
(25) शिश्नपीडाशामक यवागू –
- मुर्गे के मांसरस से बनायी गयी यवागू वीर्यमार्ग की पीड़ा को दूर करती है ।
(26) वाजीकरण यवागू –
- उड़द की दाल तथा घी और दूध के साथ बनायी हुई यवागू वृष्य (वाजीकरण) होती है ।
(27) मदहर यवागू –
- पोई के शाक और दही के साथ पकायी हुई यवागू मदरोग को दूर करती है ।
(28) क्षुधानाशक यवागू –
- अपामार्ग के बीज , दूध और गोह के मांसरस से बनायी यवागू भूख को नष्ट करती है ।