Rasa Shastra – Dravya varga prakaran – 1

द्रव्यवर्ग 

अम्लवर्ग : –

  • जम्बीरी नींबू, कागजी नींबू, अम्लवेतस, इमली, नारंगी, अनार, वृक्षाम्ल, बिजौरा नींबू, चांगेरी, चणकाम्ल, खट्टाबेर, करौदा, चूका इन सभी को अम्लवर्ग के अन्तर्गत माना गया है ।
  • मर्दन एवं भावना आदि के लिए इनका स्वरस या क्वाथ लिया जाता है ।

अम्लपञ्चक : –

  • अम्लवेतस,
  • जम्बीरी नींबू,
  • मातुलुङ्ग नींबू,
  • नारङ्गी और
  • कागजी नींबू

क्षीरत्रयः –

  • अर्कदुग्ध,
  • वटदुग्ध तथा
  • स्नुहीदुग्ध
  • मारणादि के लिए प्रशस्त है ।

मधुरत्रयः –

  • घृत,
  • गुड़ तथा
  • मधु इन तीनों द्रव्यों को एकत्र लेने पर मधुरत्रिक, त्रिमधुर या मधुरत्रय नाम से कहा जाता है ।

पञ्चमृत्तिका : –

इष्टिका गैरिका लोणं भस्म वल्मीकमृत्तिका ।

रसप्रयोगकुशलैः कीर्तिताः पञ्चमृत्तिकाः।।

  • ईंट का चूर्ण,
  • गैरिक चूर्ण,
  • सैंधवलवण,
  • भस्म ( कण्डों की राख )
  • वल्मीक मृत्तिका ( दीमक की मिट्टी ) इन पाँच पदार्थों को पञ्चमृत्तिका नाम से ग्रहण किया जाता है ।
  • जिसका उपयोग स्वर्णशोधन में बतलाया गया है ।

 

पञ्चगव्यः –

गव्यं क्षीरं दधि घृतं गोमूत्रं गोमयं तथा ।

एकत्रयोजितं तुल्यं पञ्चगव्यमिहोच्यते ।

  • गौदुग्ध,
  • गाय का दही,
  • गाय का घी,
  • गौमूत्र और
  • गाय का गोबर रस – इन पांच द्रव्यों को एक – एक भाग ग्रहण करने पर पञ्चगव्य कहा जाता है ।

पञ्चामृतः –

  • गौदुग्ध,
  • दही,
  • गौघृत
  • मधु और
  • शर्करा को समान भाग में एकत्र मिलाने पर पञ्चामृत कहा जाता है ।
  • इसके द्वारा अनेक रसशास्त्रीय कार्य सिद्ध होते है । यथा – ताम्र भस्म का अमृतीकरण ।

क्षारद्वय – क्षारत्रयः –

  • सर्जिक्षार एवं यवक्षार को क्षारद्वय
  • इसमें टंकण मिलाने पर क्षारत्रय कहलाता है ।

क्षारपञ्चक : –

  • पलाशक्षार, मुष्कक्षार, यवक्षार, सर्जिक्षार और तिलक्षार को क्षार पञ्चक कहते है ।

क्षाराष्टकः –

  • थूहर,
  • पलाश,
  • अपामार्ग,
  • इमली,
  • अर्क,
  • तिलनाल,
  • सर्जिक्षार और यवक्षार को क्षाराष्टक कहते है ।

द्रावकगण : –

  • गुञ्जा,
  • मधु,
  • गुड़,
  • घृत,
  • टंकण
  • गुग्गुलु को प्राचीन आचार्यो ने धातुद्रावकगण कहा है ।

मित्रपञ्चक : 

  • घृत,
  • गुञ्जा,
  • टंकण,
  • मधु
  • गुग्गुलु – इन पांच द्रव्यों को मिलाकर मित्रपञ्चक कहा जाता है ।
  • विविध प्रकार के लोहों को पिघलाने के लिए रसशास्त्र में मित्रपञ्चक का प्रयोग होता है ।

लवणपञ्चक : –

  • सैंधवलवण ,
  • सामुद्र लवण,
  • विड लवण,
  • सौवर्चल लवण
  • रोमक लवण इन पांचों नमक को लवणपञ्चक नाम से जाना जाता है ।

रक्तवर्ग : –

  • मञ्जिष्ठा,
  • केशर,
  • लाक्षा,
  • दाडिमपुष्प,
  • रक्तचन्दन,
  • बन्धुक पुष्य
  • रक्त करवीर – इन सभी द्रव्यों के समूह को रक्तवर्ग कहा जाता है ।

श्वेतवर्ग : –

  • तगर,
  • कुटज,
  • कुन्द,
  • श्वेतगुञ्जा,
  • जीवन्ती,
  • श्वेतकमलपुष्प एवं कन्द इन सभी द्रव्यों के समूह को श्वेतवर्ग कहा जाता है ।


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