Rasa Shastra – Parad – Sapt kanchuk dosha

सप्तकञ्चुक दोष

  • कञ्चुक के समान पतले आवरण सी परत पारद की ऊपरी सतह पर आ जाने को कञ्चुक नाम दिया है ।
  • कञ्चुक दोष सात होते हैं ।

(1) पर्पटी

(2) पाटनी

(3) भेदी

(4) द्रावी

(5) मलकरी

(6) अन्धकारी

(7) ध्वाङ्क्षी


सप्तकञ्चुकदोष का शरीर पर प्रभाव :

(1) पर्पटी शरीर की चमड़ी पपड़ी जैसी हो जाती है ।
(2) पाटनी शरीर को फाड़ देता है ।
(3) भेदी मल भेदन करता है ।
(4) द्रावी शरीर के धातुओं को द्रव कर देता है ।
(5) मलकरी शरीर में मल को बढाता है ।
(6) अन्धकारी पारद को खाने से मनुष्य अन्धा हो जाता है ।
(7) ध्वांक्षी कौए के स्वर जैसा कर्कश स्वर हो जाता है ।

दोष विमर्श :-

नागवङ्ग दोष : –

  • पारद में नाग – वङ्ग भूगर्भ में मिश्रित हो जाते है तथा अधिक लाभ कमाने के लिए व्यापारी वर्ग भी इसमें नाग – वङ्ग मिश्रित कर देते है ।

वह्निदोष : –

  • भूगर्भ में ही उष्ण, तीक्ष्ण एवं आग्नेय गुणों से युक्त खनिजों से मिश्रित होकर पारद वह्निदोषयुक्त हो जाता है ।
  • इस दोष से दाह- सन्ताप आदि हो जाते है ।

मलदोषः

  • पारद में अन्य धातुओं के संसर्ग के कारण मलदोष रूपी स्वाभाविक अशुद्धि आ जाती है ।
  • जिससे जड़ता, रुजा आदि हो जाते है ।

चापल्यदोष : –

  • पारद स्वभावतः चञ्चल धातु है ।
  • इस स्वाभाविक चपलता को कुछ रसाचार्य दोष न मानकर पारद में चपल गर्भत्व को दोष मानते है ।
  • व्यापार के लिए अन्य नागवङ्गादि धातुओं की भांति चपल भी पारद में उसके द्रवणांक को न्यून करने के लिए मिलाया जाता है ।

विषदोष : –

  • पारद को खान से निकालते समय उसमें स्थित संखिया, नीलाञ्जन बिस्मथ आदि अनेक विषैले और उड़नशील खनिज पारद में मिश्रित हो जाते है।

गिरिदोष : –

  • पर्वत के अन्दर जिस स्थान से पारद निकलता है, उस स्थान विशेष में प्राप्त होने वाली विकृतियों एवं दोषों के सम्पर्क से गिरिदोष हो जाता है।
  • पृथक् – पृथक् पर्वतीय स्थानों में उत्पन्न पारद में गिरिदोष मिलना सम्भव है ।

असह्याग्नि दोष : –

  • पारद के खनिजों में कुछ उड़नशील तत्त्वों का मिश्रण हो जाता है ।
  • यथा : – क्लोरीन, ऑक्सीजन आदि ।
  • इन तत्त्वों की उपस्थिति के कारण पारद अपने क्वथनांक के पूर्व ही उड़ने लगता है ।
  • इसको असह्याग्नि दोष कहते है ।


पारद || पारद के अष्टविध संस्कार || Parad ke astvidh sanskaar || Rasashastra

Charak Samhita – षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः

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