Charak Samhita – षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः

अथातः षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः

 

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छ: सौ ‘विरेचन’ होते हैं – षड् विरेचनशतानि  और

छ: विरेचनों के आश्रय होते हैं — षड् विरेचनाश्रया




इह खलु षड् विरेचनशतानि भवन्ति,

षड् विरेचनाश्रयाः, पञ्च कषाययोनयः, पञ्चविधं कषायकल्पनं, पञ्चाशन्महाकषायाः, पञ्च कषायशतानि, इति संग्रहः ॥

  • इस आयुर्वेदशास्त्र में छ : सौ विरेचन योग हैं, उन छ : सौ विरेचनों के छ : आधार या आश्रय हैं, पाँच सौ कषाय हैं और उन कषायों की पाँच योनियाँ या जातियाँ हैं ।
  • पाँच प्रकार के कषायों की कल्पनाएँ ( निर्माणविधियाँ ) हैं और पचास महाकषाय हैं ।



छः सौ वमन एवं विरेचन योग :-

                                         वमन योग 

                             विरेचन योग 

मदनफल से १३३ (133) काली एवं सफेद निशोथ से १०० (100)
देवदाली से ३९ (39) इन्हीं से दूसरे अन्य योग १० (10)
तितलौकी ४ (4) अमलतास से १२ (12)
तीता नेनुआ से ६० (60) लोध्र से १६ (16)

इन्द्रजव से १८ (18)

सेहुण्ड से २० (20)
कड़वी तरोई से ६० (60) सप्तला एवं शखिनी से ३९ (39)
  छोटी एवं बड़ी दन्ती से ४८ (48)
वमन योग = ३५५ (355) विरेचन योग = २४५ (245)


 
कुल योग = ६००




विरेचन द्रव्यों के आधार/आश्रय :-


षड् विरेचनाश्रया इति क्षीरमूलत्वपत्रपुष्पफलानीति ।


१ . दूध 

२ . मूल (जड़)

३ . छाल 

४ . पत्ती 

५ . फूल और

६ . फल



कषाय की पांच योनियाँ:-

  जिन द्रव्यों से कषायों = क्वाथों का निर्माण किया जाता है , वे कषाययोनि कहलाते हैं |

१ . मधुरकषाय 

२ . अम्लकषाय

३ . कटुकषाय 

४ . तिक्तकषाय

५ . कषायकषाय



पञ्चविध कषायकल्पना :-


पञ्चविधं कषायकल्पनमिति तद्यथा- स्वरसः , कल्कः , शृतः , शीतः , फाण्टः , कषायश्चेति ।

तेषां यथापूर्व बलाधिक्यम् ; अतः कषायकल्पना व्याध्यातुरबलापेक्षिणी ; न त्वेवं खलु सर्वाणि सर्वत्रोपयोगीनि भवन्ति ॥


१ . स्वरस , २ . कल्क , ३ . शृत , ४ . शीत तथा ५ . फाण्ट — ये पाँच प्रकार की कषाय – कल्पनाएँ होती हैं ।

  • इन पञ्चविध कषायकल्पनाओं में अन्त से क्रमशः पूर्व – पूर्व की कल्पनाएँ अधिक बलवान् होती हैं ।
  • इसलिए इन कषायकल्पनाओं का प्रयोग व्याधि और रोगी के बल के ऊपर निर्भर करता है । सभी कषायकल्पनाएँ सभी रोगों में लाभकारी नहीं होती हैं ।


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