ayurveda

आयुर्वेद का प्रयोजन, आयुर्वेदावतरण, अष्टांगहृदय का स्वरुप, आयुर्वेद के आठ अंग

मंगलाचरण :- रागादिरोगान् सततानुषक्तानशेषकायप्रसृतानशेषान् ।औत्सुक्यमोहरतिदाञ्जघान योऽपूर्ववैद्याय नमोऽस्तु तस्मै ।। राग-द्वेष आदि रोगों को, जो नित्य मानव के साथ सम्बद्ध रहते है एवं सम्पूर्ण शरीर में फैले रहते हो, अविचार युक्त कार्य प्रवृत्ति, असन्तोष को उत्पन्न करते हैं, उन सबको जिसने नष्ट किया है, उस आचार्य रूप अर्थात् अद्भुत रूप वैद्य को नमस्कार है। अथात आयुष्कामीयमध्यायं …

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Important questions for shalya tantra (paper -1)

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न (२० शब्द) सुश्रुत संहिता पर लिखी हुई किन्हीं दो टीका के नाम लिखें। शल्य चिकित्सक के गुण लिखें। शस्त्रों की संख्या बताते हुए उनके नाम लिखें। शस्त्रकोष का वर्णन करें। Write the stages of depth of anesthesia. What is saddle block. स्नायु मर्म की संख्या बताते हुए उनके नाम लिखें। क्षार के …

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ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)

ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)   ज्वर प्रत्यात्मिकं लिङ्गं संतापो देहमानस:।। (च.चि. ३/३१) आचार्य चरक मतानुसार शरीर तथा मन में संताप होना ही ज्वर का आत्मलक्षण है। (fever) सामान्यतो विशेषात्तु जृम्भाऽत्यर्थ समीरणात्। पित्तात्रयनोर्दाह: कफादनारूचिर्भवेत्।। रूपैरन्यराभ्यां तु संसृष्टैर्द्वन्द्वजं विदुः। सर्वलिङ्गसमवाय: सर्वदोष प्रकोपजे।।                  (सु.उ. ३९/२७-२८)            …

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तृष्णा रोग ( Polydypsia )

तृष्णा रोगगत तथा पित्त दोष की दुष्टिजनित मानी गई है क्योकि वात का शोषण गुण तथा पित्त का अग्निप्रधान गुण होने से ये दोष तृष्णा की उत्पत्ति में सहायक है। कुछ व्याधियों में तृष्णा लक्षण या उपद्रव के रूप में प्रकट होती है तथा रसजज्वर, रक्तज ज्वर, मान्सज ज्वर मेदज ज्वर, पित्तोदर, प्लीहोदर, बद्धोदर, जलोदर, …

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Charak Samhita – Jawar Nidan – Panch Nidan

                                अथातो ज्वरनिदानं व्याख्यास्यामः                                                      पञ्चनिदान निदान के पर्याय और प्रकार (Synonyms and Types of …

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Charak Samhita || अपामार्गतण्डुलीयमध्यायं व्याख्यास्यामः || Chapter 2 || Part 1

  शिरोविरेचन द्रव्य और उनका प्रयोग – अपामार्ग, पिप्पली, मरिच, विडंग, शिग्रु, सर्षप, तुम्बरु, अजाजी, अजगन्धा, पीलु, एला, हरेणुका, पृथ्वीका (बड़ी इलायची), सुरसा, श्वेता, कुठेरक फणिज्झक (तुलसी भेद), शिरीषबीज, लहसुन, हरिद्रा, दारुहल्दी, सैन्धव नमक, काला नमक, ज्योतिष्मता एव नागर (शुण्ठी) इन सभी द्रव्यों का नस्य शिरोविरेचन के लिए प्रयोग करना चाहिए । शिर के भारीपन …

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