ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)

ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)
 आत्मलक्षण/प्रत्यात्म लक्षण-

 

ज्वर प्रत्यात्मिकं लिङ्गं संतापो देहमानस:।। (च.चि. ३/३१)
  • आचार्य चरक मतानुसार शरीर तथा मन में संताप होना ही ज्वर का आत्मलक्षण है। (fever)


ज्वर का सामान्य लक्षण-
सामान्यतो विशेषात्तु जृम्भाऽत्यर्थ समीरणात्।
पित्तात्रयनोर्दाह: कफादनारूचिर्भवेत्।।

रूपैरन्यराभ्यां तु संसृष्टैर्द्वन्द्वजं विदुः।
सर्वलिङ्गसमवाय: सर्वदोष प्रकोपजे।।                  (सु.उ. ३९/२७-२८)                                                                                            
  • आचार्य चरक मतानुसार ‘ज्वर का प्रभाव’ जिन लक्षणों को कहा गया है वही ज्वर के सामान्य लक्षण कहे गये हैं-
    १. संताप
    २. अरूचि
    ३. तृष्णा
    ४. अंगमर्द
    ५. हृदयव्यथा


विशिष्ट लक्षण-

भेदानुसार ज्वर के विशिष्ट लक्षण निम्न प्रकार वर्णित हैं-
I. बाह्य एवं आभ्यान्तर प्रभावानुसार ज्वर भेद-
१. अन्तवेंग ज्वर
२. बहिर्वेग ज्वर


अन्तर्वेग ज्वर के लक्षण :-

अन्तर्दाहोऽधिकस्तृष्णा प्रलाप: श्वसनं भ्रमः।
सन्ध्यस्थिशूलमस्वेदो दोषव!विनिग्रहः।। (च.चि. ३/३९)

अन्तर्वेग ज्वर के निम्न लक्षण वर्णित हैं-
१. अन्तर्दाह का आधिक्य (Excessive burning sensation)
२. तृष्णा (Polydypsia)
३. प्रलाप (Delirium)
४. श्वासाधिक्य (Dyspnoea)
५. भ्रम (Vertigo)
६. सन्धिशूल तथा अस्थिशूल (Bone and joint pain)
७. स्वेद का अभाव (Loss of perspiration)
८. दोष तथा मलावरोध (Stasis of dosas and stool)



बहिर्वेग के लक्षण-

संतापोऽह्यधिको बाह्यस्तृष्णादीनां च मार्दवम्।
बहिवेंगस्य लिङ्गानि सुखसाध्यत्वमेव च।।     (च.चि. ३/४१)

१. शरीर के बाह्य भाग में ताप की अधिकता (Hyperpyrexia)
२. तृष्णा में कमी (Thirst)
३. लक्षणों में मृदुता (Mild symptoms)



प्राकृत एवं वैकृत ज्वर के लक्षण—
वर्षाशरद्वसन्तेषु वाताद्यैः प्राकृत: क्रमात्।
वैकृतोऽन्यः स दुःसाध्यः प्राकृतश्चानिलोद्भवः।। (अ.सं. २/५०)

 कालप्रकृतिमुद्दिश्य निर्दिष्टः प्राकृतो ज्वर:।। (च.चि. ३/४८)
  • जिन ऋतुओं में वात-पित्त तथा कफ का स्वाभाविक रूप से प्रकोप होता है उन ऋतुओं में होने वाला ज्वर ‘प्राकृत ज्वर’ कहलाता है। 
  1. वर्षा ऋतु में वातज ज्वर
  2. शरद ऋतु में पित्तज ज्वर
  3. बसन्त ऋतु में कफज ज्वर

**वातिक ज्वर को छोड़कर शेष ज्वर सुखसाध्य होते हैं।

  • काल स्वभाव के विपरीत होने वाला ज्वर ‘वैकृत ज्वर’ कहलाता है।
  • वर्षाऋतु में पित्तज ज्वर आदि।

**वैकृत ज्वर कृच्छ्रसाध्य होते हैं।



साध्य-असाध्य ज्वर के लक्षण-
बलवत्स्वल्पदोषेषु ज्वरो साध्योऽनुपद्रवः॥    (च.चि. ३/४९)

हेतुर्भिबहुभिर्जातो बलभिर्बहुलक्षणम्।
ज्वर: प्राणान्तकृद्यश्च शीघ्रमिन्द्रियनाशनः।।    (च.चि. ३/५०)

