Month: June 2020

परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण – 1

परिभाषा लक्षण : – निगूढानुक्तलेशोक्तसंदिग्धार्थ प्रदीपिका । सुनिश्चितार्था विबुधैः परिभाषा निगद्यते।। जिन संक्षिप्त और सांकेतिक शब्दों द्वारा शास्त्र के गुप्त, अप्रकट, किंचित् प्रकट तथा संदिग्ध अर्थ का स्पष्ट और निश्चित अर्थ प्राप्त हो, उसे परिभाषा कहते है । गूढ, सांकेतिक, गंभीर शब्दों का स्पष्ट ज्ञान परिभाषा से ही होता है। आवाप : – द्रव्यान्तरविनिक्षेपो द्रुते …

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Rasa Shastra – Parad ke dosh

              शुद्ध पारद सर्वव्याधिनाशक, जरावस्थानाशक एवं मृत्यु का निवारण करता है, किन्तु अशुद्ध पारद भयंकर दोष करने वाला विष होता है। पारद में कुल 12 दोष होते है । (1) नैसर्गिक दोष : – नैसर्गिक दोष विष, वह्नि और मल तीन होते है । जिनके द्वारा क्रमशः मृत्यु, संताप …

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पारद के प्रमुख पाँच पर्याय || Five important synonyms of Parad

  Five important synonyms of Parad 1. रस :- रसनात् सर्वधातूनां रस इत्यभिधीयते । जरारुङ्मृत्युनाशाय रस्यते वा रसो मतः ।। स्वर्णादि सभी धातुओं एवं अभ्रकादि महारसों को भक्षण करके सभी धातुओं आदि की शक्ति स्वयं में लेने के कारण ही इसे रस कहते हैं । जरा, रोग, मृत्यु आदि को नष्ट करने में समर्थ होने …

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Charak Samhita – Apamarga – 2

      (1) अग्निप्रदीपक शूलनाशक यवागू – पीप्पली, पिप्पलीमूल, चव्य, चित्रक एवं सोंठ से बनायी गयी यवागू जाठराग्निदीपक एवं शूलनाशक होती है । (2) पाचनी एवं ग्राहिणी पेया – कैथ का फल, बिल्व, तिनपतिया (चांगेरी), मट्ठा एवं अनारदाना से सिद्ध की गयी पेया पाचन और ग्राही होती है । (3) वातज विकारनाशक पेया – …

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Rasa Shastra – Dravya varga prakaran – 1

अम्लवर्ग : – जम्बीरी नींबू, कागजी नींबू, अम्लवेतस, इमली, नारंगी, अनार, वृक्षाम्ल, बिजौरा नींबू, चांगेरी, चणकाम्ल, खट्टाबेर, करौदा, चूका इन सभी को अम्लवर्ग के अन्तर्गत माना गया है । मर्दन एवं भावना आदि के लिए इनका स्वरस या क्वाथ लिया जाता है । अम्लपञ्चक : – अम्लवेतस, जम्बीरी नींबू, मातुलुङ्ग नींबू, नारङ्गी और कागजी नींबू …

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Charak Samhita – षड्विरेचनशताश्रितीयमध्यायं व्याख्यास्यामः

  This Post also Contains the description about panch vidh kshaya kalpana… छ: सौ ‘विरेचन’ होते हैं – षड् विरेचनशतानि  और छ: विरेचनों के आश्रय होते हैं — षड् विरेचनाश्रया इह खलु षड् विरेचनशतानि भवन्ति, षड् विरेचनाश्रयाः, पञ्च कषाययोनयः, पञ्चविधं कषायकल्पनं, पञ्चाशन्महाकषायाः, पञ्च कषायशतानि, इति संग्रहः ॥ इस आयुर्वेदशास्त्र में छ : सौ विरेचन योग …

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Charak Samhita – aaragvadh – 1

द्वितीय अध्याय में अन्तःपरिमार्जन  ( भीतरी शरीर – शोधन ) के उपयोगी पञ्चकर्म सम्बन्धी औषध – द्रव्यों का वर्णन किया गया है । इसके बाद चिकित्सा के दूसरे प्रकार ‘ बहिःपरिमार्जन ‘ के उपयोगी द्रव्यों का वर्णन और उनके प्रयोग – विधान तथा प्रशस्ति का उपदेश इस अध्याय में किया जायेगा । बाह्य प्रयोगार्थ बत्तीस …

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Rasa Shastra – Parad – Sapt kanchuk dosha

कञ्चुक के समान पतले आवरण सी परत पारद की ऊपरी सतह पर आ जाने को कञ्चुक नाम दिया है । कञ्चुक दोष सात होते हैं । (1) पर्पटी (2) पाटनी (3) भेदी (4) द्रावी (5) मलकरी (6) अन्धकारी (7) ध्वाङ्क्षी सप्तकञ्चुकदोष का शरीर पर प्रभाव : (1) पर्पटी शरीर की चमड़ी पपड़ी जैसी हो जाती …

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अग्निमंथ || Premna mucronata

गण – शोथहर, शीतप्रशमन, अनुवासनोपग ( च. ) बृहत पंचमूल , वातसंशमन, वरुणादि( सु . ) कुल – निर्गुण्डी कुल (Family) –  Verbenaceae लैटिन नाम – Premna mucronata अग्निमंथ :- इसकी लकड़ियों को परस्पर रगड़ने से आग निकाली जाती है; यज्ञादि में । जय :- रोगों को जीतने वाला श्रीपर्ण :- सुन्दर पत्रों वाला यह …

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Rasa Shastra – Pribhasa evum dravya prakaran – 2

                                                    द्रुति  :- औषधाध्मानयोगेन लोहधात्वादिकं तथा । सन्तिष्ठते द्रवाकारं सा द्रुतिः परिकीर्तिताः । । विशिष्ट औषधियों के संयोग तथा तीव्रधमन के योग से स्वर्णादि धातु या अन्य खनिज द्रव्य द्रवीभूत …

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