BAMS Studies

शिशिर ऋतु काल, वसन्त ऋतु काल, मध्याह्नचर्या,वसन्त ऋतु में अपथ्य

शिशिर ऋतुचर्या अयमेव विधिः कार्यः शिशिरेऽपि विशेषतः । तदा हि शीतमधिकं रौक्ष्यं चादानकालजम् ॥17॥ शिशिर ऋतु में भी हेमन्त ऋतु में कही गयी विधियों का विशेष सेवन करना चाहिए। क्योंकि इस ऋतु में शीत अधिक पड़ने लगती है तथा आदानकाल प्रारम्भ हो जाता है, अतः इसमें रूक्षता आने लगती है। वसन्त ऋतुचर्या कफश्चितो हि शिशिरे […]

शिशिर ऋतु काल, वसन्त ऋतु काल, मध्याह्नचर्या,वसन्त ऋतु में अपथ्य Read More »

अनुकूल व्यवहार–निर्देश, समदृष्टिता का निर्देश,सम्मान करने का निर्देश, सम्भाव का निर्देश, मधुर भाषण निर्देश, भाषण विधि, विचारों को गुप्त रखें, परच्छन्दानुवर्तन

अनुकूल व्यवहार निर्देश अवृत्तिव्याधिशोकार्ताननुवर्तेत शक्तितः । अवृतिकान् जिनकी कोई आजीविका नहीं हो, जो व्याधि एवं शोक से पीड़ित हो, उनकी चिकित्सा एवं आश्वासन आदि से यथाशक्ति सहायता करें । समदृष्टिता का निर्देश आत्मवत्सततं पश्येदपि कीटपिपीलिकम् ॥23॥ कीट (वृश्चिक आदि कृमियों) तथा पिपीलिका (चींटी आदि क्षुद्र प्राणियों) को सदैव अपने समान समझना चाहिए, उनकी हिंसा नहीं

अनुकूल व्यवहार–निर्देश, समदृष्टिता का निर्देश,सम्मान करने का निर्देश, सम्भाव का निर्देश, मधुर भाषण निर्देश, भाषण विधि, विचारों को गुप्त रखें, परच्छन्दानुवर्तन Read More »

हेमन्त ऋतुचर्या, प्रातः काल के कर्तव्य, स्नान आदि की विधि, शीत नाशक उपाय, निवास विधि

हेमन्त ऋतुचर्या बलिनः शीतसंरोधाद्धेमन्ते प्रबलोऽनलः ॥7॥ भवत्यल्पेन्धनो धातून् स पचेद्वायुनेरितः ।अतो हिमेऽस्मिन्सेवेत स्वाद्वम्ललवणान्रसान् ।।8।। हेमन्त ऋतु में काल स्वभाव से पुरुष बलवान् होता है क्योंकि शीत के कारण अवरुद्ध होने से (रोमकूपों के शीत से अवरूद्ध होने के कारण) शरीर की ऊष्मा जाठराग्नि को प्रबल कर देती है। इसलिए आहाररूपी इंधन के न मिलने पर वह

हेमन्त ऋतुचर्या, प्रातः काल के कर्तव्य, स्नान आदि की विधि, शीत नाशक उपाय, निवास विधि Read More »

छः ऋतुएँ, उतरायण – आदान काल (अग्रिगुण प्रधान), आदान काल, विसर्ग काल-परिचय, बल का चयापचय

छः ऋतुएँ मासैर्द्विसङ्ख्यैर्माघाद्यैः क्रमात् षडृतवः स्मृताः । शिशिरोऽथ वसन्तश्च ग्रीष्मो वर्षाः शरद्धिमाः ।।1।।          माघ-फाल्गुन आदि दो-दो महीनों से क्रमशः छः ऋतुएँ होती है। माघ-फाल्गुन : शिशिर ऋतु चैत्र-वैशाख : वसन्त ऋतु ज्येष्ठ-आषाढ़ : ग्रीष्म ऋतु श्रावण-भाद्रपद : वर्षा ऋतु आश्विन-कार्तिक : शरद ऋतु एवं मार्गशीर्ष-पौष : हेमन्त ऋतु । आदान काल – उतरायण  शिशिराद्यास्त्रिभिस्तैस्तु विद्यादयनमुत्तरम् ।  आदानं  च तदादत्ते

छः ऋतुएँ, उतरायण – आदान काल (अग्रिगुण प्रधान), आदान काल, विसर्ग काल-परिचय, बल का चयापचय Read More »

गमन निर्देश, निषिद्ध कार्य, छींक आदि करने की विधि, आंगिक चेष्टाओं का निषेध, शारीरिक चेष्टाओं की मात्रा, मद्यविक्रय आदि का निषेध, अन्य निषिद्ध कर्म, अन्य सदुपदेश, सदाचार सूत्र, विकार पद्धति, सदवृत का उपसंहार

गमनादि का निर्देश चैत्यपूज्यध्वजाशस्तच्छायाभस्मतुषाशुचीन् ।नाक्रामेच्छर्करालोष्टबलिस्नानभुवो न च।।33।। चैत्य (किसी देवता से अधिष्ठित लोक-प्रसिद्ध वृक्ष अथवा मन्दिर), पूज्य (गुरुजन), ध्वजा (पताका, झण्डा) तथा अशस्त (अमंगल वस्तु) की छाया को लांघकर नहीं जाना चाहिए। भस्म (राख की ढेर), तुष (रेत), लोष्ट (मिट्टी का ढेला), बलिभूमि (जहाँ किसी देवता के निमित्त बलि या उपहार दिया हो) तथा स्नानभूमि (जहाँ