 

साध्य ज्वर के लक्षण असाध्य ज्वर के लक्षण
१. बलवान १. दुर्बल रोगी
२. अल्प दोष २. दोषाधिक्य एवं बलवान हेतु
३. उपद्रव रहित ज्वर ३. लक्षणों की बहुलता एवं उपद्रव युक्त ज्वर



साम-निराम ज्वर–दोषों की आमावस्था, पच्यमानावस्था तथा निरामावस्था के आधार पर ज्वर के तीन भेद हैं तथा इनके विशिष्ट लक्षण निम्न प्रकार वर्णित हैं-
अरूचिश्चाविपाकश्च…….ज्वरस्यामस्य लक्षणम्। (च.चि. ३/१३३-१३५)

आम ज्वर के लक्षण –


१. अरूचि (Anorexia)
२. अविपाक (Indigestion)
३. उदर का भारीपन (Heaviness of the abdomen)
४. हृदय प्रदेश का शुद्ध न रहना
५. तन्द्रा (Drowsiness)
६. आलस्य (Lassitude)
७. अविसर्गी तथा बलवान ज्वर अर्थात् निरन्तर ज्वर का होना (Continuous
fever)
८. दोषों की अप्रवृत्ति (Stasis of dosas)
९. लालास्त्राव (Salivation)
१०. हृल्लास (Nausea)
११. क्षुधानाश (Loss of Appetite)
१२. मुख का दु:स्वादु होना (Bitter taste of mouth)
१३. स्तब्धता तथा गुरुता (Heaviness and stiffness of the body)
१४. आम मल की प्रवृत्ति (Defaecation of undigested food)
१५. बहुमूत्रता (Polyurea)



पच्यमान ज्वर के लक्षण

 

ज्वरवेगोऽधिकस्तृष्णा प्रलापः श्वसनं भ्रमः।
मलप्रवृत्तिरूत्वलेश: पच्यमानस्य लक्षणम्।। (च.चि. ३/१३६)


१. ज्वर के वेग की तीव्रता (Hyperpyrexia)
२. तृष्णा (Polydypsia)
३. श्वासाधिक्य (Dyspnoea)
४. भ्रम (Vertigo)
५. मल-मूत्र का उचित प्रवृत्ति (Adequate urge of passing stools and
urine)
६. जी मिचलाना (Nausea)



निराम ज्वर के लक्षण

 

क्षुत्क्षामता लघुत्वं च गात्राणां ज्वरमार्दवम्।
दोषप्रवृत्तिरष्टाहो निराम ज्वर लक्षणम्।।     (च.चि. ३/१३७)


१. भूख लगना (Hunger)
२.क्षामता अर्थात् शरीर का कृश होना (Weakness)
३. शरीर में लघुता आना (Feeling of lightness of the body)
४. ज्वर के वेगों की मृदुता (Mild fever)
५. दोषों की प्रवृत्ति (Urge to pass urine and stools)
६. ज्वर का ८ दिन बीत जाना (8th Day of fever)



निज तथा आगन्तुज ज्वर–सात प्रकार के निज ज्वर संहिताओं में वर्णित
हैं इनके भेदानुसार लक्षण निम्न प्रकार वर्णित है-

 

तस्येमानि लिङ्गानि भवन्ति तद्यथा-विषमारम्भ।
विसर्गित्वम्……..बातज्वरस्य लिङ्गानि भवन्ति।। (च.नि. १/२१)

वेपथुर्विषमो वेगः कण्ठोष्ठपरिशोषणम्।
निद्रानाशः क्षुतः स्तम्भो गात्राणां रौक्ष्यमेव च।।
शिरोहद्गावरूग्वक्त्र वैरस्यं बद्धविट्कता।
जृम्भाऽऽध्मानं तथा शूलं भवत्यनिलजे ज्वरे।। (सु.उ. ३९/२९-३०)


वातिक ज्वर के लक्षण
१. विषम आरम्भ तथा विषम वेग (Irregular starting and imegular
fever)
२. ताप का बढ़ते-घटते रहना (Changes in severity)
३. वात प्रकोपक कालों में ज्वर का आना या बढ़ जाना (Fever aggravates in vata dosa vriddhi kaala)


 https://bamsstudies.in/jawar-fever/ ‎

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