Charak Samhita – aaragvadh – 2

अथात आरग्वधीयमध्यायं व्याख्यास्यामः 2

(7) कुष्ठादि लेप :-

  • कूठ , हल्दी , दारुहरिद्रा , सुरसा , पटोल , नीम , अश्वगन्धा , सुरदारु , शिग्रु , सर्षप , तुम्बरु , धनिया , वन्य ( केवटी ) तथा चण्डा — इन सबको समान भाग लेकर चूर्ण कर लें । फिर चूर्ण को मढे के साथ घोट लें ।
  • तत्पश्चात् रोगी के शरीर में तेल की मालिश करके इस लेप को उबटन की तरह मल कर लगायें ।
  • इसका प्रयोग करने से कण्डू ( खुजली ) , पिडका ( फोड़ा – फुन्सी ) , कोठ ( लाल चकत्ते ) , अनेक प्रकार के कुष्ठ और अनेक प्रकार के शोथ रोग शान्त हो जाते हैं ।

(8) कुष्ठादि चूर्ण :-

  • कूठ , गुडूच , तूतिया , दारुहल्दी , कासीस , कम्पिल्लक , नागरमोथा , लोध्र , गन्धक , राल , विडग तथा मैनसिल , हरताल , कनेर के मूल की छाल इन सबका चूर्ण बना लें ।
  • रोगी के शरीर में पहले सरसों के तेल की मालिश करायें , जिससे उसका शरीर तरबतर हो जाय , फिर उपर्युक्त चूर्ण को अवचूर्णन के लिए दें |

(9) मनःशिलादि प्रदेह :-

  • मैनसिल , पिण्डहरिताल , काली मरिच , सरसों का तेल , मदार का दूध ( इन्हें एक साथ घोंटकर ) लेप योग्य बना लें ।
  • यह कुष्ठनाशक प्रदेह है ।

(10) तुत्यादि लेप :-

  • तूतिया , विडंग , मरिच , कूठ , लोध्र और मैनसिल का ( एकत्र सरसों के तेल में खूब घोंटकर ) लेप बना लें ।
  • यह भी कुष्ठनाशक लेप है ।

(11) रसाञ्जनादि लेप :-

  • रसाञ्जन और चकवड़ के बीज – इन दोनों को समान भाग लेकर कैथ के रस में घोंटकर ( कुष्ठरोग में ) लेप करना चाहिए ।

(12) करञ्जादि लेप :-

  • करञ्ज के बीज , चकवड़ के बीज तथा कूठ – इन तीनों को गोमूत्र में पीसकर लेप करना चाहिए ।
  • यह उत्तम कुष्ठनाशक लेप है ।

(13) हरिद्रादि लेप :-

  • हल्दी , दारुहल्दी , कुटज , करञ्ज का बीज , चमेली की कोमल पत्तियाँ , हयमारक कनेर ) के मूल की छाल और उसके फल की मींगी तथा तिलक्षार – इन्हें समभाग लेकर ( गोमूत्र से ) पीसकर कुष्ठ पर लेप करना चाहिए ।

(14) मनःशिलादि लेप :-

  • मैनसिल , कुटज की छाल , कूठ , कासीस , चकवड़ का बीज , करञ्ज का बीज , भोजपत्र की गाँठ और कनेर की जड़ – इन सबका ( प्रत्येक का ) चूर्ण १ – १ कर्ष ( २४ – २४ ग्राम ) लेकर ‘ तुषोदक ‘ और पलाशस्वरस के १ – १ आढ़क ( ६ . ५ लीटर ) द्रव्य में मन्द आँच पर पकायें । जब पककर गाढ़ा हो जाय और कड़छुल में लगने लगे तो उतार लें ।
  • यह उत्तम कुष्ठनाशक लेप है ।

(15) आरग्वधादि लेप :-

  • आरग्वध के पत्ते , काकमाची और कनेर के पत्ते समभाग लेकर मढे में पीसकर उबटन बनायें ।
  • रोगी के शरीर में सरसों के तेल की मालिश करके इस उबटन को लगायें ।
  • यह कुष्ठनाशक है ।

Charak Samhita – Classification of Dravyas



आरग्वधीयमध्यायं व्याख्यास्यामः 3

तृष्णा रोग ( Polydypsia )

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