चरक संहिता (पूर्वार्द्ध)

वेगों को रोकने का निषेध, अपान वायु को रोकने से हानि, मल वेग रोधज रोग,मूत्र वेग रोधज रोग, वेगरोधज रोगो की चिकित्सा

4. रोगानुत्पादनीय अध्याय जिस प्रकार का आचरण (आहार-विहार आदि) करने से रोगों की उत्पत्ति न हो अथवा जिस अध्याय में कहे जाने वाला विषय रोगों की उत्पत्ति को रोकने के लिए हितकारक है। वेगों को रोकने का निषेध वेगान्न धारयेद्वातविण्मूत्रक्षवतृटक्षुधाम् ।निद्राकासश्रमश्वासजृम्भाश्रुच्छर्दिरेतसाम् ॥1॥ वात (अधोवात/Flatus, विट् (पुरीष/Defecation), मूत्र (Micturition), क्षव (छींक/Sneezing), तृट् (प्यास/Thirst), क्षुधा (भूख / […]

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Preservation methods of cadaver

Preservation is appropriate when the cadaver is safe from harm, destruction or decomposition. For preservation treat the cadaver with special chemicals i.e.. embalming which includes several preservation methods. Methods for preservation of cadavers – Modern method Ancient ayurvedic method Modern preservation methods- Modern methods work on the principle of preserving the cadaver for a long

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आमवात – सन्धिवात – वातरक्त का सापेक्ष निदान

आमवात सन्धिवात वातरक्त 1. प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः मणिबन्ध) (wrist joint) प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः घुटने, कमर) in weight bearing joints प्रायः छोटी सन्धियों में (मुख्यतः पाद-अंगुष्ठ मूल) 2. वृश्चिकदंशवत् शूल सन्धि शूल मूषकदंशवत् शूल 3. शोथ रोग (Inflammatory Joint disease) अस्थि-सन्धि क्षयजन्य रोग (Degenerative Joint disease) चयापचय जन्य रोग (Metabolic Joint disease)

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Shalya Tantra – Basic Concepts

आयुर्वेद के आठ अंग –  तद्यथा- शल्यं, शालाक्यं, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्यम्, अगदतन्त्र, रसायनतन्त्र वाजीकरणतन्त्रमिति। (सु.सू. 1/7) सुश्रुत संहिता रचना – स्थान अध्याय 1. सूत्र 46 2. निदान 16 3. शारीर  10 4. चिकित्सा  40 5. कल्प  8 6. उत्तर 66 सुश्रुत संहिता में अष्टांग आयुर्वेद का वर्णन –  शालाक्य तंत्र          

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कुपोषणजन्य विकार

प्राणिमात्र के लिए जीवन के प्रारम्भ (गर्भाधान) से लेकर जीवन-पर्यन्त आहार का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । भोजन के द्वारा ही जीवन के महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित होते है – शारीरिक कार्यों हेतु ऊर्जा प्रदान करना ।  शरीर की चयापचय प्रक्रियाओं हेतु ।  शरीर की वृद्धि एवं विकास में ।  शरीर में प्रत्येक क्षण हो रहे

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दर्शन एवं उनका श्रेणी विभाजन

भारतीय दर्शनशास्त्रों को हम प्रमुखतः दो वर्गों में बाँट सकते हैं – ( क ) आस्तिक दर्शन – परलोक, ईश्वर तथा वेद में आस्था रखता है । ये दर्शन वेदमूलक होने के कारण ईश्वरीय ज्ञान से भरा पड़ा है। वेद का अर्थ होता है-ज्ञान, ईश्वरीय ज्ञान, सत्यतत्त्व का ज्ञान । दार्शनिक विषयों का आदिस्रोत वेद

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Model Paper – 1 (Kaumarbhritya)

(अतिलघुउत्तरीय प्रश्न) [10 x 2 = 20] (a) आचार्य सुश्रुत के अनुसार कौमारभृत्य की परिभाषा लिखिए। [2] (b) कुमार कल्याण रस के घटक द्रव्य लिखिए। [2] (c) बी.सी.जी. वैक्सीन की मात्रा एवं लगाने का स्थान लिखिए। [2] (d) MORO reflex [2] (e) बालकों में प्रयोग की जाने वाली चार जान्तव (Animal origin) औषधियों के नाम

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यन्त्र

यन्त्र प्रकरण (Surgical Instruments)

यन्त्र परिभाषा :- मन एवं शरीर, इनमें बाधा उत्पन्न करने वाले पदार्थों को शल्य कहते हैं और शल्य का निर्हरण जिन उपकरणों से किया जाता है, उन्हें यन्त्र कहते हैं, किन्तु मनः शल्य दृश्यमान पदार्थ न होने के कारण वह किसी भी प्रकार के यन्त्र के द्वारा निकाला नहीं जा सकता । अतः शल्य की

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