Charak Samhita 1 – Samanya aur vishesh – सामान्य और विशेष

                               
Charak Samhita 1 – Samanya aur vishesh – सामान्य और विशेष

सामान्य और विशेष का लक्षण :-

सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम् ।
ह्रासहेतुर्विशेषश्च, प्रवृत्तिरुभयस्य तु ॥

  • सामान्य सदैव सभी भावों (द्रव्य-गुण-कर्म) की वृद्धि का कारण होता है और विशेष सदैव सभी भावों के ह्रास (कमी) का कारण होता है।

सामान्यमेकत्वकरं, विशेषस्तु पृथक्त्वकृत् ।
तुल्यार्थता हि सामान्यं, विशेषस्तु विपर्ययः ।।

  • सामान्य, द्रव्य – गुण – कर्म की समानता, पदार्थों में परस्पर एकत्व बुद्धि को उत्पन्न करता है ।
  • विशेष पदार्थों में भिन्न – भिन्न गुणों का होना, उनमें परस्पर अलगाव की भावना उत्पन्न करता है ।
  • सामान्य (पदार्थों में समान जाति, गुण-धर्म का होना) समान तुल्यता को प्रकट करता है और विशेष विपरीत गुण – धर्म – क्रिया का होना बतलाता है ।

सामान्य के भेद

(1). द्रव्यसामान्य
(2). गुणसामान्य और
(3). कर्मसामान्य

(1) द्रव्यसामान्य

  • द्रव्य अपने समान द्रव्य की वृद्धि का कारण होता है। जैसे — मांस खाने से मांस की वृद्धि होती है ।
  • (सर्वदा सर्वभावानांसामान्यं वृद्धिकारणम्)

(2) गुणसामान्य

  • गुणसामान्य एकता लाने वाला होता है।
  • जैसे — दूध शुक्र से भिन्न होने पर भी अपने माधुर्य गुण की सामानता के कारण शुक्र को बढ़ाता है।

(3) कर्मसामान्य

  • समान कार्य करने वाला कर्म ‘कर्मसामान्य’ कहलाता है ।
  • जैसे — बैठे रहना कर्म कफ के समान न होने पर भी कफ को बढ़ाता है ।

विशेष

  • विशेष पदार्थ ह्रास का कारण होता है।
  • यह पृथक्त्व (अलगाव) का जनक हैं ।
  • यह असमानता प्रकट करता है म, यह विभेदक होता है ।

**चिकित्सा में ‘विशेष’ का विशेष महत्त्व है, क्योंकि किसी भी रोग की चिकित्सा में यह स्पष्ट रूप से निर्देश किया गया है कि जब देश मात्रा और काल के विपरीत गुण वाले औषधों का युक्तियुक्त ढंग से प्रयोग किया जाता है, तब साध्य रोग नष्ट हो जाते हैं।**


चिकित्सा का सिद्धान्त

१ . क्षीण दोषों का बढ़ाना
२ . प्रकुपित दोषों का प्रशमन करना
३ . बढ़े हुए दोषों का घटाना या हटाना
४ . सम दोषों को सम बनाये रखना

**घटे हुए दोषों या धातुओं को बढ़ाने के लिए सामान्य का प्रयोग करते हैं और बढ़े हुए धातुओं को घटाने के लिए विशेष का प्रयोग करते हैं ।**


विशेष के तीन प्रकार —

(1). द्रव्यविशेष
(2). गुणविशेष
(3). कर्मविशेष ।

(1) द्रव्यविशेष

  • जैसे किसी के शरीर में मांस की वृद्धि हो जाने पर उसे कम करने के लिए उसके गुण विपरीत गुण वाले द्रव्यों का प्रयोग करते हैं।

(2) गुणविशेष

  • शरीर में वायु की वृद्धि होने पर तेल का प्रयोग कराया जाता है , क्योंकि वायु में रूक्ष , शीत और लघु गुण होते हैं एवं तैल में स्निग्ध , उष्ण और गुरु गुण होते हैं, जो वायु के गुणों से विशेष ( विपरीत ) होने के कारण लगातार प्रयोग करने से वायु को शान्त करता है ।

(3) कर्मविशेष

  • बैठना रूपी कर्म कफ का सामान्य है, क्योंकि बैठने से कफ की वृद्धि होती है, ठीक इसके विपरीत जिस कर्म से कफ का ह्रास होगा।