Preservation methods of cadaver

Preservation is appropriate when the cadaver is safe from harm, destruction or decomposition. For preservation treat the cadaver with special chemicals i.e.. embalming which includes several preservation methods. Methods for preservation of cadavers – Modern method Ancient ayurvedic method Modern preservation methods- Modern methods work on the principle of preserving the cadaver for a long …

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Definition and branches of ANATOMY

This topic deals with the definition and branches of anatomy available. Definition ana – continuous tomy – cutting Continuous cutting is called anatomy . Anatomy is the study of structure and relationship among structures . Anatomy was first studied through dissection of cadavers so it is called cadaveric anatomy. Cadaveric anatomy Living anatomy Surface anatomy …

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आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के ग्रन्थों में अनुसंधान की वैज्ञानिक अवधारणा (Contemporary medical sciences evidences of research in Ayurved classics)

आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांत पंचमहाभूत त्रिदोष षड्पदार्थ स्रोतस् अग्नि आयुर्वेद चिकित्सा का करण औषध द्रव्यों की संरचना, प्राप्तिस्थान, वर्गीकरण, उनके गुण-कर्म तथा उनकी कार्मुकता भी विज्ञान पर आधारित है। आयुर्वेद के औषध निर्माण के क्षेत्र में रसशास्त्र एवं भैषज्य कल्पना की विभिन्न औषध कल्पनाएं स्वरस-कल्क-शृत-शीत-फाण्ट-चूर्ण-आसव-अरिष्ट तथा रसौषधि-भस्म आदि रोगी एवं रोग के आधार पर पूर्णत: …

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आमवात – सन्धिवात – वातरक्त का सापेक्ष निदान

आमवात सन्धिवात वातरक्त 1. प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः मणिबन्ध) (wrist joint) प्रायः बड़ी सन्धियों में (मुख्यतः घुटने, कमर) in weight bearing joints प्रायः छोटी सन्धियों में (मुख्यतः पाद-अंगुष्ठ मूल) 2. वृश्चिकदंशवत् शूल सन्धि शूल मूषकदंशवत् शूल 3. शोथ रोग (Inflammatory Joint disease) अस्थि-सन्धि क्षयजन्य रोग (Degenerative Joint disease) चयापचय जन्य रोग (Metabolic Joint disease) …

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आमवात

आम :- “जठरानलदौर्बल्यात् अविपक्वस्तु यो रसः । स आमसंज्ञको देहे सर्व दोषप्रकोपणः ।।” (मधुकोश) उदर की अग्नि की दुर्बलता से जो अविपक्व रस बनता है, उसे आम कहते है। यह शरीर में सभी दोषों को प्रकुपित करता है। “आमेन सहितः वातः आमवातः ।” आम वायु के साथ मिलकर पूरे शरीर में फैलकर आमवात को उत्पन्न …

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Shalya Tantra – Basic Concepts

आयुर्वेद के आठ अंग –  तद्यथा- शल्यं, शालाक्यं, कायचिकित्सा, भूतविद्या, कौमारभृत्यम्, अगदतन्त्र, रसायनतन्त्र वाजीकरणतन्त्रमिति। (सु.सू. 1/7) सुश्रुत संहिता रचना – स्थान अध्याय 1. सूत्र 46 2. निदान 16 3. शारीर  10 4. चिकित्सा  40 5. कल्प  8 6. उत्तर 66 सुश्रुत संहिता में अष्टांग आयुर्वेद का वर्णन –  शालाक्य तंत्र           …

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कुपोषणजन्य विकार

प्राणिमात्र के लिए जीवन के प्रारम्भ (गर्भाधान) से लेकर जीवन-पर्यन्त आहार का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है । भोजन के द्वारा ही जीवन के महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित होते है – शारीरिक कार्यों हेतु ऊर्जा प्रदान करना ।  शरीर की चयापचय प्रक्रियाओं हेतु ।  शरीर की वृद्धि एवं विकास में ।  शरीर में प्रत्येक क्षण हो रहे …

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विरेचन कर्म

उत्पत्ति:- वि उपसर्ग पूर्वक रिच् धातु में णिच् तथा ल्युट प्रत्यय लगने से विरेचन शब्द की उत्पत्ति होती है। जिसका अर्थ मल को बाहर निकालना है। परिभाषा:- तत्र दोषहरणम् अधोभागम् विरेचन संज्ञकम्। अधो भाग से मल तथा दोषो को बाहर निकालने की क्रिया को विरेचन कहते हैं। दोष प्रभाव:- पित्त। विरेचन द्रव्यों के गुण:- उष्ण:- …

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