BAMS Studies

व्यायाम, व्यायाम से हानि, व्यायाम का निषेध एवं परिणाम

व्यायाम लाघवं कर्मसामर्थ्य  दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः। विभक्तघनगात्रत्वं  व्यायामादुपजायते ॥10॥ व्यायाम करने से शरीर में लघुता (हलकापन), कार्य करने की शक्ति तथा पाचकाग्नि  प्रदीप्त होती है। मेदोधातु का क्षय होता है, शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग की मांसपेशियाँ  पृथक-पृथक स्पष्ट हो जाती है तथा शरीर घन (ठोस) हो जाता है। व्यायाम का निषेध वातपित्तामयी बालो वृद्धोऽजीर्णी  च तं  …

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उद्वर्तन, उद्वर्तन के गुण, स्नान के गुण, उष्ण-शीत जल का प्रयोग, स्नान का निषेध

उद्वर्तन/उबटन के गुण उद्वर्तन कफहरे  मेदसः  प्रविलायनम् ॥ स्थिरीकरणामङ्गानां त्वक्प्रसादकरं परम् ॥15॥ व्यायाम के पश्चात् कफहर (कषाय-तिक्त) द्रव्यों से उद्वर्तन (उबटन) करना चाहिए। उद्वर्तन मेदोधातु का विलयन, अंग-प्रत्यंग को स्थिर (दृढ़) तथा त्वचा को कर कान्तियुक्त करता है। जौ या चने के आटे में तेल और हल्दी मिलाकर शरीर पर मसलने को उद्वर्तन, उत्सादन या …

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ताम्बूल सेवन विधि, ताम्बूल सेवन निषेध, अभ्यंग का प्रमुख स्थान, अभ्यंग का निषेध, अभ्यंग सेवन विधि

ताम्बूल सेवन विधि भोजन के प्रति इच्छा अधिक हो, मुख स्वच्छ एवं सुगन्धित रखने वाले को पान खाना चाहिए। इसे भोजन की भाँति मुख में रखकर तत्काल निगलना नहीं चाहिए। पान के मसाले — जावित्री, जायफल, लौंग, कपूर, पिपरमेण्ट, कंकोल (शीतल चीनी), कटुक (लताकस्तूरी के बीज) तथा इसमें सुपारी के भिगाये हुए टुकड़े भी रखें। …

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दोषों का वर्णन, विकृत-अविकृत दोष, दोषों के स्थान एवं प्रकोपकाल

दोषों का वर्णन वायुः पित्तं कफश्चेति त्रयो दोषाः समासतः ।।६।। तीन दोष माने जाते हैं – वात पित्त कफ विकृत – अविकृत दोष विकृताsविकृता देहं घ्नन्ति ते वर्तयन्ति च । ये तीनों वात आदि दोष विकृत (बढ़े हुए अथवा क्षीण हुए) शरीर का विनाश कर देते हैं और अविकृत (समभाव में स्थित) जीवनदान करते हैं …

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अञ्जन का प्रयोग, रसाञ्जन प्रयोग विधि,नस्य आदि सेवन निर्देश

अञ्जन प्रयोग सौवीरमञ्जनं   नित्यं  हितमक्ष्णोस्ततो भजेत्। मुखशुद्धि करने के बाद सौवीर अञ्जन का प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए। यह आँखों के लिए हितकर होता है। अञ्जन से नेत्र सुन्दर तथा सूक्ष्म पदार्थों को देखने  योग्य हो जाते हैं। स्वस्थ आँखों में प्रतिदिन लगाने वाले अञ्जन को प्रत्यञ्जन कहते हैं। रसाञ्जन – प्रयोग विधि चक्षुस्तेजोमयं  तस्य  विशेषात्‌ …

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दिनचर्या,ब्रह्मा मुहूर्त, दतवन का विधान, दतवन कि विधि, दतवन का निषेध

दिनचर्या  अथातो  दिनचर्याध्यायं  व्याख्यास्यामः ।    दिनचर्या  –  ‘प्रतिदिनं कर्त्तव्या चर्या दिनचर्या’  प्रतिदिन करने योग्य चर्या  दिनचर्या है । ब्राह्ममुहूर्त  में जागरण ब्राह्मेमुहूर्त   उत्तिष्ठेत्   स्वस्थो  रक्षार्थमायुषः। स्वस्थ (निरोग) मनुष्य आयु (जीवन) की रक्षा के लिए ब्राह्ममुहूर्त में उठे। चार घड़ी रात्रि शेष रहने (प्रात:काल 4-6 बजे) का नाम ‘ब्राह्ममुहूर्त’ होता है । दन्तधावन शरीरचिन्तां निर्वर्त्य कृतशौचविधिस्ततः ॥१॥ …

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आयुर्वेद का प्रयोजन, आयुर्वेदावतरण, अष्टांगहृदय का स्वरुप, आयुर्वेद के आठ अंग

मंगलाचरण :- रागादिरोगान् सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान् ।औत्सुक्यमोहरतिदाञ्जघान योऽपूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै ।। राग-द्वेष आदि रोगों को, जो नित्य मानव के साथ सम्बद्ध रहते है एवं सम्पूर्ण शरीर में फैले रहते हो, अविचार युक्त कार्य प्रवृत्ति, असन्तोष को उत्पन्न करते हैं, उन सबको जिसने नष्ट किया है, उस आचार्य रूप अर्थात् अद्भुत रूप वैद्य को नमस्कार है। अथात आयुष्कामीयमध्यायं …

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आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के ग्रन्थों में अनुसंधान की वैज्ञानिक अवधारणा (Contemporary medical sciences evidences of research in Ayurved classics)

आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांत पंचमहाभूत त्रिदोष षड्पदार्थ स्रोतस् अग्नि आयुर्वेद चिकित्सा का करण औषध द्रव्यों की संरचना, प्राप्तिस्थान, वर्गीकरण, उनके गुण-कर्म तथा उनकी कार्मुकता भी विज्ञान पर आधारित है। आयुर्वेद के औषध निर्माण के क्षेत्र में रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना की विभिन्न औषध कल्पनाएं स्वरस-कल्क-शृत-शीत-फाण्ट-चूर्ण-आसव-अरिष्ट तथा रसौषधि-भस्म आदि रोगी एवं रोग के आधार पर पूर्णत: …

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आमवात – सन्धिवात – वातरक्त का सापेक्ष निदान

आमवात सन्धिवात वातरक्त 1. प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः मणिबन्ध) (wrist joint) प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः घुटने, कमर) in weight bearing joints प्रायः छोटी सन्धियों में (मुख्यतः पाद-अंगुष्ठ मूल) 2. वृश्चिकदंशवत् शूल सन्धि शूल मूषकदंशवत् शूल 3. शोथ रोग (Inflammatory Joint disease) अस्थि-सन्धि क्षयजन्य रोग (Degenerative Joint disease) चयापचय जन्य रोग (Metabolic Joint disease) …

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आमवात

आम :- “जठरानलदौर्बल्यात् अविपक्वस्तु यो रसः । स आमसंज्ञको देहे सर्व दोषप्रकोपणः ।।” (मधुकोश) उदर की अग्नि की दुर्बलता से जो अविपक्व रस बनता है, उसे आम कहते है। यह शरीर में सभी दोषों को प्रकुपित करता है। “आमेन सहितः वातः आमवातः ।” आम वायु के साथ मिलकर पूरे शरीर में फैलकर आमवात को उत्पन्न …

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