गमन निर्देश, निषिद्ध कार्य, छींक आदि करने की विधि, आंगिक चेष्टाओं का निषेध, शारीरिक चेष्टाओं की मात्रा, मद्यविक्रय आदि का निषेध, अन्य निषिद्ध कर्म, अन्य सदुपदेश, सदाचार सूत्र, विकार पद्धति, सदवृत का उपसंहार Read More »

इन्द्रिय व्यवहार विधि,व्यवहार विधि, त्रिवर्ग विरोध का निषेध, सभी धर्मों का आचरण, शरीर शुद्धि के प्रकार, रत्न आदि का धारण, छाया आदि धारण, दण्ड आदि धारण

इन्द्रिय व्यवहार विधि      न पीडवेदिन्द्रियाणि न चैतान्यति लालयेत् ॥29॥ रसना एवं चक्षु आदि इन्द्रियों को न तो रस-रूप आदि विषयों को ग्रहण करने से रोके और न ही इनको अत्यधिक विलास युक्त बनावे । त्रिवर्ग विरोध का निषेध त्रिवर्गशून्यं नारम्भं भजेत्तं चाविरोधयन् । त्रिवर्ग (धर्म-अर्थ-काम) से रहित कोई कार्य नहीं करना चाहिए अर्थात् ऐसा

इन्द्रिय व्यवहार विधि,व्यवहार विधि, त्रिवर्ग विरोध का निषेध, सभी धर्मों का आचरण, शरीर शुद्धि के प्रकार, रत्न आदि का धारण, छाया आदि धारण, दण्ड आदि धारण Read More »

भोजन आदि कर्तव्य, सुख का साधन धर्म, मित्र–अमित्र सेवन विचार, पापकर्मों का त्याग

भोजन आदि कर्तव्य जीर्णे  हितं मितं चाद्यान्न वेगानीरयेद्वलात् ।न वेगितोऽन्यकार्यः स्यान्नाजित्वा साध्यमामयम् ॥ स्नान करने के पश्चात् पहले किये हुए आहार के सम्यक परिपाक हो जाने पर (हितं) पथ्य एवं (मितं) मात्रानुसार आहार लेना चाहिए। मल-मूत्र के वेग को बलपूर्वक निकालने के लिये प्रेरित नहीं करना चाहिए। मल-मूत्र का वेग मालूम पड़ने पर उन्हें रोककर

भोजन आदि कर्तव्य, सुख का साधन धर्म, मित्र–अमित्र सेवन विचार, पापकर्मों का त्याग Read More »

व्यायाम, व्यायाम से हानि, व्यायाम का निषेध एवं परिणाम

व्यायाम लाघवं कर्मसामर्थ्य  दीप्तोऽग्निर्मेदसः क्षयः। विभक्तघनगात्रत्वं  व्यायामादुपजायते ॥10॥ व्यायाम करने से शरीर में लघुता (हलकापन), कार्य करने की शक्ति तथा पाचकाग्नि  प्रदीप्त होती है। मेदोधातु का क्षय होता है, शरीर के प्रत्येक अंग-प्रत्यंग की मांसपेशियाँ  पृथक-पृथक स्पष्ट हो जाती है तथा शरीर घन (ठोस) हो जाता है। व्यायाम का निषेध वातपित्तामयी बालो वृद्धोऽजीर्णी  च तं 

व्यायाम, व्यायाम से हानि, व्यायाम का निषेध एवं परिणाम Read More »

उद्वर्तन, उद्वर्तन के गुण, स्नान के गुण, उष्ण-शीत जल का प्रयोग, स्नान का निषेध

उद्वर्तन/उबटन के गुण उद्वर्तन कफहरे  मेदसः  प्रविलायनम् ॥ स्थिरीकरणामङ्गानां त्वक्प्रसादकरं परम् ॥15॥ व्यायाम के पश्चात् कफहर (कषाय-तिक्त) द्रव्यों से उद्वर्तन (उबटन) करना चाहिए। उद्वर्तन मेदोधातु का विलयन, अंग-प्रत्यंग को स्थिर (दृढ़) तथा त्वचा को कर कान्तियुक्त करता है। जौ या चने के आटे में तेल और हल्दी मिलाकर शरीर पर मसलने को उद्वर्तन, उत्सादन या

उद्वर्तन, उद्वर्तन के गुण, स्नान के गुण, उष्ण-शीत जल का प्रयोग, स्नान का निषेध Read More »

ताम्बूल सेवन विधि, ताम्बूल सेवन निषेध, अभ्यंग का प्रमुख स्थान, अभ्यंग का निषेध, अभ्यंग सेवन विधि

ताम्बूल सेवन विधि भोजन के प्रति इच्छा अधिक हो, मुख स्वच्छ एवं सुगन्धित रखने वाले को पान खाना चाहिए। इसे भोजन की भाँति मुख में रखकर तत्काल निगलना नहीं चाहिए। पान के मसाले — जावित्री, जायफल, लौंग, कपूर, पिपरमेण्ट, कंकोल (शीतल चीनी), कटुक (लताकस्तूरी के बीज) तथा इसमें सुपारी के भिगाये हुए टुकड़े भी रखें।

ताम्बूल सेवन विधि, ताम्बूल सेवन निषेध, अभ्यंग का प्रमुख स्थान, अभ्यंग का निषेध, अभ्यंग सेवन विधि Read More »